भारतीय सेना आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रही है। दरअसल भारतीय सेना ने सरकारी ऑर्डनंस फैक्ट्रियों से खरीददारी में भारी कटौती करने का फैसला किया है।ये फैसला इसलिए लिया गया की छोटे युद्ध जैसे हालत में फौरी तौर पर गोला बारूद खरीदने के लिए पैसा बचाया जा सके। इस कदम से सैनिकों की वर्दी की सप्लाई- जिनमें युद्धक ड्रेस, बेरेट्स, बेल्ट्स, जूते जैसे सामानों पर असर पड़ेगा। दरअसल सेना आपातकालीन गोलाबारूद के स्टॉक को बनाए रखने के लिए 3 योजनाओं पर काम कर रही है, जिसके लिए हजारों करोड़ रुपये चाहिए। क्योकि सरकार ने सेना को इन योजनाओं के लिए कोई फण्ड नहीं दिया है। इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार इस मामले से जुड़े अधिकारीयों का कहना है कि सेना अपने न्यूनतम बजट में ही व्यवस्था बनाने में जुटी हुई है।
क्योकि इस साल के बजट को देखते हुए सेना के पास आर्डनंस फैक्ट्रीज से सप्लाई की कटौती के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। सेना जिन तीन प्रॉजेक्ट्स पर काम कर रही है उसमें से केवल एक ही शुरू हो पाया है। अधिकारियों का कहना है कि पिछले कई सालों से फंड की कमी की वजह से ये आपातकालीन प्रॉजेक्ट्स प्रभावित हुए हैं। अधिकारी के अनुसार, आपातकालीन खरीदारी के लिए 5000 करोड़ रुपये खर्च किये गए है जबकि 6739.83 करोड़ रुपये अभी तक बाकी है। उन्होंने बताया कि दो अन्य स्कीम पांच साल के लिए नहीं बल्कि तीन साल की ही हैं। सेना अब इस समस्या से जूझ रही है कि दो प्रॉजेक्ट्स के लिए भुगतान कैसे किया जाए क्योंकि केंद्र ने साफ कर दिया है कि इसकी व्यवस्था अपने बजट से करो।
इसी के चलते मार्च में सेना ने ऑर्डनंस फैक्ट्रीज से सप्लाई बंद करने का फैसला लिया है। अधिकारी के मुताबिक ऑर्डनंस फैक्ट्रीज के 94 फीसद प्रोडक्ट्स सेना की सप्लाई किये जाते है। इससे 11000 करोड़ के भुगतान में कम कर 8000 करोड़ रुपये के करीब लाया गया है। बता दें कि अधिकारीयों का मानना है की जून 2019 तक सेना के पास 10 (1) के लेवल का 90 फीसद गोलाबारूद मौजूद हो जाना चाहिए। सेना के कई अधिकारीयों का कहना है कि सरकार को आर्थिक सहयोग देना है जो अबतक नहीं दिया गया है। ऐसे में सेना की आधुनिकीकरण और मेंटेनेंस के लिए अपने बजट का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर है।