Jaishankar Prasad Biography in Hindi | जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
Jaishankar Prasad Biography in Hindi | जयशंकर प्रसाद Jaishankar Prasad हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे एक कवि के रूप में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा के साथ छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैनाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले प्रमुख स्तंभों में से एक हैं।
Jaishankar Prasad Biography in Hindi | जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
- नाम जयशंकर प्रसाद
- जन्म 30 जनवरी 1889
- जन्मस्थान वाराणसी के काशी गांव में
- पिता बाबू देवकी प्रसाद
- पत्नी कमला देवी
- व्यवसाय कवि, नाटककार, उपन्यासकार
- नागरिकता भारतीय
प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad Biography in Hindi)
Jaishankar Prasad Biography in Hindi | जयशंकर प्रसाद Jaishankar Prasad हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे एक कवि के रूप में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा के साथ छायावाद के चौथे स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैनाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई।
जयशंकर प्रसाद का प्रारंभिक जीवन (Jaishankar Prasad Early Life)
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को काशी के प्रतिष्टित वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू देवीप्रसाद जी था। उनके दादाजी बाबू शिवरतन दान देने की वजह से पूरे काशी में जाने जाते थे। उनके पिता बाबू देवीप्रसाद कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे।
जयशंकर को कम उम्र में ही बड़ी बड़ी पारिवारिक समस्याओं से जूझना पड़ा था। 8 साल की उम्र में माँ और 10 साल की उम्र में पिता का का स्वर्गवास हो गया था। किशोरावस्था में इनके बड़े भाई का भी देहवासन हो गया था। जिसका उन्होंने दृढ़तापूर्वक सामना किया।
जयशंकर प्रसाद की शिक्षा (Education)
जयशंकर प्रसाद ने अपने जीवन की प्रारम्भिक शिक्षा काशी के क्वीन्स कॉलेज से की। प्रतिष्टित परिवार से होने की वजह से यह घर में ही रहकर पढाई करते थे। दीनबंधु ब्रह्मचारी ने इन्हें संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी भाषा का ज्ञान दिया। घर का बचपन से माहौल होने की वजह से उनका साहित्य की और प्रेम बढाता चला गया।
जयशंकर प्रसाद का जीवन संघर्ष (Jaishankar Prasad Life Struggle)
जयशंकर की कम उम्र ने घर के सभी बड़ों की मृत्यु हो जाने के बाद उनके रिश्तेदारों ने व्यापार का बागडोर अपने हाथों में ले ली। लेकिन कोई भी व्यापार को संभल नहीं पाया और धीरे-धीरे पूरा व्यापार चौपट हो गया। 1930 आते-आते जयशंकर प्रसाद पर 1 लाख रूपए का कर्ज हो गया था। जिसके बाद व्यापार में उन्होंने कड़ी मेहनत और परिश्रम करके अपने हालात पुनः अच्छे किये और अपने साहित्य की और अग्रसर हो गए।
जयशंकर प्रसाद का निजी जीवन (Jaishankar Prasad Married Life)
उनकी भाभी ने विंध्यवाटिनी से उनका विवाह करवाया। लेकिन 1916 में विंध्यवाटिनी भी टीबी की बीमारी के चलते चल बसी। जिसके बाद उन्होंने अकेले रहने का मन बना लिया। लेकिन भाभी की जिद के चलते उनका दूसरा विवाह कमला देवी से करवाया गया। जिससे उनको 1922 में पुत्र हुवा। इनके पुत्र का नाम रत्नशंकर था।
साहित्य और कला के प्रति रूचि (Jaishankar Prasad As a Litterateur)
उनका घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही रुचि थी और कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने "कलाधर" के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर "रसमय सिद्ध" को दिखाया था। उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण तथा साहित्य शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था। वे बाग-बगीचे तथा भोजन बनाने के शौकीन थे और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। वे नियमित व्यायाम करनेवाले, सात्विक खान पान एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। वे नागरीप्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष भी थे।
उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। उनकी सर्वप्रथम छायावादी रचना "खोलो द्वार" 1914 में इंदु में प्रकाशित हुई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले श्रेष्ठ कवि भी हैं।
जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल चरित्रों को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में देशप्रेम का स्वर अत्यन्त दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यन्त सुन्दर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं।
जयशंकर प्रसाद की कविताएँ (Jaishankar Prasad Poems)
- कानन कुसुम
- महाराणा का महत्त्व
- झरना
- आंसू
- लहर
- कामायनी
- प्रेम पथिक
जयशंकर प्रसाद का कहानी संग्रह (Jaishankar Prasad Story Collection)
- छाया
- आकाशदीप
- अंधी
- इंद्रजाल
- प्रतिध्वनी
जयशंकर प्रसाद उपन्यास (Jaishankar Prasad Novels)
- कंकाल
- इरावती
- तितली
जयशंकर प्रसाद के नाटक (Jaishankar Prasad Dramas)
- स्कंदगुप्त
- चन्द्रगुप्त
- जन्मेजय का नागयज्ञ
- ध्रुवस्वामिनी
- कामना
- राज्यश्री
- एक घूंट
मृत्यु (Jaishankar Prasad Death)
1936 को हिंदी साहित्य के महान लेखक जयशंकर प्रसाद को टीबी की बीमारी ने घेर लिया। जिसके बाद वह कमजोर होते चले गए। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन की सबसे मशहूर रचना "कामायनी" को लिखा। जो कि हिंदी साहित्य की अमर कृति मानी जाती हैं। 48 वर्ष की उम्र में 15 नवम्बर 1937 को जयशंकर प्रसाद ने अपनी आखरी सांसे ली और दुनिया को अलविदा कह दिया।