Dadabhai Naoroji Biography In Hindi | दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय
Dadabhai Naoroji Biography In Hindi | दादाभाई नौरोजी को सम्मानपूर्वक ‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया’ कहा जाता था। वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले लोगों में से एक थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और तीन बार कांग्रेस का अध्यक्ष भी रहे।
Dadabhai Naoroji Biography In Hindi | दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय
- पूरा नाम दादाभाई पालनजी नौरोजी
- जन्म 4 सितंबर 1825
- जन्मस्थान नवसारी, गुजरात
- पिता पालनजी दोर्डी नौरोजी
- माता माणिकबाई
- पत्नी गुलाबीबाई
- पुत्र माकी मेरे लोग, मेरे लोग
- व्यवसाय शिक्षाविद, राजनीतिज्ञ
- नागरिकता ब्रिटिश, भारतीय
राजनीतिज्ञ दादाभाई नौरोजी (Dadabhai Naoroji Biography in Hindi)
Dadabhai Naoroji Biography In Hindi | दादाभाई नौरोजी को सम्मानपूर्वक 'ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया' कहा जाता था। वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले लोगों में से एक थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 1906 में उन्होंने अपने भाषण में स्वराज्य को मुख्य स्थान दिया। अपने भाषण के दौरान में उन्होंने कहा, हम कोई कृपा की याचना नहीं कर रहे हैं, हमें तो केवल न्याय चाहिए।
प्रारंभिक जीवन (Dadabhai Naoroji Early Life)
दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितम्बर, 1825 को भारत के गुजरात राज्य के नवसारी जिले के एक गरीब पारसी परिवार में हुआ था। दादाभाई नौरोजी जब केवल 4 साल के थे, तब उनके पिता नौरोजी पलांजी डोरडी का देहांत हो गया। उनका पालन-पोषण उनकी माता मनेखबाई द्वारा हुआ।
शिक्षा (Dadabhai Naoroji Education)
दादाभाई नौरोजी को यथासंभव सबसे अच्छी अंग्रेजी शिक्षा मिले। एक छात्र के तौर पर दादा भाई नौरोजी गणित और अंग्रेजी में बहुत अच्छे थे। उन्होंने बम्बई के एल्फिंस्टोन इंस्टिट्यूट से अपनी पढाई पूरी की।
निजी जीवन (Dadabhai Naoroji Married Life)
दादा भाई की शादी 11 वर्ष की उम्र में हो गई थी, इनकी पत्नी का नाम गुलबाई था। दादा भाई की तीन संताने थी, इन्होने शिक्षा मुंबई के एलफिंस्टन इंस्टिट्यूट स्कूल से प्राप्त की। Dadabhai Naoroji Biography in Hindi
शुरुआती करियर (Dadabhai Naoroji Starting Career)
पारसियों के इतिहास में अपनी दानशीलता और प्रबुद्धता के लिए प्रसिद्ध कैमास बंधुओं ने दादाभाई को अपने व्यापार में भागीदार बनाने के लिए आमंत्रित किया। तदनुसार दादाभाई लंदन और लिवरपूल में उनका कार्यालय स्थापित करने के लिए इंग्लैंड गए।
विद्यालय के वातावरण को छोड़कर एकाएक व्यापारी धन जाना एक प्रकार की अवनति या अपवतन समझा जा सकता है, परंतु दादा भाई ने इस अवसर को इंग्लैंड में उच्च शिक्षा के लिए जानेवाले विद्यार्थियों की भलाई के लिए उपयुक्त समझा।
इसके साथ ही साथ उनका दूसरा उद्देश्य सरकारी प्रशासकीय संस्थाओं का अधिक से अधिक भारतीयकरण करने के लिए आंदोलन चलाने का भी था। जो विद्यार्थी उन दिनों उनके संपर्क में आए और उनसे प्रभावित हुए उनमें सुप्रसिद्ध फीरोजशाह मेहता, मोहनदास कर्मचंद गांधी और मुहम्मद अली जिना का नाम उल्लेखनीय है।
1849 में इन्होंने "नौरोजी एंड को" नाम की कपास ट्रेडिंग फर्म की नींव रखी। दादा भाई नौरोजी ने "ड्रेन थ्योरी" प्रस्तुत की थी, जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह से ब्रिटिशर्स भोले-भाले भारतीयों का शोषण कर रहे हैं। और हमारे देश को आर्थिक रूप से कमजोर कर रहे हैं।
दादा भाई ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद हेड मास्टर के रूप में कार्य किया। 1853 में फोर्थनाईट पब्लिकेशन के तहत 'रास्ट गोफ्तार' बनाया था, जो आम आदमी की, पारसी अवधारणाओं को स्पष्ट करने में सहायक था.
