वाल्मीकि समाज के पैर धुलते पीएम, हाथरस में 19 वर्षीय वाल्मीकि लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म पर चुप क्यों?
नई दिल्ली। मार्च 2019 की वह तस्वीर सभी ने देखी होगी जब दुनिया कुम्भ के मेले में आस्था के लिए जा रही थी तभी भरतीय नेता आस्था में राजनीती का प्रयोगात्मक कर रहे थे। उसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्नान किया गया। लेकिन यह इसलिए विशेष रहा, क्योंकि उन्होंने वहां पांच सफाईकर्मियों के पैर धोये और उनके पैर तौलिये से पोंछा भी। इस प्रोग्राम की जानकारी पहले से नहीं थी। जिन पांच लोगों के उन्होंने पैर धोये, उनमें से तीन पुरुष और दो महिलाएं हैं। उन्हें भी इस बात का अहसास नहीं था कि प्रधान मंत्री उनके पैर धोयेंगे। इस तरह उनको भी बहुत सुखद आश्चर्य हुआ।
राजनीतिक रूप से यह कदम इसलिए उठाया गया है कि ताकि वे दिखा सके कि वे दलितों की बहुत इज्जत करते हैं, सम्मान करते हैं। राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाए रहे हैं कि उन्होंने दलितों का वोट लेने के लिए ऐसा किया है। इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं था।
दलितों का सम्मान केवल चुनाव के दौरान ही क्यों ?
नरेंद्र मोदी ने जो किया है, उसे राजनीति शास्त्र की भाषा में टोकेनिज़्म पॉलिटिक्स यानी प्रतीकवाद की राजनीति माना जाता है। यह कोई नई पॉलिटिक्स नहीं है। दलितों के घर खाना खाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा के कई नेता प्रचार के लिए दलितों के घर खाना खा चुके हैं। आरएसएस इसके लिए पूरा अभियान चला चुका है। ऐसा करने वालों का मानना है कि इससे अछूतपन दूर होता है और दलित समाज हिन्दू समाज से जुड़ता है।
क्या दलित हिन्दू नहीं? या सवर्णों का इन पर शोषण के लिए कॉपीराइट है ?
छह जून को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा और आठ जून को बिजनौर में दलित समुदाय के दो लोगों की हत्या का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि नौ जून को पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर में दलितों के घर जला देने और उन्हें मारने-पीटने की घटना सामने आ गई। जौनपुर जिले में आम तोड़ने को लेकर बच्चों के बीच हुआ विवाद तो सांप्रदायिक संघर्ष में तब्दील हो गया।
अमरोहा में हसनपुर इलाके के डोमखेड़ा गांव के एक दलित युवक विकास जाटव की हत्या कर दी गई. परिजनों का आरोप है कि उसकी हत्या मंदिर में प्रवेश को लेकर हुए विवाद के कारण हुई जबकि पुलिस इसे पैसों के लेन-देन का विवाद बता रही है। ये कुछ ऐसे मामले है जो प्रकाश में आये लेकिन हमेसा कानून दांव पेंच में फंसकर रहे गए अब सवाल उठता है कि सरकार जो चुनाव के समाया पैर धोती है वह चुनाव के बाद आखिर दलितों पर जब अत्याचार बढ़ता है तो चुप क्यों हो जाती है।
हाथरस में वाल्मीकि समाज की लड़की से सामूहिक बलात्कार पर चुप्पी ?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस की एक 19 वर्षीय महिला उसके गांव के ही चार लोगों द्वारा कथित रूप से सामूहिक बलात्कार और बेरहमी से पिटाई के बाद एक सरकारी अस्पताल की आईसीयू में उसके मौत से लड़ रही है। महिला अनुसूचित जाति ववाल्मीकी समुदाय से है चुनाव से पहले जिसके पैर प्रधानमंत्री ने जबकि सभी चार आरोपी एक तथाकथित उच्च जाति से हैं जिस अस्पताल में महिला को भर्ती कराया गया है वहां के डॉक्टरों का कहना है कि महिला के पूरे शरीर में कई फ्रैक्चर हैं और उसकी जीभ भी कट गई है। डॉक्टरों के अनुसार, उसकी हालत बेहद गंभीर है और उसे दिल्ली में स्थानांतरित करने की आवश्यकता हो सकती है।
19 वर्षीय दलित युवती के संग दबंग समाज के 04 युवकों ने 14 सितंबर 2020 को खेत मे चारा काटने जाने पर बलात्कार कर उसकी जीभ काटकर उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी जिससे वह आपबीती किसी को बता न सके। पुलिस ने सभी चार आरोपियों को गिरफ्तार किया है, उन पर सामूहिक बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया है, और उन्हें जेल भेज दिया है। हालांकि, महिला के परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने शुरू में उनकी मदद नहीं की और मामले पर गुस्सा जताने के बाद कार्रवाई की है।
महिला के भाई ने एनडीटीवी को बताया, "मेरी मां, बहन और बड़े भाई कुछ घास लेने के लिए एक खेत में गए थे। मेरा भाई घास की एक बड़ी गठरी के साथ पहले घर गया, जबकि मेरी मां और बहन ने उन्हें काटना जारी रखा। जहां वे थी, उसके दोनों ओर बाजरे की फसल थी। जल्द ही, दोनों महिलाएं एक दूसरे से थोड़ी दूर हो गईं। चार-पांच लोग पीछे से आए, उन्होंने मेरी बहन के दुपट्टे को उसके गले में डाल दिया और उसे बाजरे के खेतों के भीतर खींच लिया. "
महिला के भाई ने कहा, 'मेरी मां को एहसास हुआ कि वह गायब थी और वह उसकी तलाश में गई। मेरी बहन बेहोश पाई गई। उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया था। पुलिस ने शुरू में हमारी मदद नहीं की, उन्होंने त्वरित कार्रवाई नहीं की। उन्होंने चार-पांच दिनों के बाद कुछ कार्रवाई की."