Nathuram Godse Biography in Hindi | नाथूराम गोडसे का जीवन परिचय
Nathuram Godse Biography in Hindi | नाथूराम गोडसे का जन्म पुणे जिले के बारामती गाँव में हुआ, जोकि वहां के एक मराठी हिन्दू परिवार से सम्बन्ध रखते थे. जब इनका जन्म हुआ था, तब उनका नाम रामचंद्र रखा गया था.
Nathuram Godse Biography in Hindi | नाथूराम गोडसे का जीवन परिचय
नाथूराम गोडसे भारत की एक ऐसी हस्ती थी, जोकि भारत की स्वतंत्रता से पहले की राजनीति से संबंध रखते थे. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे समूहों के सदस्य थे. ये वही व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत के राष्ट्रपिता की हत्या की थी. और उसके बाद उन्हें इस गुनाह के लिए फांसी की सजा दी गई थी. ये हिंदुत्व को मानने वाले व्यक्ति थे.
- 1. पूरा नाम (Full Name) नाथूराम विनायक राव गोडसे
- 2. अन्य नाम (Other Name) रामचंद्र एवं नाथूराम गोडसे
- 3. जन्म (Birth) 19 मई, 1910
- 4. जन्म स्थान (Birth Place) बारामती, जिला पुणे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत
- 5. मृत्यु (Death) 15 नवंबर, 1949
- 6. मृत्यु स्थान (Death Place) अंबाला जेल, उत्तर पंजाब, भारत
- 7. मृत्यु का कारण (Death Cause) फांसी की सजा
- 8. सजा का कारण (Criminal Charge) महात्मा गाँधी की हत्या
- 9. उम्र (Age) 39 वर्ष
- 10. राष्ट्रीयता (Nationality) भारतीय
- 11. गृहनगर (Home Town) बारामती, पुणे
- 12. धर्म (Religion) हिन्दू
- 13. जाति (Caste) ब्राह्मण
- 14. पेशा (Profession) सामाजिक कार्यकर्ता
- 15. समूह (Organization Group) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं हिन्दू महासभा
- 16. राशि (Zodiac Sign) वृषभ
- 17. प्रसिद्ध किताब (Famous Book) 'व्हाय आई किल्ड गाँधी'
परिवार एवं शुरूआती जीवन (Family and Early Life)
- 1. पिता का नाम (Father's Name) विनायक वामनराव गोडसे
- 2. माता का नाम (Mother's Name) लक्ष्मी गोडसे
- 3. भाई का नाम (Brother's Name) गोपाल गोडसे (छोटा भाई)
- 4. बहन का नाम (Sister's Name) 1 बड़ी बहन (नाम नहीं पता)
- 5. भतीजी का नाम (Niece Name) हिमानी सावरकर
Nathuram Godse Biography in Hindi | नाथूराम गोडसे का जन्म पुणे जिले के बारामती गाँव में हुआ, जोकि वहां के एक मराठी हिन्दू परिवार से सम्बन्ध रखते थे. जब इनका जन्म हुआ था, तब उनका नाम रामचंद्र रखा गया था. उनका परिवार एक चित्पावन ब्राह्मण भी था. इनके पिता पोस्ट ऑफिस में एक कर्मचारी थे और माता गृहणी थी, जिनका शादी से पहले नाम गोदावरी था और शादी के बाद लक्ष्मी पड़ गया. इनके जन्म से पहले इसकी माता जी ने 3 बेटों और 1 बेटी को जन्म दिया था. जिनमें से उनके तीनों बेटे जन्म के समय ही मृत्यु को प्राप्त हो गए. और केवल एक बेटी ही बची थी. इसलिए उनकी माता ने गोडसे के जन्म होते ही इन्हें एक बेटी की तरह पाला और यहाँ तक कि उनकी नाक भी छिदवा दी थी. जिससे उनकी नाक में हमेशा एक छल्ला हुआ करता था. फिर उसके बाद से ही उनका निक नाम नाथूराम पड़ गया. नाथूराम के जन्म के बाद इनका एक बेटा और हुआ, जिसका नाम उन्होंने गोपाल रखा, इसे फिर उन्होंने एक बेटे की तरह पाला.
शिक्षा एवं करियर (Education and Career)
नाथूराम गोडसे ने अपनी प्राथमिक शिक्षा यानि पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई अपने स्थानीय स्कूल से ही पूरी की. फिर उन्हें उनके किसी रिश्तेदार के साथ पुणे भेज दिया गया ताकि वे वहां हिंदी के साथ – साथ अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त कर सकें. उस दौरान उन्हें गाँधी जी के विचार काफी पसंद थे, इसलिए वे उन्हें अपना आदर्श मानने लगे. गोडसे एक शांत, बुद्धिमान, आगे बढ़ने वाले और सच्चे इंसान थे. सन 1930 में इनके पिता की बदली महाराष्ट्र के रत्नागिरी शहर में हो गई थी. वे अपने माता – पिता के साथ रत्नागिरी में रहने चले गए. उस दौरान उन्होंने हिंदुत्व के एक समर्थक से मुलाकात की जिनका नाम वीर सावरकर था. और यहीं से उन्होंने राजनीति की ओर कदम बढ़ाने का फैसला किया.
