गोरखपुर में मर रहे थे बच्चे, UP के स्वास्थ्य मंत्री दिल्ली में बड़े नेताओं के यहाँ मत्था टेक रहे थे!

Update: 2017-08-12 06:08 GMT

नई दिल्लीः जिस वक्त गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन का संकट गहराया था। इंसेफ्लाइटिस से जूझ रहे बच्चों की मौत पर कोहराम मचा था। उस वक्त स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में वस्तुस्थिति का जायजा लेते या फिर पीड़ित परिवारों के आंसू पोंछने नहीं नजर आए। जबकि विभागीय मंत्री से सरकार ही नहीं आम जन को भी यही उम्मीद होती है।  छोटी-मोटी जगहों के निरीक्षण के वक्त की खूब फोटो डालकर अपनी सक्रियता की वाहवाही लूटने वाले सिद्धार्थनाथ सिंह के फेसबुक पेज और ट्विटर वॉल को जब हम ने खंगाला तो निराशा हाथ लगी। सबसे चौंकाने वाली बात रह कि मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने संवेदना जताने के लिए एक ट्वीट भी नहीं किया।


हां अपनी और विभागीय सफाई में एक न्यूज चैनल की लाइव डिबेट में अपने फोनो का वीडियो उन्होंने जरूर शेयर किया। जबकि संवेदनशीलता का तकाजा था कि अगर मौके पर न पहुंचते तो कम से कम दिल्ली से ही पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना जताता ट्वीट तो जरूर कर देते। यह हाल सिर्फ सिद्धार्थनाथ सिंह का ही नहीं, बल्कि योगी सरकार के उन तमाम मंत्रियों का है, जो क्षेत्र में खून-पसीना बहाकर... जमीनी राजनीति की जगह पैराशूट से टपककर विधायक और मंत्री बने हैं। वे अपना टाइम इलाके और विभागीय दायित्वों में कम, दिल्ली के लुटियन्स जोन की सियासी लॉबिंग में ज्यादा खर्च करते हैं। हर सप्ताह के अंत में ऐसे तमाम मंत्री दिल्ली भाग जाते हैं। वो भी किसी विभागीय या पार्टी के कामकाज से नहीं। बल्कि निजी रूप से राजधानी की सैर पर रहते हैं।


सिद्धार्थनाथ सिंह भी गुरुवार शाम तक पूरे समय दिल्ली में रहे। जबकि मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन का संकट उसी समय से गहराना शुरू हो गया था। हर वीकेंड चरण छूने भाग जाते हैं दिल्ली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के सांसदों और विधायकों को क्षेत्र में सक्रिय रहने की नसीहत हमेशा देते हैं। पार्टी की ओर से निर्देश है कि सत्र चलने पर सदन में, नहीं तो सचिवालय दफ्तर में रहना जरूरी है। बाकी समय निर्वाचन क्षेत्र में गुजारने का निर्देश है। ताकि जनसमस्याओं का निराकरण हो सके। मगर योगी के कई मंत्री हर सप्ताह पीआर करने दिल्ली भाग जाते हैं। इसमें डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, सिद्धार्थनाथ सिंह सहित कई मंत्री शामिल हैं। जिन बड़े नेताओं की कृपा उन पर है, उनके पास जाकर चरणवंदना करने में जुट जाते हैं।


यही वजह है कि यूपी के कई जिलों में जनसमस्याएं सुलझने की जगह और उलझ रहीं हैं। खुद भाजपा के कार्यकर्ताओं की ही शिकायत रहती है कि मंत्री समय नहीं देते। यह मामला कई बार शीर्षस्तर पर पार्टी बैठकों में भी उठ चुका है। कल्याण सिंह सीएम थे तो यह थी व्यवस्था यूपी में भाजपा के ही एक बड़े नेता अपनी सरकार के मंत्रियों के रेस्टजोन में चले जाने की शिकायत करते हैं। कहते हैं कि जब सूबे में कल्याण सिंह की सरकार थी तो मंत्रियों को सख्त निर्देश दे। वह यह कि सोमवार से शुक्रवार तक लखनऊ मे रहेंगे। अगर सत्र चल रहा होगा तो सदन में मौजूदगी अनिवार्य रहेगी। नहीं तो सचिवालय में बैठेंगे। बाकि शनिवार और रविवार के दिन निर्वाचन क्षेत्र में जाकर जनमस्याओं की सुनवाई और पार्टी कार्यकर्तओं से मुलाकात कर संगठन की मजबूती की फिक्र करेंगे।


मगर मौजूदा समय ऐसे गिने-चुने मंत्री ही हैं, जो क्षेत्र मे जाना पसंद करते हैं। बाकी मंत्री हर सप्ताह के अंत में लखनऊ से फ्लाईट पकड़कर दिल्ली चले जाते हैं। यहां पार्टी और संगठन में अपने माई-बाप बने बड़े नेताओं और पदाधिकारियों के आवास पर जाकर मत्था टेकना पसंद करते हैं। ताकि संकट के समय भी कुर्सी पर कोई खतरा न मंडराए। मगर ये मंत्री नहीं जानते कि जनता से दूरी कितनी घातक होती है। पूर्व में बसपा और सपा की सरकारे कैसे जनता से दूरी पर चलीं गईं। कैसे तमाम विधायकों को जनता ने धूल चटा दिया। यह नए-नवेले भाजपाई मंत्रियों को समझने की जरूरत है।  

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