बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री राम माधव की टीम में काम करने वाले शिवम शंकर सिंह ने अपने ब्लॉग में इस्तीफे का एक-एक कारण बताया है. मिशिगन यूनिवर्सिटी से पास आउट शिवम शंकर सिंह को डेटा एनालिटिक्स में महारत हासिल है, राम माधव के साथ मिलकर उन्होंने बीजेपी को कई पूर्वोत्तर के राज्यों को जीत दिलाने में मदद की है. आइए जानते हैं वो वजहें जिनके कारण शिवम शंकर सिंह ने पार्टी से इस्तीफा देने का मन बना लिया है. अपने ब्लॉग की शुरुआत में शिवम लिखते हैं कि बीजेपी ने अविश्वसनीय रूप से प्रभावी प्रचार के साथ-साथ कुछ खास मैसेज को फैलाने में बहुत अच्छा काम किया है और यही 'मैसेज' कारण हैं जिनकी वजह से शिवम अब आगे पार्टी का समर्थन नहीं कर सकते. शिवम लिखते हैं कि हर पार्टी में कुछ न कुछ अच्छाई भी होती है. तो पहले बीजेपी सरकार की कुछ अच्छाई से शुरुआत करते है. उन्होंने सरकार की ये अच्छाई गिनाई है-
अच्छा क्या है ?
सड़क निर्माण में पहले से अधिक तेजी आई है.बिजली का कनेक्शन बढ़ गया है. सभी गांव में बिजली मिल रही है और ज्यादा समय के लिए मिल रही है. (कांग्रेस ने 5 लाख गांवों का विद्युतीकरण किया और मोदी जी ने पिछले 18 हजार गांव को कनेक्ट करके काम पूरा कर लिया, तो आप उपलब्धियों को अंदाजा अपने आप से ही लगा सकते हैं.) ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार कम हो गया है. अबतक सरकार में मंत्रियों के स्तर पर कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया है (लेकिन ये यूपीए-1 के समय में भी था). निचले स्तर पर भ्रष्टाचार अब भी पहले जैसा ही है. स्वच्छ भारत मिशन सफल है. ज्यादा शौचालय का निर्माण हुआ है.उज्ज्वला योजना एक अच्छी पहल है. लेकिन इस योजना के तहत कितने लोग दूसरा सिलेंडर खरीदते हैं ये जानने की बात है. पहला सिलेंडर और एक स्टोव तो फ्री में मिलता है, लेकिन दोबारा भरवाने के लिए पैसे देने पड़ते हैं. जिसपर 800 रुपये लागत आती है. नॉर्थ ईस्ट राज्यों में कनेक्टिविटी बेहतर हुई है.
अब मुख्यधारा के समाचार चैनलों में इन राज्यों को ज्यादा जगह मिलती है.लॉ एंड ऑर्डर में बेहतरी आई है. अपने ब्लॉग में शिवम आगे बीजेपी सरकार की खामियों को गिनाते हैं. वो कहते हैं कि एक सिस्टम या देश को बनाने में सालों साल लगते हैं और बीजेपी ने बहुत सारी चीजों को बर्बाद कर दिया है. वो 7 खामियों को कुछ इस तरह गिनाते हैं- ((शिवम शंकर सिंह के ब्लॉग के शब्दों में)) इलेक्टोरल बॉन्ड्स: इसने करप्शन को लीगलाइज्ड कर दिया है जिसके कारण कोई भी विदेशी शक्ति या कॉरपोरेट सियासी पॉर्टियों को खरीद सकती है. बॉन्ड के बारे में किसी को पता नहीं चलता ऐसे में अगर कोई कॉरपोरेट किसी खास पॉलिसी को लागू कराने के लिए 1 हजार करोड़ का इलेक्टोरल बॉन्ड पार्टी को देता है तो जाहिर है कि उसका काम हो जाएगा. इससे ये भी साफ होता है कि आखिर कैसे मिनिस्ट्रियल लेवल पर करप्शन कम हुआ है. प्लानिंग कमीशन रिपोर्ट: ये डेटा के लिए एक अहम सोर्स था. प्लानिंग कमीशन में योजनाओं को आंका जाता था और फिर तय होता था कि काम किस रफ्तार से और कैसे चल रहा है. अब कोई विकल्प नहीं है. सरकार जो भी डेटा देती है उसपर भरोसा करना पड़ता है. नीति आयोग भी ऐसा नहीं करती, वो तो एक पीआर और थिंक टैंक एजेंसी जैसी है.