V S Naipaul Biography In Hindi | वी. एस. नायपाल का जीवन परिचय
V S Naipaul Biography In Hindi | विद्याधर सूरजप्रसाद नैपालका ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है, उन्होंने एक महान लेखन बनकर अपने पिता के सपने को साकार किया है। विद्याधर को ही आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर वी. एस. नायपाल के नाम से जाना जाता है। उनहे नुतन अंग्रेज़ी छंद का गुरु कहा जाता है।
V S Naipaul Biography In Hindi | वी. एस. नायपाल का जीवन परिचय
- नाम विद्याधर सूरज प्रसाद नायपाल
- जन्म 17 अगस्त, 1932
- जन्मस्थान त्रिनिदाद
- पिता सूरज प्रसाद
- शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, लंदन से स्नातक
- व्यवसाय ब्रिटिश-त्रिनिदाद लेखक
- पुरस्कार साहित्य में नोबेल पुरस्कार, बुकर पुरस्कार
- नागरिकता ब्रिटिश, त्रिनिदाद
साहित्यकार वी. एस. नायपाल (V S Naipaul Biography in Hindi)
V S Naipaul Biography In Hindi | विद्याधर सूरजप्रसाद नैपालका ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है, उन्होंने एक महान लेखन बनकर अपने पिता के सपने को साकार किया है। विद्याधर को ही आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर वी. एस. नायपाल के नाम से जाना जाता है। उनहे नुतन अंग्रेज़ी छंद का गुरु कहा जाता है।
प्रारंभिक जीवन (V S Naipaul Early Life)
विद्याधर सूरजप्रसाद नैपालका जन्म 17 अगस्त 1932 को ट्रिनिडाड के चगवानस में हुआ। उनके दादा जी भारत के ढाका नमक नगर के निवासी थे, ढाका अब बांग्लादेश में जाता है, उनका परिवार एक ब्राह्मण परिवार था, 20वीं शताब्दी के आरंभ में उनके दादा भारत छोड़कर रोजगार की तलाश में त्रिनिदाद आए और परिवार सहित वहीँ बस गए। वी एस नाइपॉल के पिता सूरज प्रसाद एक अच्छे पत्रकार और लेखक थे, वे अपने पुत्र विद्याधर को एक सफल लेखक बनाना चाहते थे। 1948 में सूरज प्रसाद का परिवार स्पेन बंदरगाह के पास आकर रहने लगा था।
शिक्षा (Education)
उन्होंने स्पेन के क्वींस रॉयल कॉलेज में शिक्षा की, पठन-पाठन के दौरान उनमे तरह-तरह की जिज्ञासाएं उठती थीं और नई-नई चीजों को जानने के लिए बेताब रहते थे, सूरज प्रसाद चाहते थे कि साहित्य के क्षेत्र में जो कार्य मैं नहीं कर सका, वह कार्य मेरा बेटा विद्याधर कर दिखाए। विद्याधर को वे एक महान साहित्यकार बनाना चाहते थे।
साहित्यिक कार्य (V S Naipaul Literary Work)
अब एक महान लेखक बनना विद्याधर के जीवन का एक मिशन बन गया, उस समय उनकी आयु 21 वर्ष थी। तीन वर्ष पहले वे एक उपन्यास लिख चुके थे, मगर उसका प्रकाशन नहीं हो पाया, विद्याधर ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय लंदन से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की उसके बाद वे लेखन से जुड़ गए। उन्होंने लंदन में रहकर पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में संघर्ष करना शुरू कर दिया।
1954 में बी.बी.सी. की 'कैरेबियम वायस' में उन्हें एक पत्रकार के रूप में काम करने का मौका मिला, पूर्ण मनोयोग से उन्होंने वहां काम किया और 1957 में एक साहित्यिक पत्रिका 'द न्यू स्टेट्समैन' से जुड़ गए। इसी वर्ष उनका पहला उपन्यास 'द मिस्टिक मेस्युर' प्रकाशित हुआ।
इससे उनका नाम उपन्यासकारों की सूची में दर्ज हो गया, लेकिन उन्हें आर्थिक रूप से कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। 1958 में उनका दूसरा उपन्यास 'द सफरेज ऑफ एलविरा' बाजार में आया, उसके बाद उनकी लेखनी लगातार चलती रही।
उनका उपन्यास 'द मिस्टिक मेस्यूर' पर त्रिनिदाद में एक फिल्म का निर्माण किया गया था, इस फिल्म को देखकर वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री पाण्डे बहुत खुश हुए थे। भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर विद्याधर ने तीन पुस्तकों की रचना की है, जिनके नाम:
- एन एरिया ऑफ डार्कनेस (En Area of Darkness)
- ऐ वुन्डेड सिविलाइजेशन (A Wounded Civilization)
- ए मिलियन म्यूटिनीज नाउ (A Million Mutinies Now)
विद्याधर की सबसे अधिक विवादस्पद पुस्तक 'बियान्ड द बिलिफ : इस्लामिक इक्सकर्सन एमंग द कनवर्तेद पीपल' है, इसमें भारत में हिंदुओं के धर्म परिवर्तन का जिक्र किया गया है, जबरन मुसलमान बनाने की प्रक्रिया पर विद्याधर ने बड़े विस्तार से लिखा है, उनका इस प्रकार का लेखन भारत और विश्व के मुस्लिम समुदाय को बहुत बुरा लगा, लेकिन विद्याधर खुलकर लिखने में माहिर हैं।
जाने-माने लेखक खुशवंत सिंह ने उनके बेबाक लेखन का जिक्र करते हुए लिखा है की विद्याधर उन लेखकों में से नहीं हैं जो खुलकर लिखने से कतराते हैं, बाबरी मस्जिद गिरने के बाद देश-दुनिया के तमान लेखकों और विव्दानों ने उसकी निंदा की थी, लेकिन विद्याधर ने कोई निंदा नहीं की।
1971 से 2001 तक कई बार उनका नाम इस पुरस्कार के लिए उछाला जा चूका था, वास्तविक रूप में इस पुरस्कार के लिए जब उनके नाम की घोषणा हुई तो उनके पारिवारिक सदस्यों को विश्वास ही नहीं हुआ, विद्याधर को 2001 के दिसंबर महीने में साहित्य का 'नोबेल पुरस्कार' प्राप्त हुआ।
म्रुत्यु (V S Naipaul Death)
11 अगस्त 2018 को रात में लन्दन स्थित अपने घर में ८५ वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।