Vijaya Lakshmi Pandit Biography in Hindi | विजया लक्ष्मी पंडित का जीवन परिचय
Vijaya Lakshmi Pandit Biography in Hindi | विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया।
Vijaya Lakshmi Pandit Biography in Hindi | विजया लक्ष्मी पंडित का जीवन परिचय
- नाम विजया लक्ष्मी पंडित
- जन्म 18 अगस्त 1900
- जन्मस्थान इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
- पिता मोतीलाल नेहरु
- माता स्वरूपरानी नेहरु
- पति रंजित सीताराम पंडित
- पुत्र नयनतारा सहगल
- व्यवसाय पूर्व भारतीय राजदूत संयुक्त राज्य अमेरिका
- पुरस्कार पद्म विभूषण
- नागरिकता भारत, ब्रिटिश राज
Vijaya Lakshmi Pandit Biography in Hindi | विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया। इनका जन्म 18 अगस्त 1900 को गांधी-नेहरू परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा मुख्य रूप से घर में ही हुई। 1921 में उन्होंने काठियावाड़ के सुप्रसिद्ध वकील रणजीत सीताराम पण्डित से विवाह कर लिया। गांधीजी से प्रभावित होकर उन्होंने भी आज़ादी के लिए आंदोलनों में भाग लेना आरम्भ कर दिया।
वह हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं और फिर आन्दोलन में जुट जातीं। उनके पति को भारत की स्वतंत्रता के लिए किये जा रहे आन्दोलनों का समर्थन करने के आरोप में गिरफ्तार करके लखनऊ की जेल में डाला गया जहाँ 1 दिसम्बर 1990 को उनका निधन हो गया। वो भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन थी जिनकी पुत्री इन्दिरा गांधी लगभग 13 वर्षों तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। श्रीमती विजय लक्षमी ने १९५२ में ग्रामीण सभ्यता व संसकृति से परिचय हेतु राजस्थान के बाडमेर जिले के सांस्कृतिक गांव बिसाणिया में 'मालाणी डेलूओं की ढाणी' का ऐतिहासिक दौरा किया था।
ब्रिटिश राज के दौरान किसी कैबिनेट पद पर रहने वाली प्रथम महिला विजयलक्ष्मी पंडित ही थीं। 1937 में उनका निर्वाचन यूनाइटेड प्रॉविंसेज के विधानमंडल में हुआ तथा उन्हें स्थानीय स्वप्रशासन एवं जन-स्वास्थ्य विभाग में मंत्री बनाया गया। पहले वे 1939 तक तथा बाद में 1946 से 1947 तक इस पद पर रहीं। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् वे राजनयिक सेवाओं का हिस्सा बनीं तथा उन्होंने विश्व के अनेक देशों में भारत के राजनयिक के पद पर कार्य किया।
1946 से 1968 के मध्य उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया। इस दौरान 1953 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुना गया और वे इस पद पर आसीन होने वाली विश्व की प्रथम महिला बनीं। 1962 से 1964 तक वे महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद रहीं। 1979 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। द इवॉल्यूशन ऑफ इंडिया (1958) एवं 'द स्कोप ऑफ हैप्पीनेस-ए-पर्सनल मेमोएर' उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
राजनैतिक जीवन :
विजय लक्ष्मी पंडित की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनैतिक थी और इसलिए श्रीमती पंडित में भी राजनीति के लिए उत्साह था| इस कारण वो राजनीति में में शामिल हो गई| जब देश में भारत सरकार अधिनियम, 1935 लागु हुआ और उसके तहत 1937 में कई प्रान्तों में कांग्रेस की सरकारे बनी तो श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित को उत्तरप्रदेश (संयुक्त प्रान्त) का केबिनेट मंत्री बनाया गया|
