झूट फैला रहा है दंगाई मीडिया, जानिए, क्या है दारुल-क़ज़ा? किन मामलों की करता है सुनवाई।

Update: 2018-07-11 11:31 GMT

देश भर में ट्रिपल तलाक को लेकर शुरू हुई बहस अभी थमी भी नहीं थी कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक फैसले ने एक और नई बहस को शुरू कर दिया. बोर्ड ने सभी जिलों में दारुल कजा यानी इस्लामिक शरिया अदालत खोलने का फैसला किया हैं. इस मामले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसको सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप बता रहा है तो वहीं बीजेपी नेताओं का कहना है कि देश के संविधान के अलावा कोई भी समानांतर अदालत नहीं होनी चाहिए. खेर इस बीच हम आपको बताते हैं क्या होती हैं शरिया अदालत और कैसे होते हैं इनमें फैसले. दारुल कजा इस्लामिक शरिया इस्लाम धर्म के कानून के मुताबिक होती है. यहां पर मुस्लिम समुदाय से जुड़े हुए मामले जैसे शादी, तलाक, जायदाद का बंटवारा, लड़कियों को जायदाद में हिस्सा देना आमतौर पर शामिल होता है. दारुल कजा में जज को काजी कहा जाता हैं जिनकी संख्या एक या उससे अधिक हो सकती है. काजी इस्लामिक शरिया के विद्वान होते हैं.


आमतौर पर दारुल कजा को सुन्नी मुसलमान मान्यता देते हैं. पिछले दिनों मुसलमानों से जुड़े कई मामले जैसे ट्रिपल तलाक, निकाह और हलाला सुप्रीम कोर्ट तक पहुच गए थे. जिसके बाद केंद्र सरकार भी ट्रिपल तलाक के विरोध में आ गई. ऐसे में बोर्ड को अपनी स्ट्रेटेजी बदलनी पड़ी. बोर्ड का मानना है कि मुसलमानों के पारिवारिक मामले दारुल कजा के जरिए निपटाए जाएं. ऐसा करने से खर्चे की बचत विवाद का जल्द फैसला और इस्लाम के अनुसार निपटारा संभव है. लेकिन बोर्ड के इस ऐलान के बाद बाते होने लगी कि क्या भारत में मुसलमान अपने लिए अलग अदालत लगा लेंगे. इन आशंकाओं को ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के सेक्रेटरी जफरयाब जीलानी ने सिरे से खारिज कर दिया. जीलानी के अनुसार इस मामले को लेकर मीडिया भ्रांतियां फैल गई हैं.


उन्होंने कहा कि मैं साफ करना चाहता हूं कि दारुल कजा पैरेलल कोर्ट नहीं हैं. जिस लेकर 7 जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था. जीलानी ने आगे कहा कि हम दारुल कजा में काजी के जरिए सिर्फ इस्लामिक शरिया के तहत किसी मामले में इस्लामिक कानून बता देते हैं. और काजी कोई एनफोर्सिंग एजेंसी नहीं है इस मुद्दे को ट्रिपल तलाक के मुद्दे से जोड़ कर देखना बिलकुल गलत है. वहीँ दूसरी तरफ बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने शरिया कोर्ट को नकारते हुए एक न्यूज एजेंसी को दिए बयान में कहा कि यहां कोई इस्लामिक गणराज्य नहीं है. बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड वर्तमान में १९९३ से देश भर में 50 दारुल कजा संचालित कर रहा हैं. वहीँ इस मामले पर ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि दारुल कजा कोई पैरेलल कोर्ट नहीं है और यह 1993 से संचालित की जा रही हैं. उन्होंने आगे कहा कि इस मामले को लेकर सबसे पहले तो बीजेपी के नेता और मंत्रियो को सुप्रीम कोर्ट का फैसला पढ़ लेना चाहिए.

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