लखनऊ। शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी के खिलाफ शिया समुदाय के सर्वोच्च धर्म गुरु इराक से आयतुल्लाह अल सैयद अली अल हुसैनी अल सिस्तानी ने फतवा जारी किया है। यह फतवा वसीम रिजवी के सुप्रीम कोर्ट में वक्फ बोर्ड की संपत्ति को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए दिए जाने सम्बंधित प्रस्ताव पर आया है। वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालकर शिया बोर्ड को पैरोकार बनाने की मांग की थी। साथ ही यह भी ऐलान कर रखा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट अयोध्या की विवादित जमीन शिया बोर्ड को वापस करता है तो वो इसे मंदिर बनाने के लिए दे देंगे।
शियाओं के सर्वोच्च धर्मगुरु अयातुल्ला सिस्तानी ने अपने पत्र में कहा कि शिया वक्फ बोर्ड की जमीन किसी दूसरे मजहब के लोगों को धर्मस्थल बनाने या धार्मिक कार्य के लिए नहीं दी जा सकती। इसके बाद रिजवी के बयानों और उनके मंदिर मामले में पैरोकार बनने पर सवाल उठने लगे। कानपुर के शिया बुद्धिजीवी और मैनेजमेंट गुरु डॉ. मजहर अब्बास नकवी ने ईरान स्थित सिस्तानी के ऑफिस में ई-मेल भेजकर फतवा मांगा था। अब्बास शिया शरई अदालत की महिला शहर काजी डॉक्टर हिना नकवी के पति हैं।
नकवी का कहना है की यह मामला सर्वोच्च न्यायायल में विचाराधीन है और वसीम रिजवी ने जो कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए अपनी संपत्ति देने को तैयार है तो यह समझना होगा की 70 साल बाद उन्होंने यह मांग क्यों की। 1946 में यह डिक्लेयर हो गया था अदालत के जरिये से की यह जो संपत्ति है वो सुन्नी वक्फ बोर्ड की है। अब उन्होंने जब यह प्रस्ताव दिया तो हमने पूछा था कि अपने सर्वोच्च धर्मगुरु आका सिस्तानी से ई-मेल के जरिये पूछा था की क्या कोई मुसलमान वक्फ की संपत्ति को किसी मंदिर या किसी दूसरे धर्म की इबाददगाह के लिए दे सकता है तो उनका यह जवाब आया है की यह मुमकिन नहीं है।
नकवी के मुताबिक, अब इस फतवे के बाद रिजवी को अपनी याचिका वापस ले लेनी चाहिए. क्योंकी अब इनके इस प्रस्ताव का कोई औचित्य नहीं रह गया है। उनको अब बेकार बयानबाजी बंद करके इसका नोट प्रेस कर देना चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते है तो शिया या मुसलमान कहलाने के अधिकारी भी नहीं रह जायेंगे।