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Surendranath Banerjee Biography In Hindi | सुरेंद्रनाथ बॅनर्जी का जीवन परिचय

Surendranath Banerjee Biography In Hindi | सुरेन्द्रनाथ बॅनर्जी ब्रिटिश राज के समय में एक भारतीय राजनितिक नेता थे। उन्होंने इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना की थी, जो भारत की प्राचीनतम राजनितिक संस्थाओ में से एक है और बाद में वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के वरिष्ट नेता भी बने थे।

Surendranath Banerjee Biography In Hindi | सुरेंद्रनाथ बॅनर्जी का जीवन परिचय
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Surendranath Banerjee Biography In Hindi | सुरेंद्रनाथ बॅनर्जी का जीवन परिचय

Surendranath Banerjee Biography In Hindi | सुरेंद्रनाथ बॅनर्जी का जीवन परिचय

  • नाम सुरेंद्रनाथ दुर्गाचरण बॅनर्जी
  • जन्म 10 नवंबर 1848
  • जन्मस्थान कोलकता
  • पिता चरन बनर्जी
  • माता दुर्गा चरण बनर्जी
  • व्यवसाय शिक्षाविद, राजनीतिज्ञ, आई.सी.एस.
  • शिक्षा B.A., I.C.S.
  • नागरिकता भारतीय

राजनेता सुरेंद्रनाथ बॅनर्जी (Surendranath Banerjee Biography in Hindi)

Surendranath Banerjee Biography In Hindi | सुरेन्द्रनाथ बॅनर्जी ब्रिटिश राज के समय में एक भारतीय राजनितिक नेता थे। उन्होंने इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना की थी, जो भारत की प्राचीनतम राजनितिक संस्थाओ में से एक है और बाद में वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के वरिष्ट नेता भी बने थे। उन्होंने 1883 और 1885 में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के दो सेशन को संगठित किया था। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और आनंदमोहन बोस ही भारतीय राष्ट्रिय कांफ्रेंस के मुख्य रचयिता थे।

प्रारंभिक जीवन (Surendranath Banerjee Early Life)

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का जी जन्म बंगाल प्रेसीडेंसी के कलकत्ता में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता दुर्गा चरण बनर्जी एक डॉक्टर थे, जिनका उन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा था, वे अपने पिता के उदारवादी विचारों से काफी प्रेरित थे।

शिक्षा (Education)

बनर्जी ने अपनी शुरुआती शिक्षा पैरेंटल एकैडमिक इंस्टिट्यूट और हिन्दू कॉलेज से हासिल की थी। इसके बाद कलकत्ता यूनिवर्सिटी से उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की थी और इसके बाद वे साल 1868 में रोमेशचंद्र दत्त और बहरी लाल गुप्ता के साथ मिलकर भारतीय सिविल परीक्षाएं देने के लिए इंग्लैंड चले गए थे।

जातीय भेद-भाव के खिलाफ आवाज (Surendranath Banerjee Voice Against Cast Discrimination)

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद इंडियन सिविल सर्विस के लिए एप्लाई किया। हालांकि उस समय इस इंडियन सिविल सर्विस में सिर्फ एक ही हिन्दू शख्स अपनी सेवाएं दे रहा था। वहीं बनर्जी को इस परीक्षा में आयु ग़लत बताए जाने का तर्क देकर शामिल नहीं किया गया।

यह सब देखकर बनर्जी ने जातीय भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और अपनी एक अपील में तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिन्दू रीति-रिवाजों एवं परंपराओं के मुताबिक उन्होंने अपनी उम्र गर्भधारण के समय से जोड़ी थी, न कि जन्म के समय से और बाद में वे यह केस जीत भी गए और फिर उन्हें उन्हें सिलहट (वर्तमान बांगला देश) में असिस्टेंट मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त किया गया।

लेकिन कुछ गंभीर न्यायिक अनियमितताओं के कारण साल 1874 में उन्हें इस पद से हटा दिया गया। इसके बाद उन्होंने वकील के रूप में अपना नाम दर्ज़ करवाने की कोशिश की, लेकिन इसके लिए उन्हें अनुमति देने से मना कर दिया था, क्योंकि उन्होंने इण्डियन सिविल सर्विस से निकाल दिया गया था, जिससे उनकी भावनाओं काफी आहत हुईं थीं, और यह सब उन्हें यह समझाने के लिए काफी था कि एक भारतीय होने के नाते उनके साथ इस तरह का दुर्व्यवहार किया जा रहा है।

