मोदी डिग्री विवाद: दिल्ली विश्वविद्यालय ने RTI कार्यकर्ताओं के आवेदन का हाई कोर्ट में किया विरोध

Update: 2018-05-23 07:06 GMT

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने दिल्ली हाई कोर्ट में सूचना का अधिकार यानी आरटीआई कार्यकर्ताओं के उस आवेदन का विरोध किया है, जिसमें उन्होंने एक मामले में अपना पक्ष सुने जाने की मांग की है। उस मामले में विश्वविद्यालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस निर्देश को चुनौती दी है, जिसमें विश्वविद्यालय के उन सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी थी जिन्होंने 1978 में बीए की परीक्षा पास की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उसी वर्ष विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा पास की थी। विश्वविद्यालय ने न्यायमूर्ति राजीव शकधर की पीठ के समक्ष दावा किया कि यह आवेदन मामले में 'सस्ती लोकप्रियता' हासिल करने के लिए दाखिल किया गया है।


समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, डीयू की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता ने आरटीआई कार्यकर्ताओं की याचिका का जोरदार विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह सार्वजनिक मंच नहीं हो सकता और ये सस्ती लोकप्रियता पाने के हथकंडे हैं। बता दें कि सीआईसी ने पिछले दिनों डीयू को उन सभी छात्रों से संबंधित रिकॉर्ड का निरीक्षण करने की अनुमति देने का निर्देश दिया था, जिन्होंने 1978 में बीए डिग्री की परीक्षा पास की थी। विश्वविद्यालय के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसी वर्ष बीए की परीक्षा पास की थी। सीआईसी ने विश्वविद्यालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी की दलीलों को खारिज कर दिया था कि यह तीसरे पक्ष की निजी सूचना है।


दरअसल, विश्वविद्यालय ने आयोग से कहा था कि यह थर्ड पार्टी की व्यक्तिगत सूचना है, जिसे साझा नहीं किया जा सकता। इस दलील को खारिज करते हुए आयोग ने कहा था कि इस दलील का कोई कानूनी पक्ष नहीं है। साथ ही विश्वविद्यालय को 1978 में बीए के विद्यार्थियों की सभी सूचनाएं देखने और उससे संबंधी प्रमाणित कॉपी मुफ्त में उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। विश्वविद्यालय ने सीआईसी के इस निर्देश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली और आरटीआई के निजता के अधिकार और 'विश्वासाश्रित संबंध' से जुड़े अनुच्छेदों का हवाला देते हुए यह जानकारी देने से मना कर दिया था।


इसके बाद कोर्ट ने जनवरी 2017 में जारी सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी थी, साथ ही विश्वविद्यालय को इस मामले में कोई अन्य जवाब दाखिल करने से भी मना कर दिया था। आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, अमृता जौहरी और निखिल डे ने अपने आवेदन में विश्वविद्यालय की ओर से दायर याचिका में हस्तक्षेप करने और अपनी दलील रखने की अनुमति मांगी है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह सार्वजनिक महत्त्व से जुड़ा गंभीर मामला है और कोर्ट के इस मामले में फैसले का आरटीआई सिस्टम पर गहरा असर होगा।

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