11 बार के सांसद 'फ़ादर ऑफ़ द हाउस' इंद्रजीत गुप्त से आज के धनपशु नेताओं को लेनी चाहिए सीख!

Update: 2017-08-01 17:23 GMT

(1919-2001)              

भारतीय साम्यवादी आन्दोलन में उत्कृष्ट नेता, भारतीय मजदूर आन्दोलन के शिखर पुरुषों में से एक, एटक तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव तथा प्रखर सांसद इन्द्रजीत गुप्त का जन्म 15 मार्च 1919 ईस्वी में कलकत्ता में हुआ था। आपके पिता सतीश गुप्त आई.सी.एस. अधिकारी थे। इन्द्रजीत जी ने वर्ष 1937 में दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उसके पश्चात उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्होंने लन्दन स्थित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहीं ये साम्यवादियों के संपर्क में आये और इसी दौरान इन्होंने मार्क्सवाद का अध्ययन किया।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र विषय में ऑनर्स की डिग्री प्राप्त करने के बाद वर्ष 1940 में इन्द्रजीत भारत लौट आये। यहाँ लौटने के पश्चात उन्होंने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी, जो कि उस समय अवैध थी व भूमिगत रूप से कार्य कर रही थी, की पूर्णकालिक सदस्यता ग्रहण कर ली।


ट्रेड यूनियन में काम

1942 में उन्होंने एटक के नेतृत्व में बंगाल में ट्रेड यूनियन के क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने जूट मजदूर आन्दोलन के साथ ट्रेड यूनियन जीवन की शुरुआत की। वह विभिन्न ट्रेड यूनियनों जैसे कि जूट, टेक्सटाइल, पोर्ट व डॉक मजदूर आदि के अध्यक्ष चुने गए। वह औद्योगिक न्यायाधिकरण में एक अच्छे मध्यस्थ थे। एक सक्रिय ट्रेड यूनियन नेता गुप्त 1980 में एटक के महासचिव चुने गए और 1990 तक इस पद पर बने रहे। वह 'वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स' (डब्ल्यू.एफ.टी.यू.) के कार्याकलापों से भी काफी निकट से जुड़े हुए थे।1998 में वह डब्ल्यू.एफ.टी.यू. के अध्यक्ष चुने गए और 2000 में डब्ल्यू.एफ.टी.यू. की दिल्ली कांग्रेस में उन्हें संगठन का मानद अध्यक्ष चुना गया। उन्हें दुनिया भर के मजदूर वर्ग का प्यार और सम्मान प्राप्त था और वह जीवन भर मजदूर वर्ग के हितों के लिए संघर्षरत रहे। उन्होंने श्रमिकों के सामने आने वाली समस्याओं को संसद और संसद के बाहर दोनों ही स्थानों पर बड़े प्रभावी ढंग से अभिव्यक्ति दी।


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सीपीआई महासचिव

1989 में वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के उप महासचिव और 1990 में महासचिव चुने गए। वह 1996 तक इस पद पर रहे। गुप्त जी ने 1960 में पश्चिम बंगाल के कोल्कता दक्षिण-पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से उपचुनाव में पहली बार लोकसभा के लिए चुने जाकर 1977 तथा 1980 को छोड़कर अपने जीवन के अंतिम समय तक कुल 11 बार भारतीय संसद के लिए चुने जाने का गौरव प्राप्त किया। संसद के वरिष्ठं सदस्य होने के नाते गुप्त जी को 'फ़ादर ऑफ़ द हाउस' के नाम से जाना जाता था।


उत्कृष्ट सांसद

उत्कृष्ट सांसद माने गए इन्द्रजीत गुप्त ने स्वयं को एक प्रखर वक्ता के रूप में सिद्ध किया था, जिन्हें सभा के नियमों-विनियमों और प्रक्रियाओं का पूर्ण ज्ञान था। संसद में सामयिक विषयों पर बहस के दौरान अपने प्रभावशाली एवं अकाट्य तर्कों और असाधारण वाक् कला से वह सभा को वशीभूत कर लेते थे। वह विश्लेषण में माहिर थे और इसी से वे जटिल से जटिल राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों को अत्यंत विश्वसनीय तरीके से प्रस्तुत करने में समर्थ थे। उनका भाषण कौशल अद्वितीय था और वह अनेक विषयों पर साधिकार बोल सकते थे। वह जेंडर समानता के पक्षधर थे और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए विशेष व ठोस योजनाओं तथा विधायी एवं प्रशासनिक उपायों के लिए कार्यवाही करने की मांग करने में सबसे आगे रहते थे। वह मधुर भाषी थे जिन्होंने संसद के भीतर और बाहर होने वाले वाद विवादों को समृद्ध किया। वह सार्वजनिक जीवन में उच्च चरित्र एवं आदर्श को स्थापित करने के समर्थक थे और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन तथा राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ मुहिम में अग्रणी थे। देश में संसदीय लोकतंत्र और संसदीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने में उनके शानदार योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1992 में पहले 'भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त उत्कृष्ट संसदविद पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।