इंडयिन एसोसिएशन की स्थापना (Surendranath Banerjee Beginning of Indian Association)

1875 में सुरेन्द्र नाथ ही भारत वापस आ गए। इसके बाद बनर्जी ने मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट, दी फ्री चर्च इंस्टिट्यूट और रिपोन कॉलेज में इंग्लिश प्रोफेसर के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने इस कॉलेज की स्थापना 1882 में की थी।

बनर्जी ने राष्ट्रीय और राजनैतिक विषयों और भारतीय इतिहास पर सामाजिक भाषण देना शुरू किया। 26 जुलाई 1876 को आनंदमोहन बोस के साथ इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना की थी, जो कि एक प्राचीन भारतीय राजनितिक संस्था थी। वह इस संस्था के माध्यम से इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा दे रहे छात्रो की आयु सीमा को लेकर ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ रहे थे।

इसके साथ ही ब्रिटिश अधिकारियो द्वारा किये जा रहे जातीय भेदभाव के भी खिलाफ भी वे खड़े हुए थे, और उन्होंने भारत भ्रमण करते हुए जगह-जगह पर सार्वजानिक भाषण भी दिए थे। जिसके चलते उनकी लोकप्रियता पूरे देश में फैल गई थी और वे एक चहेते राजनेता के रुप में प्रसिद्ध हो गए थे।

1879 में उन्होंने एक अखबार "दी बंगाली" की स्थापना की थी। 1883 में जब बनर्जी को अखबार में ब्रिटिश शासक के खिलाफ भड़काऊ जानकारी प्रकाशित करने के कारण कैद कर लिया गया था तब उनके बचाव में पूरा बंगाल ही नही, बल्कि भारत के मुख्य शहर जैसे अमृतसर, आगरा, लाहौर, फैजाबाद और पुणे के लोग भी निकल पड़े थे। इस तरह लगातार इंडियन नेशनल एसोसिएशन का विकास होता गया।

कांग्रेस के अध्यक्ष (Surendranath Banerjee As a President of Indian National Congress)

इसके बाद बॉम्बे में 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना करने के बाद बनर्जी ने अपनी संस्था को इंडियन नेशनल कांग्रेस में ही मिश्रित कर लिया। 1895 में पुणे में और 1902 में अहमदाबाद में उनकी नियुक्ति कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में की गयी थी।

बंगाल में क्रन्तिकारी जीवन (Surendranath Banerjee Revolutionary Life in Bengal)

सुरेन्द्रनाथ भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के सबसे लोकप्रिय नेताओ में से एक थे, जिन्होंने 1905 में बंगाल विभाजन का बचाव किया। बनर्जी हमेशा सभी अभियानों, क्रांतिकारी मोर्चो और ब्रिटिश राज का विरोध करने में हमेशा आगे रहते थे और उन्हें केवल बंगाल की जनता ही नही बल्कि पूरे भारत के लोग सहायता करते थे।

इस प्रकार बनर्जी भारत के उभरते हुए नेता जैसे गोपाल कृष्णा गोखले और सरोजिनी नायडू के संरक्षक बने हुए थे। इसके साथ ही बनर्जी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओ में से एक थे। जिन्होंने उग्रवादी के होने के बाद भी ब्रिटिशों के साथ समझौता कर लिया था और भारतीय क्रांतिकारियों का बचाव किया था।

स्वदेशी अभियान के समय भी बनर्जी मुख्य केंद्रबिंदु थे, जिन्होंने उस समय लोगो को सिर्फ और सिर्फ भारतीय उत्पाद का ही उपयोग करने के लिये प्रेरित किया और विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार करने को कहा। और उनके इन्ही साहस भरे कार्यो की वजह से उन्हें बंगाल का राजा कहा जाता है।

मृत्यु (Surendranath Banerjee Death)

बिधान चन्द्र रॉय जी से सन 1923 में हुए चुनाव को हराने के बाद। सार्वजनिक जीवन से दूर दूर से रहे और 6 अगस्त, 1925 में उनका निधन हो गया।

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