तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: पढ़िए- कब-कब क्या-क्या हुआ

Update: 2017-08-22 11:50 GMT

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के निर्णय में मुस्लिम समाज में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को निरस्त करते हुये मंगलवार(22 अगस्त) को अपनी व्यवस्था में इसे असंवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दिया। न्यायालय ने कहा कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। 

16 अक्तूबर 2015: सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार से संबधित एक मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश से उचित पीठ का गठन करने के लिए कहा ताकि यह पता लगाया जा सकें कि क्या तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाएं लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं।

♦ पांच फरवरी 2016: सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से 'तीन तलाक', 'निकाह हलाला' और बहुविवाह की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत की मदद करने के लिए कहा। 
♦ 28 मार्च 2016: सुप्रीम कोर्ट ने 'महिलाओं और कानून: शादी, तलाक, संरक्षण, वारिस और उत्तराधिकार से संबंधित कानूनों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ पारिवारिक कानूनों के आकलन' पर उच्च स्तरीय पैनल की रिपोर्ट दायर करने के लिए केंद्र से कहा। 
♦ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) समेत विभिन्न संगठनों को पक्षकार बनाया। 
♦ 29 जून 2016: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम समाज में 'तीन तलाक' को ''संवैधानिक रूपरेखा की कसौटी'' पर परखा जाएगा। 
♦7 अक्तूबर 2016: भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में इन प्रथाओं का विरोध किया और लैंगिक समानता तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे आधार पर इस पर विचार करने का अनुरोध किया। 
♦ 14 फरवरी 2017: सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न याचिकाओं पर मुख्य मामले के साथ सुनवाई करने की अनुमति दी। 
♦ 16 फरवरी 2017: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'तीन तलाक', 'निकाह हलाला' और बहुविवाह को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी और फैसला देगी। 
♦ 27 मार्च 2017: एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ये मुद्दे न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार के बाहर है इसलिए ये याचिकाएं विचार योग्य नहीं हैं। 
♦ 30 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मुद्दे ''बहुत महत्वपूर्ण'' हैं और इनमें ''भावनाएं'' जुड़ी हुई है और संविधान पीठ 11 मई से इन पर सुनवाई शुरू करेगी। 
♦ 11 मई 2017: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा उनके धर्म का मूल सिद्धान्त है। 
12 मई 2017: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक की प्रथा मुस्लिमों में शादी तोड़ने का सबसे खराब और गैर जरुरी तरीका है। 
♦ 15 मई 2017: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अगर तीन तलाक खत्म हो जाता है तो वह मुस्लिम समुदाय में शादी और तलाक के लिए नया कानून लेकर आएगा। 
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत यह देखेगा कि क्या तीन तलाक धर्म का मुख्य हिस्सा है। 
♦ 16 मई 2017: एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आस्था के मामले संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखे जा सकते। उसने कहा कि तीन तलाक पिछले 1,400 वर्षों से आस्था का मामला है। 
तीन तलाक के मुद्दे को इस आस्था के बराबर बताया कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। 
♦ 17 मई 2017: सुप्रीम कोर्ट ने एआईएमपीएलबी से पूछा कि क्या एक महिला को 'निकाहनामा' के समय तीन तलाक को 'ना' कहने का विकल्प दिया जा सकता है। 
♦ केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि तीन तलाक ना तो इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है और ना ही यह ''अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक'' का मामला है बल्कि यह मुस्लिम पुरुषों और वंचित महिलाओं के बीच ''अंतर सामुदायिक संघर्ष'' का मामला है। 
♦ 18 मई 2017: सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर फैसला सुरक्षित रखा। 
♦ 22 मई 2017: एआईएमपीएलबी ने शीर्ष अदालत में हलफनामा दायर करते हुए कहा कि वह दूल्हों को यह बताने के लिए ''काज़ियों'' को एक परामर्श जारी करेगा कि वे अपनी शादी तोड़ने के लिए तीन तलाक का रास्ता ना अपनाए। 
♦ एआईएलपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट में विवाहित दंपतियों के लिए दिशा निर्देश रखे। इनमें तीन तलाक देने वाले मुस्लिमों का ''सामाजिक बहिष्कार'' करना और वैवाहिक विवादों को हल करने के लिए एक मध्यस्थ नियुक्त करना भी शामिल था। 
♦ 22 अगस्त 2017: सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ दो के मुकाबले तीन के बहुमत से फैसला दिया कि तीन तलाक के जरिए तलाक देना अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है और यह कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

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