अगर अदालतें न बोलतीं तो 1 अरब से अधिक की आबादी वाला देश चुपचाप 'श्मशान' में बदल जाता : रवीश कुमार

सुप्रीम कोर्ट को अब स्वास्थ्य के मामले में केंद्र सरकार के वकीलों से बात बंद कर देनी चाहिए। उनसे पूछे जाने वाले सवाल दीवार से पूछे जाने के जैसा है। सुप्रीम कोर्ट जल्दी अपने इजलास में देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को बुलाए और हर दिन घंटों खड़ा रखे।

Update: 2021-05-05 19:03 GMT

सुप्रीम कोर्ट को अब स्वास्थ्य के मामले में केंद्र सरकार के वकीलों से बात बंद कर देनी चाहिए। उनसे पूछे जाने वाले सवाल दीवार से पूछे जाने के जैसा है। सुप्रीम कोर्ट जल्दी अपने इजलास में देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को बुलाए और हर दिन घंटों खड़ा रखे। डॉ हर्षवर्धन से पूछे गए सवालों के जवाब से जनता को सही जानकारी मिलेगी। हम सभी को पता चलेगा कि हज़ारों करोड़ों के मंत्रालय के शीर्ष पर बैठा यह शख्स क्या कर रहा था और इस वक्त क्या कर रहा है। अब बात आमने-सामने होनी चाहिए। सबसे पहले अदालत डॉ हर्षवर्धन से पूछे कि वे किन वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर महामारी के ख़ात्मे का एलान कर रहे थे जब महामारी उसी वक्त दस्तक दे रही थी?

क्या डॉ हर्षवर्धन व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी का फार्वर्ड पढ़ कर यह बयान दे रहे थे ? इसी एक सवाल पर उनसे घंटों पूछा जा सकता है। जब देश का स्वास्थ्य मंत्री ही कहेगा कि महामारी ख़ात्मे पर है तो जनता को बेपरवाह होने का दोष नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट अपने सामने डॉ हर्षवर्धन से जब सवाल करेगा तो सरकार के झूठ की परतें खुलेंगी। हमारे जज साहिबान डॉ हर्षवर्धन को बुलाकर पूछें कि जब पिछले साल महामारी आई तब से लेकर अब तक केंद्र सरकार के अस्पतालों में कितने नए डाक्टर और अन्य हेल्थ वर्कर भर्ती किए गए? फार्मा से लेकर नर्सिंग के लोगों को कितनी नौकरियां दी गईं? कितने वेंटिलेटर वाले एंबुलेंस का इंतज़ाम किया गया? इस वक्त केंद्र सरकार के अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में डॉक्टरों की कितनी वेकेंसी है ?

इस वक्त केंद्र सरकार के अस्पतालों में कितने वेंटिलेटर हैं? पिछले एक साल में इन अस्पतालों में कितने वेंटिलेटर ख़रीद कर लगाए गए? चालू हैं? कितने गोदाम में पड़े हैं? खरीदें गए और लगाने के सवाल अलग होने चाहिए। एक वेंटिलेटर को चलाने के लिए एक पूरी टीम होती है। क्या उस टीम की नियुक्ति हुई? ऐसे कितने लोगों को केंद्र सरकार ने अपने अस्पतालों में बहाल किया है? सुप्रीम कोर्ट डॉ हर्षवर्धन से पूछे कि किसी बड़े अस्पताल को बिना आक्सीजन उत्पादन के प्लांट लगाए कैसे लाइसेंस दिया जाता है? जब अस्पताल अपना प्लांट लगा सकते हैं तो पहले से प्लांट क्यों नहीं लगाए गए? कोविड आने के बाद इस बात की कब कब समीक्षा की गई, कितने निर्देश दिए गए?