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देश के गृहमंत्री                

1996 में एच.डी. देवगौड़ा के नेतृत्व में गठित संयुक्त मोर्चा सरकार में वह भारत सरकार के गृह मंत्री बनाए गए तथा इंद्र कुमार गुजराल के प्रधानमंत्रित्व काल 1998 तक इस पद पर रहे। इस पद पर रहते हुए उन्होंने केन्द्रीय कर्मचारियों के पक्ष में उनकी संतुष्टि के अनुरूप वेतन पुनरीक्षण का समझौता संपन्न किया।                 


कैंसर ने जीवन लिया                 

जीवन के अंतिम दिनों में वह कैंसर की गिरफ्त में आ गए और इसी वजह से 20 फरवरी 2001 में 82 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया। उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने कहा था कि 'इन्द्रजीत गुप्त ने जनता से जुड़े मुद्दों को जोर-शोर से उठाकर अपनी प्रभावशाली वक्तृता और सूक्ष्म और तीक्ष्ण वाकचातुर्य से संसदीय कार्यवाही और वाद-विवाद को समृद्ध किया।'  

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उनका जीवन खुली किताब था : अटल                   

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस अवसर पर कहा कि, 'उनका जीवन खुली किताब था। उन्होंने हमेशा अपने विचार एक अनुभवी संसदविद् के तौर पर व्यक्त किये और संकट की घड़ी में मतैक्य कायम करने में उनका अत्यधिक योगदान रहता था... देश की समस्याओं तथा दबे कुचले एवं शोषित वर्गों की स्थिति के बारे में वह गहराई से सोचते थे।'                 


विश्व मज़दूर आंदोलन के नेता                  

उनकी मृत्यु पर भेजे गए शोक सन्देश में विश्व मजदूर संगठन (डब्ल्यू.एफ.टी.यू.) ने कहा कि, 'इन्द्रजीत जी के निधन के साथ विश्व मजदूर संघ और विश्व मजदूर आन्दोलन ने विश्व मजदूर आन्दोलन और संयुक्त आन्दोलन में सर्जनकारी भूमिका अदा करने वाला एक ऐसा नेता खो दिया जिन्होंने हमेशा उपनिवेशवाद एवं नव उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्षों तथा शान्ति, लोकतंत्र एवं सामाजिक न्याय के क्रांतिकारी ध्येय को ऊंचा किया। उनका जीवन और कृत्य जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले लोगों को सदा अनुप्राणित करते रहेंगे।'                     


सिद्धांतवादी निष्ठावान नेता : चंद्रशेखर                      

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस अवसर पर कहा कि 'इन्द्रजीत गुप्त एक सिद्धांतवादी निष्ठावान नेता थे। उनके कठोर शब्दों से भी किसी को किसी किस्म की तकलीफ नहीं होती थी। वह अपनी बात कहने में कभी हिचकते नहीं थे। सरकार में रहते हुए भी अपने सिद्धांतों से कभी उन्होंने समझौता नहीं किया। वह हम सबको और करोड़ों मेहनतकशों को प्रेरणा देते रहेंगे।' उनकी मृत्यु पर देश के अतिरिक्त फिलीपींस, युगोस्लाविया, वियतनाम, क्यूबा, कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, रूस आदि अनेक देशों में भी शोक सभाएं आयोजित कर उनके योगदान को याद किया गया।                        

कमज़ोर वर्ग के लिए लगातार संघर्ष                            

इन्द्रजीत गुप्त गरीबों और निराश्रितों के उत्थान के लिए हमेशा समर्पित रहे और समाज के कमजोर वर्गों के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे। उन्होंने लोगों की आकांक्षाओं को प्रभावी रूप से अभिव्यक्त करने, उनकी चिंताओं और निराशाओं को व्यक्त और उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए संसद के मंच का उपयोग किया। समाज के सभी वर्गों तक उनकी बराबर पहुँच रही। वह 'सादा जीवन उच्च विचार' कहावत व भारतीय मूल्य को चरितार्थ करने वाले व्यक्ति थे। वह एक अच्छे लेखक भी थे। बहुत से लेख लिखने के साथ-साथ उन्होंने दो किताबें 'जूट इंडस्ट्री में पूंजी और श्रम' तथा 'सेल्फ रिलायंस इन नेशनल डिफेन्स' लिखी।      


साभार :जन चौक 



            

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