Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi | रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi | रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) का जन्म 23 सितम्बर 1908 को एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में बिहार के बेगुसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था | उनके पिता श्री रवि सिंह थे तथा माता का नाम मनरूपी देवी था |
Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi | रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
- नाम रामधारी सिंह दिनकर
- जन्म 23 सितम्बर 1908
- जन्मस्थान सिमरिया घाट बेगुसराय जिला, बिहार, भारत
- पिता बाबू रवि सिंह
- माता मनरूप देवी
- पुरस्कार पद्म भूषण
- व्यवसाय कवि, लेखक
- नागरिकता भारतीय
भारतीय लेखक रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi)
Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi | रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) का जन्म 23 सितम्बर 1908 को एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में बिहार के बेगुसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था | उनके पिता श्री रवि सिंह थे तथा माता का नाम मनरूपी देवी था | "बोरो' गाँव के मिडिल स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने बी.ए. इतिहास विषय में 1932 में पटना विश्वविद्यालय से किया | आधुनिक हिंदी कवियों में उनका महत्वपूर्ण स्थान है | रामधारी सिंह दिनकर के 50 ग्रन्थ प्रकाशित है |
राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) ने अत्यंत देशभक्ति की ओजपूर्ण कविताये लिखी जिससे वो विद्रोही कवि कहलाये | ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध स्वर उठाने वाले इस वीर रस के कवि को उचित ही राष्ट्रकवि कहा गया | स्वतंत्रता संघर्ष के काल में दिनकर भारतीय राजनीति के प्रतिष्टित नेताओं के सम्पर्क में आये जैसे राजेन्द्र प्रसाद आदि | वो अंग्रेजो के प्रति तुष्टीकरण निति के विरुद्ध थे तथा उनके मन में रोष तथा बदले की भावना उत्पन्न हो गयी थी | उनकी कविताओं तथा लेखन ने भारतीय जनमानस को आकृष्ट किया था |
भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया | दिनकर 1952 से 1969 तक तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे | 1960 में वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने | उनकी एक कविता "आपातकाल" के दौरान रामलीला मैदान में आयोजित प्रतिरोध आन्दोलन में जयप्रकाश द्वारा पढ़ी गयी थी जिसकी मुख्य पंक्ति थी "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" | रवीन्द्रनाथ टैगोर , इकबाल , मिल्टन तथा यीट्स की कविताओं ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया था |
दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) ने टैगोर की कई कविताओं का हिंदी में अनुवाद किया था | विन्ध्व्सात्म्कता के कारण वे युद्ध को पसंद नही करते थे पर उनका कहना था कि देश की अखंडता एवं स्वतंत्रता के लिए युद्ध अनिवार्य हो जाता है | उर्वेशी नामक काव्य में उन्होंने स्त्री पुरुष के आध्यात्मिक प्रेम का चित्रण किया है | यूँ दिनकर वीर रस के कवि कहे जाते है पर उर्वशी में एक पृथक स्वरतन्त्र झंकृत किया है | साहित्य के क्षेत्र में यह एक विशिष्ट ग्रन्थ माना जाता है | उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाये है रश्मिरथी , कुरुक्षेत्र , परशुराम की प्रतीक्षा , बापू आदि |
आज़ादी अभियान में कविताओ का प्रभाव (Ramdhari Singh Dinkar Poetry Effect in Freedom Movement)
भारतीय आज़ादी अभियान के समय में दिनकर की कविताओ ने देश के युवाओ को काफी प्रभावित किया था। एक छात्र के रूप में दिनकर, दैनिक समस्याओ से लड़ते थे, जिनमे कुछ समस्याए उनके परिवार की आर्थिक स्थिति से भी संबंधित थी। बाद में उन्होंने अपनी कविताओ के मध्यम से गरीबी के प्रभाव को समझाया। और ऐसे ही वातावरण में दिनकर जी पले-बढे और आगे चलकर राष्ट्रकवि बने।
1920 में दिनकर जी ने महात्मा गाँधी को पहली बार देखा था। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के समय दिनकर क्रांतिकारी अभियान की सहायता करने लगे थे लेकिन बाद में वे गाँधी विचारो पर चलने लगे थे। जबकि बहुत सी बार वे खुद को बुरा गांधियन भी कहते थे। क्योकि वे अपनी कविताओ से देश के युवाओ में अपमान का बदला लेने की भावना को जागृत कर रहे थे। कुरुक्षेत्र में उन्होंने स्वीकार किया की निश्चित ही विनाशकारी था लेकिन आज़ादी की रक्षा करने के लिये वह बहुत जरुरी था।