दिल्ली के बड़े अस्पतालों के पास अपना प्लांट क्यों नहीं था? पीएम केयर के ज़रिए प्लांट लगाने के फैसले की नौटंकी से अलग स्वास्थ्य मंत्री से सीधा सवाल किया जाना चाहिए।उनके मंत्रालय ने क्या किया? पीएम केयर इस देश का स्वास्थ्य मंत्री नहीं है? यह भी पूछा जाना चाहिए कि कोविड को लेकर हमारे देश में कितने रिसर्च पेपर छपे हैं? सरकार ने कितने रिसर्च किए है? हम वायरस के बारे में नई समझ क्या रखते हैं? इन सब सवालों के लिए अलग सा दिन रखे। हमें क्यों नहीं पता चला कि यह वायरस इतनी बड़ी तबाही लाने वाला है और जनता को क्यों नहीं अलर्ट किया गया?

और अंत में एक बात। हम आभारी हैं अपनी अदालतों के। जज साहिबानों के। उन्होंने उस वक्त ख़ुद को कहने बोलने से नहीं रोका जब लोग बेआवाज़ दम तोड़ गए। अस्पताल के बाहर आक्सीज़न और वेंटिलेटर के लिए तड़प-तड़प कर मर गए। यह हत्या है जज साहिबान। हत्या की गई है भारत के नागरिकों की। उन्हें मार दिया गया। आपकी आवाज़ में इसकी दर्द तो है मगर इंसाफ नहीं है। हमें दर्द नहीं चाहिए। इंसाफ़ चाहिए। लोग अस्पताल की कमी के कारण मार दिए गए उनकी मौत का इंसाफ आपकी कुर्सी से आती आवाज़ से नहीं हो रहा है। इतने लोग मर गए और किसी एक को सज़ा नहीं हुई है। यह नरसंहार है। यह वक्त कविता लिखने और नारे गढ़ने का नहीं है। मैं देश की अदालतों की दहलीज़ पर खड़ा होकर पूछना चाहता हूं कि इंसाफ़ कहां है?

यह सही है कि अगर अदालतें न बोलतीं तो एक अरब से अधिक की आबादी वाला देश चुपचाप श्मशान में बदल जाता। इस निराश क्षण में जजों की आवाज़ ने आक्सीज़न का काम किया मगर जान नहीं बची। आज अस्पताल में आक्सीजन नहीं है। अदालत में है। लेकिन जान तो वहां बचनी है जहां आक्सीजन होना चाहिए था। अफसोस हमारे जज साहिबान की चीखों, चित्कारों और नाराज़गी का ज़ीरो असर हुआ है। लोग फिर भी मर रहे हैं। इसलिए हमारी अदालतें जो इस वक्त कह रही हैं वो राहत से अधिक कुछ नहीं है। उसी तरह की राहत है जैसे मैं लोगों की मदद की अपील फेसबुक पर पोस्ट कर देता हूं।

मदद मांगने वालों को अच्छा लगता है मगर ज़्यादातर मामलों में कुछ नहीं होता है। हम जजों के आभारी हैं लेकिन उनका काम केवल आवाज़ बनने के स्तर तक ही सीमित रहा। एक ज़िद्दी, नकारी और हत्यारी सरकार को अपनी जगह से हिलाना कितना असंभव है यह आप देख रहे होंगे अगर दिखाई दे रहा होगा तो।

यह एक तथ्य है कि लोग बिना आक्सीज़न और वेंटिलेटर के मर गए और अब भी मर रहे हैं।जो नहीं मरे हैं वो लाश में बदल गए हैं ।उनसे दवा से लेकर टेस्ट की अनाप-शनाप कीमतें वसूली जा रही हैं। लोग मिट ही नहीं गए, बिक भी गए जज साहब। लूट मची है चारों तरफ। सुप्रीम कोर्ट से एक नागरिक की गुज़ारिश है। आप अपने इजलास में स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को खड़ा करें। और खड़ा ही रखें। कुर्सी पर न बैठने दें। ऑनलाइन सुनवाई में भी। हर दिन छह घंटे खड़ा रखें। सवाल करें।

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