नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के प्रेस क्लब में गुरुवार को देश की जानी-मानी बुद्धिजीवियों ने एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हाल ही में 5 सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की निंदा की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद लेखिका अरुंधति रॉय, वकील प्रशांत भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता बिजवाड़ा विल्सन, अरुणा रॉय, विधायक जिग्नेश मेवाणी ने सामाजिक कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी और गिरफ्तारियों को गलत बताया।अरुंधति रॉय ने गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कहा कि अभी हाल ही में आए एक सर्वे से पता चला है कि मोदी सरकार की साख गिर रही है।
मोदी सरकार ने विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे लोगों को देश से फरार होने देकर जनता की जेब काटी है। उन्होंने कहा, "मोदी सरकार ने नोटबंदी लागू कर जनता की जेब काटी और जीएसटी से छोटे व्यापरियों की कमर तोड़ दी। और अब अपनी इन्हीं विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी कर रही है।" उन्होंने कहा कि एक समय था जब बांटो और राज करो की नीति चलती थी, लेकिन इस सरकार की नीति गुमराह करो और राज करो की है।उन्होंने कहा कि पहले आदिवासियों को नक्सल कहा जा रहा था, फिर दलितों को नक्सल कहा जा रहा था और अब मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को नक्सली बताया जा रहा है।
यह भारत के संविधान को पलटने जैसा है, जो आपातकाल से भी ज्यादा खतरनाक है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों को गिरफ्तार कर उन लाखों लोगों को चुप कराया जा रहा है जो इनकी तरफ उम्मीद से देखते हैं।वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि आज जो हालात है वह इमरजेंसी से भी बदतर है, क्योंकि लोकतंत्र को चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है। आपातकाल एक झटका था जो आया और चला गया, लेकिन यह उससे भी खतरनाक है। प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर हमलोग अब भी नहीं खड़े हुए, तो सब कुछ खो देंगे।भीमा कोरेगांव मामले में हुई गिरफ्तारियों का विरोध करते हुए दलित नेता और गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी ने इसे दलितों को बदनाम करने की साजिश बताया।
उन्होंने इसके विरोध में आने वाले 5 सितंबर को देश भर में प्रदर्शन का ऐलान किया। जिग्नेश मेवानी ने कहा कि यह देश में उभरते दलित आंदोलन को बदनाम करने की प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की साजिश है। उन्होंने पीएम मोदी पर हमले की कथित साजिश के दावे को 2019 के लोकसभा चुनाव में लोगों की हमदर्दी हासिल करने का हथकंडा करार दिया। बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा की साजिश रचने और नक्सलवादियों से संबंध रखने के आरोप में 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने देश के कई हिस्सों में छापेमारी कर सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, कवि वारवारा राव, वकील सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजालवेस को गिरफ्तार किया था।
जिसके बाद 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इन गिरफ्तारियों पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई तक हिरासत में लिये गए सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपने ही घर में नजरबंद रखने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, अगर इसे हटा दिया गया तो लोकतंत्र का प्रेशर कुकर फट जाएगा।