राजनीतिक करियर (Political Career)
रामधारी सिंह दिनकर तीन बार दिनकर राज्य सभा में चुने गए और 3 अप्रैल 1952 से 26 जनवरी 1964 तक वे इसके सदस्य भी बने रहे और उनके योगदान के लिये उन्हें 1959 में पद्म भुषण अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। इसके साथ-साथ वे 1960 के शुरू-शुरू में भागलपुर यूनिवर्सिटी, बिहार के वाईस-चांसलर भी थे।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलायेगी ही,अम्बर पर घन बन छायेगा, ही उच्छवास तुम्हारा।और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।
साहित्य कार्य (Ramdhari Singh Dinkar Literature Work)
हिंदी लेखक राजेन्द्र यादव के उपन्यास 'सारा आकाश' में उन्होंने दिनकरजी की कविताओ की चंद लाइने भी ली है, जो हमेशा से ही लोगो की प्रेरित करते आ रही है।
दिनकरजी ने सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर भी अपनी कविताये लिखी है, जिनमे उन्होंने मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक भेदभाव को मुख्य निशाना बनाया था।
दिनकरजी द्वारा रचित कुरुक्षेत्र एक बेहतरीन कविता थी जो महाभारत के शांति पर्व पर आधारित थी। यह कविता उस समय में लिखी गयी थी जब कवी और लोगो के दिमाग में द्वितीय विश्व युद्ध की यादे ताज़ा थी।
दिनकरजी ने कुरुक्षेत्र में उन्होंने कृष्णा की चेतावनी कविता भी लिखी। इस कविता को स्थानिक लोगो का काफी अच्छा प्रतिसाद मिला था। उनका द्वारा रचित रश्मिरथी, हिन्दू महाकाव्य महाभारत का सबसे बेहतरीन हिंदी वर्जन माना जाता है।
पुरस्कार और सम्मान (Ramdhari Singh Dinkar Awards and Honors)
- संस्कृति के चार अध्याय के लिये उन्हें 1959 में साहित्य अकादमी अवार्ड मिला।
- भारत सरकार ने उन्हें 1959 में पद्म भुषण से सम्मानित किया था।
- भागलपुर यूनिवर्सिटी ने उन्हें LLD की डिग्री से सम्मानित किया था।
- राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर की तरफ से 8 नवम्बर 1968 को उन्हें साहित्य-चौदमनी का सम्मान दिया गया था।
- उर्वशी के लिये उन्हें 1972 में ज्ञानपीठ अवार्ड देकर सम्मानित किया गया था।
- 1952 में वे राज्य सभा के नियुक्त सदस्य बने। दिनकर के चहेतों की यही इच्छा है की दिनकर जी राष्ट्रकवि अवार्ड के हक़दार है।
- 23 अक्टूबर 2012 को भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 21 प्रसिद्ध लेखको और सामाजिक कार्यकर्ताओ को राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्हें राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' साहित्य रत्न सम्मान देकर सम्मानित भी किया था।
मुख्य कविताये और कार्य (Ramdhari Singh Dinkar Poems and Works)
- विजय सन्देश (1928)
- प्राणभंग (1929)
- रेणुका (1935)
- हुंकार (1938)
- रसवंती (1939)
- द्वन्दगीत (1940)
- कुरुक्षेत्र (1946)
- धुप छाह (1946)
- सामधेनी (1947)
- बापू (1947)
- इतिहास के आंसू (1951)
- धुप और धुआं (1951)
- मिर्च का मज़ा (1951)
- रश्मिरथी (1952)
- दिल्ली (1954)
- नीम के पत्ते (1954)
- सूरज का ब्याह (1955)
- नील कुसुम (1954)
- चक्रवाल (1956)
- कविश्री (1957)
- सीपे और शंख (1957)
- नये सुभाषित (1957)
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
- उर्वशी (1961)
- परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
- कोयला एयर कवित्व (1964)
- मृत्ति तिलक (1964)
- आत्मा की आंखे (1964)
- हारे को हरिनाम (1970)
- भगवान के डाकिये (1970)
मृत्यु (Ramdhari Singh Dinkar Death)
रामधारी सिंह दिनकर जी का निधन 24 अप्रैल 1974, बेगूसराय शहर, बिहार में हुआ था।
उपलब्धिया
- दिनकर अत्यंत ओजस्वी कवि थे | वीर रसपूर्ण राष्ट्रभक्ति से भरपूर कविताओं के कारण उन्हें राष्ट्रकवि कहा गया |
- कई विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे |
- साहित्य आकादमी अवार्ड मिला |
- 1959 में पद्मभूषण से सम्मानित |
- विद्यावाचस्पति-साहित्य चुडामणि की पदवी दी गयी |
- 1972 में उर्वेशी पर ज्ञानपीठ पुरुस्कार से पुरुस्कृत हुए |
- 1952 -1964 तक टी बार राज्यसभा के सदस्य रहे |