नई दिल्ली: बुधवार शाम जेएनयू चुनाव समिति ने अंतिम रूप से सभी उम्मीदवार की लिस्ट जारी कर दी. बुधवार दोपहर एक बजे तक नाम वापसी की समय सीमा तय की गई थी. अंत में अध्यक्ष पद पर आठ उम्मीदवार मैदान में बचे. लेफ्ट यूनिटी से एन. साईं. बालाजी, बापसा से थल्लापल्ली प्रवीण, एबीवीपी से ललित पाण्डेय, छात्र राजद से जयन्त कुमार 'जिज्ञासु' और एनएसयूआई से विकास यादव चुनाव लड़ रहे हैं. निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सैब बिलावल, निधि मिश्रा, जह्नु कुमार हीर मैदान में हैं. साथ ही उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पद के लिए भी अंतिम तौर पर सभी पार्टी के उम्मीदवार की लिस्ट भी जारी हो गई.
शाम 4 बजे से छात्रसंघ ऑफिस में प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. सभी पार्टी के अध्यक्षीय उम्मीदवार ने अपने दल के एजेंडे पर अपनी बात रखी. निर्दलीय उम्मीदवार निधि मिश्रा इसमें अनुपस्थित रहीं. एबीवीपी से जुड़े राघवेंद्र मिश्रा ने निर्दलीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने की घोषणा की लेकिन उनका आरोप है कि उनका फॉर्म स्वीकार नहीं किया गया. सूत्रों के अनुसार एबीवीपी ने उसे टिकट देने से इनकार कर दिया था. राघवेंद्र मिश्रा अपने गेट अप की वजह से कैम्पस के 'योगी' कहे जाते हैं. मिश्रा जी ने धमकी दी कि अगर उनका आवेदन स्वीकार नहीं किया गया तो वे चुनाव समिति के सामने आत्मदाह कर लेंगे. खबर लिखे जाने तक राघवेंद्र मिश्रा चुनाव समिति कार्यालय के सामने डटे हुए थे.
सवर्ण छात्र मोर्चे की ओर से अध्यक्ष पद के लिए कुमारी निधि मिश्रा ने नामांकन किया. निधि मिश्रा पूर्वांचल के गाजीपुर की रहने वाली हैं और जेएनयू के सेंटर फॉर एक्सक्लूसिव डिस्क्रिमिनेशन में पीएचडी कर रही हैं. इससे पहले वे जेएनयू के गोदावरी महिला छात्रावास की अध्यक्ष रह चुकी हैं. इस मोर्चे से जुड़े छात्रों ने बताया कि स्वभाविक तौर पर एबीवीपी हमारी पार्टी है लेकिन अब वह भी हमारे मुद्दे को उठाने से इनकार कर रही है. यहां तक कि एबीवीपी ने अब आरक्षण का विरोध करना छोड़ दिया है. पिछले साल तक कन्हैया कुमार की पार्टी एआईएसएफ लेफ्ट यूनिटी से बाहर थी लेकिन इस बार वह भी लेफ्ट यूनिटी में शामिल हो गई है. इस बात में कोई शक नहीं कि वर्तमान परिस्थिति में लेफ्ट का अलग-अलग लड़ना अब संभव नहीं. एक जमाने में आइसा, एसएफआई, एआईएसएफ और एबीवीपी के बीच मुकाबला होता था. लेकिन बापसा ने इस खेल को बिगाड़ दिया. अब यह मुकाबला त्रिकोण में बदल गया है.
बापसा, लेफ्ट यूनिटी और एबीवीपी. पिछले कुछ सालों से सरकार और प्रशासन की मदद से एबीवीपी भी मजबूत होती चली गई, इसलिए अब लेफ्ट का अलग-अलग चुनाव लड़ना इतिहास की बात हो गई लगती है. बापसा ने बुधवार शाम में साबरमती ढाबे पर इस खबर पर सीबीआई का पुतला जलाया जिसमें बताया गया था कि सीबीआई ने नजीब के केस में हाथ खड़े कर दिए हैं और केस बंद करने जा रही है. बापसा मुस्लिम वोट के लिए लगातार प्रयासरत है. पिछले साल तो उसने 'इंशाअल्लाह भूपाली' तक के नारे लगाए थे. कुल मिलाकर जेएनयू छात्रसंघ चुनाव की बिसात बिछ चुकी है. हर पार्टी में टिकट न मिलने से नाराज लोगों का रुख आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण होगा. चुनाव प्रचार की शुरुआत हो चुकी है. ढाबा से लेकर हॉस्टल तक प्रत्याशी एक दूसरे का हाथ थामे समर्थन मांगना शुरू कर चुके हैं.