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उत्तर प्रदेश

आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय फ़ैसले पर पुनर्विचार करे: मनीष सिंह

आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय फ़ैसले पर पुनर्विचार करे: मनीष सिंह
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समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रिय महासचिव मनीष सिंह ने कहा की मैं सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले से बहुत आहत और आश्चर्यचकित हू। समाज में पिछड़े और दलितों को उनका हक़ मिलन चाहिये था। मैं देश की सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह करूँगा की समाज एकजुट रह सके इसके लिये अपने फ़ैसले पर पुनः विचार करे।


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उन्हों ने कहा की सु्प्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को आरक्षित वर्ग में ही नौकरी मिलेगी इससे तो पिछड़े और अनुसूचित जाति जनजाति के साथ अन्याय ही कहा जाएगा। क्योकि आबादी के हिसाब से भी देश में पिछड़े और अनुसूचित जाति जनजाति की संख्या अधिक है।


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सिंह ने कहा की सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने इस वर्ग के साथ अन्याय कर दिया है कि अगर आरक्षित वर्ग का व्यक्ति सामान्य से ज्यादा अंक भी लाता है तो उसे आरक्षित वर्ग में गिना जाएगा। यह कैसा न्याय और कैसी आरक्षण की प्रणाली है। जब जाति के हिसाब से सरकार ने गणना कराई तो क्यों नहीं जातियों के अनुरूप ही आरक्षण का प्रावधान कर दिया।


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उन्होंने कहा कि आरक्षण का आधार अगर सरकार कहती है कि आर्थिक तौर पर होना चाहिए तो उसके लिए भी प्रावधान बनाए। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए कि 85 प्रतिशत आबादी को 50 फीसदी से कम में बांध दिया जाए और 15 फीसदी आबादी को 50 प्रतिशत से ज्यादा का लाभ दिया जाए। जिसकी जितनी संख्या उतनी उसकी भागेदारी। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने देश के हित में कहा था कि उनकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि जातियों में बंटा भारतीय समाज एक राष्ट्र की शक्ल कैसे लेगा और आर्थिक और सामाजिक ग़ैरबराबरी के रहते वह राष्ट्र के रूप में अपने अस्तित्व की रक्षा कैसे कर पाएगा?


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मनीष सिंह ने कहा की आज पिछड़े और दलित की संख्या सामान्य वर्ग से कितनी ज्यादा है लेकिन सरकारी नौकरियों में भागीदारी किसकी ज्यादा है। इस पर विचार करने की जरूरत है।यहां यह बता दे कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने अब आरक्षण को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। मुख्यमंत्री योगी ने राज्य के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सों में से SC, ST और OBC का कोटा ख़त्म करने का आदेश पारित कर दिया है।


उन्हों ने कहा कि संविधान के मुताबिक देश के सरकारी शिक्षण संस्थानों में ओबीसी, एससी और एसटी छात्रों को आरक्षण देने का प्रावधान है। लेकिन आरक्षण का यह नियम निजी संस्थानों और माइनॉरिटी स्टेटस वाले संस्थानों के लिए बाध्यकारी नहीं है। अब इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा की सरकार की मंशा क्या है। आज पिछड़े और दलित को 27 और 22 प्रतिशत का आरक्षण देकर बांध दिया गया है।


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हमारी मांग है कि जिसकी जितनी भागेदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी होनी चाहिए। यह कहकर पिछड़ों और दलितों के साथ न्याय नहीं कहा जा सकता है कि इस वर्ग का व्यक्ति केवल आरक्षण के दायरे में आएगा। अगर वह सामान्य वर्ग के विद्यार्थी को मात दे सकता है तो उसे सामान्य वर्ग का लाभ मिलना चाहिए। इसके लिए देश भर के पिछड़े और दलित वर्ग को एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी। इस तरह के फ़ैसले से देश की एकता कमज़ोर होगी और देश विखंडित हो जायेगा।

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