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Nirjala Ekadashi 2023: सभी एकादशियों में क्यों श्रेष्ठ है निर्जला एकादशी? जानें इस व्रत का महत्व, मुहूर्त, एवं पूजा विधि!

ज्येष्ठ मास शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है. भगवद् पुराण के अनुसार साल की सभी छब्बीस एकादशियों में निर्जला एकादशी सबसे कठिन और लाभकारी व्रत होता जाता है. इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं.

Nirjala Ekadashi 2023: सभी एकादशियों में क्यों श्रेष्ठ है निर्जला एकादशी? जानें इस व्रत का महत्व, मुहूर्त, एवं पूजा विधि!
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Nirjala Ekadashi 2023: ज्येष्ठ मास शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत रखा जाता है. भगवद् पुराण के अनुसार साल की सभी छब्बीस एकादशियों में निर्जला एकादशी सबसे कठिन और लाभकारी व्रत होता जाता है. इसे भीमसेनी एकादशी (Bhimseni Ekadashi) भी कहते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसके नाम के अनुरूप यह निर्जल व्रत है, यानी इस दिन घर की महिलाएं अपने पति, बच्चों की सुख एवं समृद्धि के लिए अन्न-जल रहित व्रत रखती हैं. यहां बात करेंगे व्रत के महत्व, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा विधि इत्यादि के बारे में.

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि अगर कोई जातक किन्हीं कारणों से पूरे साल कोई भी एकादशी व्रत नहीं रख सके हैं, अगर वे निर्जला एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान के साथ रखें तो उन्हें हर एकादशी व्रत का संयुक्त पुण्य लाभ प्राप्त हो सकता है. यद्यपि निर्जला एकादशी व्रत करने से जातक को संतान लाभ से लेकर सुख-शांति और माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इसके अलावा घर-परिवार में आ रही सारी समस्याओं का समाधान होता है.

निर्जला एकादशी व्रत की तिथि एवं पूजा मुहूर्त

  • निर्जला एकादशी प्रारंभः 01.07 PM (30 मई 2023)
  • निर्जल एकादशी समाप्तः दोपहर 01.45 PM (31 मई 2023)
  • उदया तिथि के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई 2023 को रखा जाएगा
  • इस वर्ष निर्जला एकादशी पर 2 शुभ योग बन रहे हैं
  • सर्वार्थ सिद्धि योगः 05.24 AM से 06.00 AM (31 मई 2023)
  • रवि योगः यह भी सर्वार्थ सिद्धी योग के समय तक ही रहेगा.
  • व्रत का पारणः निर्जल एकादशी व्रत का पारण 05.24 AM से 08.10 AM (01 जून 2023) तक

निर्जला एकादशी व्रत एवं पूजा विधि

अन्य एकादशियों की तरह ही निर्जला एकादशी का व्रत दशमी की सायंकाल से शुरू हो जाता है. दशमी के दिन सूर्यास्त के पश्चात से ही व्रत शुरू हो जाता है. एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निपटकर सूर्य को अर्घ्य दे, इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनकर निर्जला एकादशी व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करें और मनोकामनाएं व्यक्त करें. अब घर के मंदिर के सामने एक चौकी स्थापित करें, इस पर लाल अथवा पीला वस्त्र बिछाएं और इस पर गंगाजल छिड़कें. इस पर श्रीहरि की प्रतिमा स्थापित करें, इन्हें पहले पंचामृत तत्पश्चात गंगाजल से स्नान कराएं. धूप-दीप प्रज्वलित करें और निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा जारी रखें.

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः

अब श्रीहरि के मस्तक पर पीले चंदन एवं अक्षत का तिलक लगाएं. पीले फूलों का हार पहनाएं. भगवान को तुलसी दल, रोली, पान, सुपारी, अक्षत अर्पित करें, प्रसाद में फल एवं मिष्ठान चढ़ाएं. विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करने के बाद इनकी आरती उतारें, और प्रसाद वितरित करें. व्रती व्यक्ति अगले दिन प्रातःकाल स्नान-दान करने के पश्चात व्रत का पारण करें.

कैसे शुरू हुआ निर्जला एकादशी व्रत?

भीम बहुभोजी प्रवृत्ति के थे, वे बहुभोजी प्रवृत्ति के थे. एक बार उनके मन में सद्गति प्राप्त करने की इच्छा हुई. उन्होंने महर्षि व्यास जी से पूछा, हे प्रभु मैं भूख नहीं रोक सकता, क्या कोई ऐसा उपाय है कि मैं बिना अन्न-जल त्यागे सद्गति प्राप्त कर लूं. व्यास जी ने कहा तुम साल की सारी एकादशी का व्रत नहीं रख सकते, लेकिन अगर आप ज्येष्ठ मास की निर्जला एकादशी का व्रत कर सकते हैं तो आपको अवश्य ही सद्गति प्राप्त होगी, लेकिन यह निर्जल व्रत है. भीम ने पूरे दिन अन्न-जल त्याग कर व्रत रखा और श्रीहरि का अनुष्ठान किया और अंततः विष्णुलोक में उन्हें स्थान मिला. इसीलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं.

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