अब 'यूपी से भागकर' शादी करेंगी अलग-अलग धर्म की जोड़ियां
'लव जिहाद' का मतलब शासन से इतर संवाद में बताया जाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसकी चर्चा करते हैं मगर राजनीतिक रैलियों में। वे इसे हिन्दुओं के खिलाफ बताते हुए आरोपियों की 'राम नाम सत्य है' कर देने का दावा करते हैं। बीजेपी और आरएसएस के लोग भी खुलकर बताते हैं कि मुसलमान युवक हिन्दू लड़कियों से 'लव' के बहाने शादी कर 'जेहाद' चला रहे हैं।
अध्यादेश के बाद अब 'यूपी से भागकर' होंगी दो धर्मों की जोड़ियों में शादियां
'लव जिहाद' को रोकना चाहती है योगी सरकार। अध्यादेश लेकर आयी है। इस अध्यादेश में कहीं 'लव जिहाद' का जिक्र नहीं है। नाम है-'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020'। अध्यादेश का मकसद है 'लव जिहाद' को रोकना। मगर, ये 'लव जिहाद' है क्या- यह भी अध्यादेश में नहीं बताया गया है।
'लव जिहाद' का मतलब शासन से इतर संवाद में बताया जाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसकी चर्चा करते हैं मगर राजनीतिक रैलियों में। वे इसे हिन्दुओं के खिलाफ बताते हुए आरोपियों की 'राम नाम सत्य है' कर देने का दावा करते हैं। बीजेपी और आरएसएस के लोग भी खुलकर बताते हैं कि मुसलमान युवक हिन्दू लड़कियों से 'लव' के बहाने शादी कर 'जेहाद' चला रहे हैं।
'लव जिहाद' पर अध्यादेश के पीछे आरएसएस
10-11 सितंबर 2020 को आरएसएस की बैठक कानपुर में हुई थी। मोहन भागवत भी थे। 'लव जिहाद' पर चिंता जताई गयी थी। कानपुर में खास तौर से दर्जन भर मामलों की चर्चा हुई। बैठक के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एसआईटी बना दी। एसआईटी की जांच की दिशा भी टीम योगी ने सार्वजनिक बयानों से तय करने की कोशिश की। धर्मांतरण में विदेशी फंडिंग और जेहादी तत्वों के संगठित प्रयास के तौर पर ऐसी घटनाओं को प्रचारित किया गया। मगर, एसआईटी की रिपोर्ट में ये दावे खारिज हो गये। हालांकि 3 मामलों में नाम बदलकर शादी करने और 8 मामलों में लड़की के नाबालिग होने की बात जरूर सामने आयी।
आरएसएस की कार्यकारिणी की बैठक प्रयागराज में एक बार फिर 22-23 नवंबर को हुई। मोहनभागवत भी थे, योगी आदित्यनाथ भी। 'लव जिहाद' का मुद्दा फिर विमर्श के केंद्र में था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो महत्वपूर्ण बातें कह दी थीं- एक, दो बालिग अपना जीवन साथी चुनने के लिए आजाद हैं। और, दूसरा केवल शादी के लिए धर्मांतरण को गलत बताना अच्छा उदाहरण नहीं है।
अदालत के समांतर 'अदालत' बनती योगी सरकार
अदालती फैसले के समांतर योगी सरकार का अध्यादेश एक ऐसा फैसला बनकर सामने है जिसमें दो बालिगों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार सशर्त हो गया है और इस पर पहरा भी सुनिश्चित कर दिया गया है। सशर्त इस मामले में कि अलग-अलग धर्म के बालिग जोड़ों को यह साबित करना होगा कि जबरन धर्मांतरण जैसी कोई बात नहीं है। पहरा इस रूप में रहेगा कि ऐसी शादी से दो महीने पहले डीएम को इत्तिला करनी होगी। जाहिर है इस दौरान जोड़ी को अपनी मुहब्बत में 'लव जिहाद' सूंघने वालों से जंग भी लड़नी होगी।
