कोबरा पोस्ट ने कुछ मीडिया घरानों को और नंगा कर दिया है। धंधे के लिए क्या गीता, क्या मीता – किसी भी प्रोपेगैंडे में हाथ बँटाने को अख़बार भी तैयार, टीवी चैनल भी। अधिकारी ही नहीं, सरासर मालिक तक काले धन और दुष्प्रचार के काले कारनामे में शिरकत के लिए लालायित नज़र आए हैं। और प्रधानमंत्री कार्यालय के फ़ोन पर पेटीएम ने आपके-हमारे हर डेटा को एक पार्टी के सुपुर्द कर दिया। क्यों न करते, नोटबंदी के एक ऐलान ने पेटीएम की तिजोरियाँ लबालब कर दी थीं।
इस हाथ ले उस हाथ दे।मीडिया को – दूसरे शब्दों में जानकारी के धंधे को – गंदा होने से बचाना भारतीय समाज को दुष्प्रचार की कुचालों से बचाना होगा; इसलिए सुप्रीम कोर्ट को आगे आकर इस रहस्योद्घाटन का संज्ञान लेना चाहिए। यह सफ़ाई अब एडिटर्स गिल्ड, एनबीए या प्रेस परिषद् जैसी काग़ज़ी संस्थाओं के बस की बात नहीं।