दादा भाई नौरोजी ने 1 अगस्त, 1851 में 'रहनुमाई मज्दायास्नी सभा' का निर्माण किया था। यह सभा आज भी मुंबई से संचालित की जा रही हैं। जिसका उद्देश्य संपूर्ण पारसी धर्म को संघठित करना था। 1955 में दादाभाई 30 वर्ष की उम्र में एलफिंस्टोन इंस्टिट्यूशन में गणित और फिलोसोफी का प्रोफ़ेसर के तौर पर नियुक्त हो गए थे।
1855 में ही दादाभाई 'कामा एंड को' कंपनी के पार्टनर बन गए, यह पहली भारतीय कंपनी थी, जो ब्रिटेन में स्थापित हुई थी. इसके काम के लिए दादाभाई लन्दन गए. लेकिन कंपनी के अनैतिक तरीके उन्हें पसंद नहीं आये और उन्होंने इस कंपनी में इस्तीफा दे दिया था.
राजनीतिक सफर (Dadabhai Naoroji Political Journey)
दादा भाई नौरोजी शुरू से ही सामाजिक और क्रांतिकारी विचारों पर कायम थे। उन्होंने 1853 ईस्ट इंडिया कंपनी के लीज नवीनीकरण का विरोध भी किया था। दादा भाई का मानना था, कि भारत के लोगों में अज्ञानता की वजह से ही ब्रिटिशर उन पर राज कर रहे हैं। 1874 में बरोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड तृतीय के सरंक्षण में दादाभाई काम करने लगे। यहाँ से उनका सामाजिक जीवन शुरू हुआ, और वे महाराजा के दीवान बना दिए गए। 1885 से 1888 तक मुंबई की विधान परिषद के सदस्य के दायित्व का निर्वहन किया। 1985 में दादा भाई नौरोजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का स्थापना पुरुष भी कहा जाता है। इन्होंने ए ओ ह्यूम और दिन्शाव एदुल्जी के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी।
भारतीय कांग्रेस का अध्यक्ष (Dadabhai Naoroji As President of Congress)
1886 में दादाभाई नौरोजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके अलावा दादाभाई 1893 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। तीसरी बार 1906 में जब दादाभाई अध्यक्ष बने थे, तब उन्होंने पार्टी में उदारवादियों और चरमपंथियों के बीच एक विभाजन को रोका था।
1892 में लन्दन में हुए आम चुनाव में वे लिबरल पार्टी की ओर से पहले ब्रिटिश भारतीय सांसद बने थे। दादाभाई विरोध के लिए अहिंसावादी और संवैधानिक तरीकों पर विश्वास रखते थे, 1906 में दादाभाई ने ही सबके सामने कांग्रेस पार्टी के साथ स्वराज की मांग की थी
दादा भाई नौरोजी की विशेषता (Dadabhai Naoroji Specificity)
- भारत के पितामह
- भारतीय अर्थशास्त्र के जनक
- आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक
- रॉयल कमीशन के पहले भारतीय सदस्य
पुरस्कार और सम्मान (Dadabhai Naoroji The Honors)
- दादाभाई नौरोजी को स्वतंत्रता आंदोलन के समय, सबसे महत्वपूर्ण भारतीयों में से एक के रूप में माना जाता है।
- दादाभाई नौरोजी रोड का नाम इनके सम्मान में रखा गया है।
- दादाभाई भारत के 'ग्रैंड ओल्ड मैन' माने जाते है।
मृत्यु (Dadabhai Naoroji Death)
92 साल की उम्र में 30 जून, 1917 को अचानक स्वास्थ्य खराब होने के कारण भारत के मुंबई शहर में दादा भाई की मृत्यु हुई।