Vasudev Balwant Phadke Biography in Hindi | वासुदेव बलवंत फडके का जीवन परिचय
Vasudev Balwant Phadke Biography in Hindi | वासुदेव बलवंत फडके एक महान क्रांतिकारी जिन्होंने मातृभूमि के लिये अपना सबकुछ त्याग दिया, अंग्रेजो के खिलाफ भारतीय जागृती करने वाले वासुदेव बलवंत फड़के देश के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश की पहली स्वाधीनता की लड़ाई में हार के बाद फिर से आजादी की ज्वाला भड़काई थी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था।
Vasudev Balwant Phadke Biography in Hindi | वासुदेव बलवंत फडके का जीवन परिचय
- पूरा नाम वासुदेव बलवंत फडके
- जन्म 4 नवंबर 1845
- जन्मस्थान शिरढोण, जि. रायगड
- पिता बलवंत फडके
- माता सरस्वती बाई
- व्यवसाय क्रांतिकारी
- नागरिकता भारतीय
क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फडके (Vasudev Balwant Phadke Biography in Hindi)
Vasudev Balwant Phadke Biography in Hindi | वासुदेव बलवंत फडके एक महान क्रांतिकारी जिन्होंने मातृभूमि के लिये अपना सबकुछ त्याग दिया, अंग्रेजो के खिलाफ भारतीय जागृती करने वाले वासुदेव बलवंत फड़के देश के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश की पहली स्वाधीनता की लड़ाई में हार के बाद फिर से आजादी की ज्वाला भड़काई थी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था। एक सच्चे देशभक्त और राष्ट्रप्रेमी की तरह वे मरते दम तक देश की सेवा में समर्पित रहे और अंग्रेजों के सामने कभी भी नहीं झुके।
प्रारंभिक जीवन (Vasudev Balwant Phadke Early Life)
वासुदेव बलवंत का जन्म 4 नवंबर, 1845 में महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के शिरढ़ोणे गांव में रहने वाले एक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बलवंत और मां का नाम सरस्वती बाई था। उनके एक भाई और दो बहने भी थे। वासुदेव बलवंत जी शुरु से ही बेहद तेज बुद्धि वाले बालक थे, जिन्होंने काफी कम उम्र में ही मराठी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में अपनी अच्छी पकड़ बना ली थी। इसके अलावा उनके अंदर बचपन से ही राष्ट्रप्रेम की भावना भरी हुई थी।
वे अपने शुरुआत के दिनों से ही देश के वीर जवानों की कहानियां पढ़ा करते थे। वासुदेव बलवंत फड़के जी ने एक व्यायाम शाला की बनाई थी, जहां उन्होंने महान समाजसेवी और विचारक ज्योतिबा फुले से मुलाकात की थी। इसके अलावा भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वहां उन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाना सिखाया था। वे उनके क्रांतिकारी और देशभक्ति के विचारों से भी काफी प्रभावित होते थे।
शिक्षा (Vasudev Balwant Phadke Education)
बलवंत वासुदेव फड़के ने अपनी शुरुआती शिक्षा कल्याण और पुणे में रहकर पूरी की थी। वहीं उनकी पढा़ई खत्म करने के बाद उनके पिता चाहते थे कि वे बिजनेसमैन बने, लेकिन उन्होंने अपने पिता की बात नहीं मानी और वे मुंबई चले गए, जहां पर उन्होंने नौकरी करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी।
शादी (Vasudev Balwant Phadke Marriage)
वासुदेव फड़के ने 28 साल की उम्र में अपनी पहली शादी की थी, लेकिन पहली पत्नी की मृत्यु के बाद फिर उन्होंने दूसरा विवाह किया था।
क्रांतिकारी जीवन (Vasudev Phadke Revolutionary Life)
वासुदेव फड़के ने 'ग्रेट इंडियन पेनिंसुला रेलवे' और 'मिलिट्री फ़ाइनेंस डिपार्टमेंट', में ब्रिटिश सरकार के अधीन नौकरी की थी। वहीं जिस दौरान वासुदेव बलवंत फड़के अपनी नौकरी कर रहे थे, तभी उनकी मां की मौत हो गई।
अपनी मां की मौत की सूचना मिलते ही वे फिर अंग्रेजी अधिकारियों के पास छुट्टी मांगने गए, लेकिन उन्हें छुट्टी नहीं दी गई, जिसके बाद बिना छुट्टी मिले ही फड़के अपने गांव चले गए, लेकिन इस घटना के बाद उनके मन में अंग्रेजी अधिकारियों के खिलाफ बेहद गुस्सा भर गया और फिर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला लिया और क्रूर ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ क्रांति की तैयारी करने लगे।
ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए फड़के ने गली, चौराहों पर ढोल और थाली बजाकर और अपने सशक्त भाषणों के दम पर न सिर्फ आदिवासियों की सेना को संगठित किया, बल्कि कई बड़े-बड़े जमींदारों और वीर साथियों को एकजुट किया और महाराष्ट्र में अपने क्रांतिकारी विचारों के माध्यम से नवयुवकों को भी संगठित किया।
1879 में अपनी पूरी तैयारी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी। यही नहीं इस दौरान धन जुटाने के लिए उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खजाने भी लूटे और अपने संगठन के साथ कई अत्याचारी अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। वासुदेव बलवंत फड़के की क्रांतिकारी गतिविधियों के सामने अंग्रेजी सरकार भी थर-थर कांपने लगी थी।
फिर इसके लिए अंग्रेजी सरकार ने उनकी गिफ्तारी के लिए कई योजनाएं बनाईं, लेकिन अपनी चतुराई और साहिसक गतिविधियों से वे हर बार अंग्रेजों की योजनाओं पर पानी फेर देते थे। यही नहीं बाद में तो फड़के को जिन्दा या फिर मुर्दा पकड़वाने के लिए अंग्रेजी सरकार ने 50 हजार रुपए के ईनाम तक की घोषणा कर दी थी। हालांकि, बाद में फिर साहसी बलवंत ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों के हत्थे चढ़ गए थे।
कालापानी की सजा (Vasudev Phadke Arrested)
वासुदेव बलवंत फड़के एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनसे अंग्रेज इतना डरते थे कि उन्हें बंदी बनाए जाने के बाद भी उन्हें डर था कि अगर उन्हें महाराष्ट्र की जेल में बंदी रखा गया तो किसी तरह का विद्रोह न भड़क जाए। इसलिए बाद में अंग्रेजी सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकदमा कर और कालापानी की कठोर सजा देकर अंडमान भेज दिया और उनके साथ काफी क्रूर व्यवहार किया था, और अमानवीय यातनाएं दीं थीं।
मृत्यु (Vasudev Balwant Phadke Death)
1879 में वासुदेव बलवंत फड़के जी को क्रूर ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों द्वारा कालापानी की सजा सुनाई दी गई, इस दौरान जेल में उन्होंने तमाम शारीरिक यातानाएं दी गईं, जिसके चलते जेल के अंदर ही 38 वर्ष की उम्र में 17 फरवरी, 1883 को उनकी मृत्यु हो गयी।