छल, बल, लोभ, भय और झांसा देकर शादी के लिए देश में पहले से कानून हैं। मगर, किसी जेहादी मकसद से लव करना और ऐसी शादियां करना एक ऐसी स्थिति है जो साबित हुए बगैर बेमतलब की बात है। और, अगर साबित हो जाता है तो यह बेहद गंभीर और चिंताजनक बात है। अगर योगी सरकार के लिए 'लव जिहाद' चिंताजनक घटनाएं लगती हैं तो उनके पास सिद्ध मामले भी होने चाहिए। सिद्ध मामलों से मतलब है कि ऐसी शादियों के 'प्रायोजकों' तक पहुंच। मगर, एक भी ऐसा उदाहरण योगी सरकार रख पाने में नाकाम रही है जिसमें 'लव जिहाद' के लिए विदेशी फंडिंग हो, संगठित प्रयास और ऐसी शादियों को संरक्षण हो।
अध्यादेश में एससी-एसटी को 'सुरक्षा' के मायने
अधिक जुर्माना और अधिक सज़ा की व्यवस्था करते हुए जबरन धर्मांतरण से एससी-एसटी को अधिक सुरक्षा प्रदान की गयी है। ऐसा लगता है कि एससी-एसटी समुदाय को जबरन धर्मांतरण का आसान शिकार समझते हुए योगी सरकार ने यह व्यवस्था की है। झारखण्ड रिलीजियस फ्रीडम बिल 2017 से भी सबक लिया गया लगता है जहां ईसाइयों पर धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं। अभी यह साफ नहीं है कि 'घर वापसी' की घटनाएं जबरन या लोभ-लालच देकर धर्मांतरण के अंतर्गत आएंगी या नहीं। क्योंकि, यह प्रैक्टिस भी जोरों पर है। योगी सरकार के अध्यादेश में 'लव जिहाद' और जबरन धर्मांतरण दोनों मुद्दे शामिल हैं।
जहां अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के साथ छल, कपट या बल से धर्म परिवर्तन के मामलों में 3 साल से 10 साल तक की सजा है और जुर्माना 25 हजार है वहीं आम मामलों में 1-5 साल की सज़ा और 15 हजार के जुर्माने का प्रावधान है। नाम छिपाकर शादी करने पर 10 साल तक की सज़ा हो सकती है। जबरन सामूहिक धर्मांतरण के मामले में भी 10 साल की सज़ा है।
अध्यादेश के बाद पैदा होंगी नयी प्रवृत्तियां
अगर वास्तव में 'लव जिहाद' एक समस्या है और उत्तर प्रदेश में इसे रोकने को लेकर योगी सरकार गंभीर है तो सवाल यह है कि सिर्फ यूपी में अध्यादेश लाने से यह समस्या दूर हो जाएगी? अगर 'लव जिहाद' संगठित जेहादी प्रयास का परिणाम है तो ऐसे तत्व यूपी से बाहर भी इस कोशिश को जिन्दा रखेंगे। और, अगर ऐसा नहीं है तब भी स्वाभाविक मोहब्बत और धर्म परिवर्तन के लिए यूपी से बाहर की जगह मुफीद बन जाएगी। जिस तरह घर से भाग कर प्रेमी युगल शादी करते हैं, अब 'यूपी से भाग कर' वे शादी भी करेंगे और संभवत: धर्मांतरण भी।
योगी सरकार के अध्यादेश के बाद नयी प्रवृत्ति भी विकसित होगी। शादी करने के लिए धर्म बदलने से बचने की कोशिश परवान चढ़ सकती है। प्रगतिशील नजरिए से सोचें तो भले ही मजबूरीवश ऐसा हो, मगर शादियां धर्म से ऊपर उठे तो यह अच्छी बात होगी। लिव इन रिलेशन की घटनाएं भी बढ़ेंगी।
नाबालिग से बलात्कार के मामलों में मौत की सज़ा के कानून के बाद रेप की शिकार बच्चियों की हत्या की घटनाएं बढ़ गयीं। इस लिहाज से भी सिर्फ यूपी में 'लव जिहाद' पर अध्यादेश के संभावित नतीजों पर योगी सरकार को विचार करना चाहिए था। मगर, ऐसा तब होता जब वास्तव में सरकार ऐसी घटनाओं की पहचान करने की जरूरत समझती। अध्यादेश का मकसद विशुद्ध रूप से राजनीतिक है और इसलिए अनुभव आधारित सोच या उससे सीख लेने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
(सत्य हिन्दी से साभार)