राजनीतिक करियर (Political Career)
जब नाथूराम गोडसे हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें सामाजिक कार्यों में जुड़ने की इच्छा हुई. और वे अपनी पढ़ाई छोड़ कर हिन्दू महासभा एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे समूह से एक कार्यकर्ता के रूप में जुड़ गये. वे मुस्लिम लीग वाली अलगाववादी राजनीति के विरोध में थे. उन्होंने हिन्दू महासभा समूह से जुड़ने के बाद इसके लिए एक समाचार पत्र का प्रकाशन किया था, जोकि मराठी भाषा में था. इस समाचार पत्र का नाम 'अग्रणी' था, इसे ही कुछ साल बाद 'हिन्दू राष्ट्र' नाम दे दिया गया था. एक बार ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गाँधी जी ने एक आंदोलन शुरू किया, जो कि एक अहिंसक और प्रतिरोधी आंदोलन था, हिन्दू महासभा ने इस आंदोलन में अपना समर्थन दिया. किन्तु बाद में उन्होंने इससे अलग होने का फैसला किया और वे गाँधी जी के भी विरोध में हो गए. क्योंकि उनका कहना था कि गाँधी जी हिन्दुओं और अल्पसंख्यक समूहों (मुस्लिम लीग) में भेदभाव कर रहे हैं. अल्पसंख्यक समूह के लोगों को खुश करने के चक्कर में वे हिन्दुओं के हित को नजरअंदाज कर रहे हैं. उन्होंने भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन के लिए भी गाँधी जी को ही दोषी ठहराया, जिसमें हिन्दू एवं मुस्लिम सहित हजारों लोगों की मृत्यु हुई थी. इसके चलते उन्होंने गाँधी जी को मारने का फैसला कर लिया.
गाँधी जी की हत्या (Gandhi's Assassination)
एक शाम जब गाँधी जी रोज की तरह शाम की प्रार्थना कर रहे थे. उस समय करीब 5:15 बजे थे. तब गोडसे ने वहां एंट्री की और सीधे गाँधी जी पास आकर उनके सीने में 3 गोलियां चला दी. उन्होंने जिस पिस्तौल से गोलियां चलाई थीं, वह बियरट्टा एम 1934 सेमी – आटोमेटिक पिस्तौल थी. इस घटना के बाद गोडसे भागे नहीं बल्कि अपनी जगह पर ही खड़े रहे और अपनी गिरफ्तारी दी. उनके इस अपराध में उनके साथ उनके 6 अन्य साथी शामिल थे, जिसमें नारायण आप्टे भी थे. गाँधी जी को तुरंत ही उनके कमरे में ले जाया गया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी, क्योकि वहां जाते ही उनकी मृत्यु हो गई.
गाँधी जी की हत्या के बाद परिणाम (Aftermath Gandhi's Death)
गाँधी जी की मृत्यु के बाद हिन्दू महासभा एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दोनों ही समूहों को उस वक्त अवैध घोषित कर दिया गया था. लेकिन उनकी हत्या का आरएसएस से कोई भी लेना देना नहीं था, इस बात की पुष्टि हो गई थी, इसलिए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु एवं उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटैल ने सन 1949 में आरएसएस पर लगा प्रतिबन्ध हटा दिया. गाँधी जी की मृत्यु के बाद देश में दंगे शुरू हो गए. ब्राह्मण एवं मुस्लिमों के बीच बहुत मारा – मारी हुई. खास कर के महाराष्ट्र के सांगली एवं मिराज क्षेत्रों में, इस दंगे में ब्राह्मणों के घर जला दिए गये. कई लोगों ने गाँधी जी की हत्या की साजिश में भारत सरकार को भी दोषी मानते हुए, उनकी काफी आलोचना की. क्योंकि उनका कहना था कि गाँधी जी को मारने की कोशिश इसके पहले भी की गई थी, तब सरकार ने इसके खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया.
नाथूराम गोडसे की मृत्यु (Nathuram Godse Death)
महात्मा गाँधी जी की मृत्यु के बाद 27 मई 1948 को इस केस की कार्यवाही शुरू की गई. उन्होंने कोर्ट को बिलकुल भी सफाई नहीं दी और अपना गुनाह खुले तौर पर स्वीकार कर लिया, कि उन्होंने ही गाँधी की मारा है. किन्तु इस केस को अंतिम रूप देने में 1 साल से भी ज्यादा का समय लग गया. इस केस का अंतिम फैसला 8 नवंबर सन 1949 को सुनाया गया, जिसमें उन्हें 15 नवंबर को फांसी की सजा देने का फैसला सुनाया गया. इस अपराध में उनके साथी नारायण आप्टे भी बराबर के हिस्सेदार थे, इसलिए उन्हें भी मृत्यु दंड दिया गया. इसके अलावा हिन्दू महासभा के सदस्य सावरकर पर भी इस अपराध में शामिल होने का आरोप लगा था, लेकिन बाद में यह खारिज कर दिया गया.
नाथूराम गोडसे मंदिर (Nathuram Godse Temple)
सन 2014 में नरेंद्र मोदी जी के सत्ता में आने के बाद हिन्दू महासभा ने नाथूराम गोडसे को एक देशभक्त का नाम देने का प्रयास शुरू किया. उन्होंने 'देशभक्त नाथूराम गोडसे' नाम से एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई और उसे 30 जनवरी सन 2015 को गाँधी जी की पुण्यतिथि वाले दिन रिलीज़ किया. गोडसे के समर्थकों ने उनकी मृत्यु के दिन को बलिदान दिवस का नाम देने का भी प्रयास किया. यहा तक कि इस संगठन ने एमपी में इनका मंदिर भी बनवाना चाहा, परंतु प्रशासन कि नामंजूरी के बाद यह संभव ना हो सका.