श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित भारत की संविधान सभा की सदस्य भी थी| और उन्होंने 1952 में चीन जाने वाले सद्भावना मिशन का नेतृत्व भी किया| श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित आजादी के बाद 1962 से 1964 तक महाराष्ट्र की गवर्नर भी रही| उन्होमे 1964 में फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंची |
आजादी में योगदान :
श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने अपने पति के साथ आजादी के आन्दोलन में भाग लिया और इसके लिए उनको कई बार जेल जाना पड़ा| वो हमेशा राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय रही| सन 1940 से 1942 अक वे आल इंडिया womens कान्फ्रेंस के अध्यक्ष के पद पर भी रही|
महिलाओ के लिए कार्य :
विजय लक्ष्मी पंडित के पति का 1944 में निधन हो गया किन्तु उन्हें और उनकी बेटियों को सम्पत्ति पर से बेदखल कर दिया गया| और पूरी सम्पत्ति पर उनके पति के भाई ने कब्जा कर लिया| श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने महिलायों का अधिकार दिलाने के लिए बहुत संघर्ष किया और उनकी ही मेहनत से आजादी के बाद महिलाओं को अपने पति और अपने पिता की सम्पत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त हुआ|
विधान सभा की सदस्य :
1937 के चुनाव में विजयलक्ष्मी उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य चुनी गईं। उन्होंने भारत की प्रथम महिला मंत्री के रूप में शपथ ली। मंत्री स्तर का दर्जा पाने वाली भारत की वह प्रथम महिला थीं। द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ होने के बाद मंत्रिपद छोड़ते ही विजयलक्ष्मी पण्डित को फिर बन्दी बना लिया गया। जेल से बाहर आने पर 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में वे फिर से गिरफ़्तार की गईं, लेकिन बीमारी के कारण नौ महीने बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया। 14 जनवरी, 1944 को उनके पति रणजीत सीताराम पण्डित का निधन हो गया।
भारत की राजदूत :
वर्ष 1945 में विजयलक्ष्मी पण्डित अमेरिका गईं और अपने भाषणों के द्वारा उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में जोरदार प्रचार किया। 1946 में वे पुन: उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री बनीं। स्वतंत्रता के बाद विजयलक्ष्मी पण्डित ने 'संयुक्त राष्ट्र संघ' में भारत के प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व किया और संघ में महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष निर्वाचित की गईं। विजयलक्ष्मी पण्डित ने रूस, अमेरिका, मैक्सिको, आयरलैण्ड और स्पेन में भारत के राजदूत का और इंग्लैण्ड में हाई कमिश्नर के पद पर कार्य किया। 1952 और 1964 में वे लोकसभा की सदस्य चुनी गईं। वे कुछ समय तक महाराष्ट्र की राज्यपाल भी रही थीं।
गाँधीजी का प्रभाव :
जब वर्ष 1919 ई. में महात्मा गाँधी 'आनन्द भवन' में आकर रुके तो विजयलक्ष्मी पण्डित उनसे बहुत प्रभावित हुईं। इसके बाद उन्होंने गाँधीजी के 'असहयोग आन्दोलन' में भी भाग लिया। इसी बीच 1921 में उनका विवाह बैरिस्टर रणजीत सीताराम पण्डित से हो गया। आन्दोलन में भाग लेने के कारण विजयलक्ष्मी पण्डित को 1932 में गिरफ़्तार भी किया गया। गाँधीजी का प्रभाव विजयलक्ष्मी पण्डित पर बहुत ज़्यादा था। वह गाँधीजी से प्रभावित होकर ही जंग-ए-आज़ादी में कूद पड़ी थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं और फिर से आन्दोलन में जुट जातीं।
निधन :
विजयलक्ष्मी पण्डित देश-विदेश के अनेक महिला संगठनों से जुड़ी हुई थीं। अंतिम दिनों में वे केन्द्र की कांग्रेस सरकार की नीतियों की आलोचना करने लगी थीं। वर्ष 1990 में विजयलक्ष्मी पण्डित का निधन हुआ।