Sam Manekshaw Biography in Hindi | सॅम माणेकशॉ का जीवन परिचय
Sam Manekshaw Biography in Hindi | भारतीय सेना के महान सैम मानेकशॉ बहादुरी और हिम्मत की मिसाल थे। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुई 13 दिन की यादगार लड़ाई में एक हीरो बनकर उभरे थे। ये चतुर रणनीतिकार अपने खास अंदाज और हाजिरजवाबी के लिए भी खासे मशहूर थे।
Sam Manekshaw Biography in Hindi | सॅम माणेकशॉ का जीवन परिचय
- पूरा नाम सॅम होरमरुजी फ्रामजी जेमशद
- जन्म 3 अप्रैल 1914
- जन्मस्थान अमृतसर, पंजाब
- पिता होरमरुजी माणेकशा
- माता हिराबाई माणेकशा
- पत्नी सिल्लो मानेकशॉ
- पुत्र राउल सैम
- व्यवसाय भारतीय सैन्य अधिकारी
- पुरस्कार पद्म विभूषण
- नागरिकता भारतीय
भारतीय सैन्य अधिकारी सॅम माणेकशॉ (Sam Manekshaw Biography in Hindi) :
Sam Manekshaw Biography in Hindi | भारतीय सेना के महान सैम मानेकशॉ बहादुरी और हिम्मत की मिसाल थे। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुई 13 दिन की यादगार लड़ाई में एक हीरो बनकर उभरे थे। ये चतुर रणनीतिकार अपने खास अंदाज और हाजिरजवाबी के लिए भी खासे मशहूर थे।
प्रारंभिक जीवन (Sam Manekshaw Early Life)
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल, 1914 में पंजाब के अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम होर्मूसजी मानेकशॉ और माता का नाम हीराबाई था। उनके पिता एक डॉक्टर थे। और गुजरात के वलसाड़ शहर से पंजाब आकर रहने लगे थे। सैम मानेकशॉ 1969 में भारतीय सेना के प्रमुख सेना अध्यक्ष बने थे।
शिक्षा (Sam Manekshaw Education)
सैम मानेकशॉ पंजाब और नैनीताल स्थित शेरवुड कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की और कैंब्रिज बोर्ड के स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा में डिस्टिंक्शन हासिल किया। 15 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता से लन्दन भेजने का आग्रह किया जहाँ जाकर वे स्त्रीरोग विशेषज्ञ बनना चाहते थे। पर पिता जी ने यह कहकर मना कर दिया कि अभी वे छोटे हैं। और लन्दन जाने के लिए कुछ और समय इन्तजार करें। इसके उपरान्त मानेकशॉ ने तैश में आकर देहरादून स्थित इंडियन मिलिटरी अकैडमी (आई.एम.ए.) के प्रवेश परीक्षा में बैठने का फैसला किया,और सफल भी हो गए।
मिलिटरी करियर (Sam Manekshaw Military Career) :
1963 में उन्हें आर्मी कमांडर के पद पर पदोन्नत किया गया। और उन्हें पश्चिमी कमांड की जिम्मेदारी सौंपी गयी। ब्रिटिश इंडियन आर्मी के समय से प्रारंभ होकर उनका शानदार मिलिटरी करियर लगभग 4 दशक लम्बा रहा। अपने कैरियर के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण पद संभाले और 1969 में भारतीय सेना के 8 वें सेनाध्यक्ष नियुक्त किये गए।
1942 से लेकर देश की आजादी और विभाजन तक उन्हें कई महत्वपूर्ण कार्य दिए गए। 1947 में विभाजन के बाद उनकी मूल यूनिट (12 वीं फ्रंटियर फ़ोर्स रेजिमेंट) पाकिस्तानी सेना का हिस्सा हो गयी जिसके बाद उन्हें 16वें पंजाब रेजिमेंट में नियुक्त किया गया। इसके पश्चात उन्हें तीसरे बटालियन और 5 वें गोरखा राइफल्स में नियुक्त किया गया।
विश्व युद्ध के दौरान सैम मानेकशॉ ने 4/12 फ्रंटियर फ़ोर्स रेजिमेंट के साथ बर्मा में मोर्चा संभाला और वीरता का परिचय दिया। उनकी कंपनी के लगभग 50 से भी अधिक सैनिक मारे जा चुके थे। पर मानेकशॉ ने बहादुरी के साथ जापानियों का मुकाबला किया और अपने मिशन में सफलता हासिल की।
एक महत्वपूर्ण स्थान 'पगोडा हिल' पर अधिकार करने के दौरान वे दुश्मन की धुंधार गोलाबारी में बुरी तरह जख्मी हो गए। और मौत निश्चित दिख रही थी। पर उन्हें युद्ध क्षेत्र से रंगून ले जाया गया। जहाँ डॉक्टरों ने उनका उपचार किया जिसके बाद वे ठीक होने लगे।
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध में :
उनकी सैन्य नेतृत्व की परीक्षा शीघ्र ही हुई जब भारत ने पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध बांग्लादेश की 'मुक्ति बाहिनी' का साथ देने का फैसला किया। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अप्रैल 1971 में मानेकशॉ से पूछा कि क्या वे युद्ध के लिए तैयार हैं तो उन्होंने मना कर दिया और उनसे कहा कि वे तय करेंगे कि सेना कब युद्ध में जाएगी। ऐसा ही हुआ और दिसम्बर 1971 में भारत ने पाकिस्तान पर धावा बोला और मात्र 15 दिनों में पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और 90000 पाकिस्तानी सैनिक बंदी बनाये गए।
सैम मानेकशॉ का विवाद (Sam Manekshaw Controversy)
सैम मानेकशॉ को जम्मू कश्मीर में एक डिवीज़न का कमांडेंट बनाया गया। जिसके पश्चात वे डिफेन्स सर्विसेज स्टाफ कॉलेज के कमांडेंट बन गए। इसी दौरान तत्कालीन रक्षामंत्री वी. के. कृष्ण मेनन के साथ उनका मतभेद हुआ। जिसके बाद उनके विरुद्ध 'कोर्ट ऑफ़ इन्क्वारी' का आदेश दिया गया जिसमें वे दोषमुक्त पाए गए। इन सब विवादों के बीच चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। और मानेकशॉ को लेफ्टिनेंट जनरल पदोन्नत कर सेना के चौथे कॉर्प्स की कमान सँभालने के लिए तेज़पुर भेज दिया गया।
निवृत जीवन (Sam Manekshaw Retired Life)
15 जनवरी 1973 को मानेकशॉ सेवानिवृत्त हो गए। और अपनी धर्मपत्नी के साथ कुन्नूर में बस गए। नेपाल सरकार ने उन्हें नेपाली सेना में मानद जनरल का पद दिया।
सम्मान (Sam Manekshaw the Honour)
- 1972 में उनकी शानदार राष्ट्र सेवा के फलस्वरूप भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
- 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद (रैंक) से भी सम्मानित किया गया।
मृत्यु (Sam Manekshaw Death)
मानेकशॉ का निधन 27 जून 2008 को निमोनिया के कारण वेलिंगटन (तमिल नाडु) के सेना अस्पताल में हो गया। मृत्यु के समय उनकी आयु 94 साल थी।