लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती के राज्यसभा से इस्तीफा देने से एक बार फिर बीजेपी बैकफुट पर आ गयी है। बसपा सुप्रीमो ने इस्तीफा के लिए ऐसा समय चुना था, जिसकी कल्पना बीजेपी ने नहीं की थी। मायावती के इस्तीफा के स्वीकार होने की संभावना कम है, लेकिन इतना तो साफ हो गया है कि पूर्वांचल का सियासी समीकरण बदल सकता है। बीजेपी ने दलित वोट बैंक मजबूत करने के लिए सबसे बड़ा दांव खेला है। बीजेपी ने रामनाथ कोविंद को चुनाव लड़ा कर साबित करने का प्रयास किया है कि बीजेपी में दलित वर्ग का सम्मान सुरक्षित है।
रामनाथ कोविंद के हार की संभावना नहीं है और 20 जुलाई को इसका खुलासा हो जायेगा। सभी लोगों की निगाहे राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम पर लगी है। एक बार बीजेपी प्रत्याशी राष्ट्रपति चुनाव जीत जाते हैं तो बीजेपी देश भर में खुद को दलित हितैषी बता कर अपना प्रचार करेगी। बीजेपी अभी अपने दांव में सफल हो भी नहीं पायी है कि मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा देकर बीजेपी के दांव को बेकार कर दिया है। बीजेपी अभी दलित वोट बैंक में रामनाथ कोविंद को लेकर संदेश भी नहीं दे पायी है कि मायावती ने बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हुए इस्तीफा दे दिया है।
मायावती ने राज्यसभा में बोलने नहीं देने की बात कही। इसके साथ ही बीजेपी को दलित वरोधी बताते हुए बसपा सुप्रीमो ने इस्तीफा दे दिया है। मायावती ने दलित वोटरों के बीच यह साबित करने का प्रयास किया है कि बीजेपी ऐसी पार्टी है जो दलित हितों की अनदेखी करती है इसलिए बसपा सुप्रीमो को इस्तीफा देना पड़ा। बसपा के पास सिंबल वोटरों की संख्या बहुत ज्यादा है। ऐसे वोटरों की बड़ी आबादी पूर्वांचल में रहती है। ऐसे वोटरों का बसपा पर भरोसा होता था उन्हें इस बात से मतलब नहीं होता था कि पार्टी ने किसे प्रत्याशी बनाया है वह तो बस बसपा के सिंबल हाथी को देख कर वोट देते थे।
बीजेपी ने मेहनत करके बसपा के इस वोट बैंक पर कब्जा कर लिया है। ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस्तीफा देकर इन वोटरों को बीच यह साबित करने का प्रयास किया है कि वही दलितों की असली नेता है और बीजेपी ने उन्हें इस्तीफा देने पर विवश किया है। इन परिस्थितियों में बसपा के वोटर असमंजस में पड़ जायेंगे। इसका फायदा भी बसपा के वोट बैंक को खिसकने से रोकने में किया जा सकता है।