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योगी का किला ध्वस्त करने वाले प्रवीण निषाद की इन बातों को नहीं जानते हैं आप
BY Jan Shakti Bureau16 March 2018 4:21 PM IST
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Jan Shakti Bureau16 March 2018 10:00 PM IST
गोरखपुर से लोकसभा में पाँच बार नुमाइंदगी कर चुके आदित्यनाथ योगी को संसद के सबसे युवा चेहरों में से एक के रूप में देखा जाता था.पिछले साल उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई और आदित्यनाथ योगी को उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया जिसके बाद गोरखपुर लोकसभा सीट खाली हो गई थी.इस सीट पर अब उप-चुनाव के नतीजे आए हैं और जो शख़्स लोकसभा में गोरखपुर की नुमाइंदगी करेगा वो भी एक युवा चेहरा ही है.29 साल के प्रवीण कुमार निषाद, समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में यह चुनाव लड़ रहे थे.नोएडा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक कर चुके प्रवीण कुमार का यह पहला चुनाव था.इस सीट पर ख़ुद यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी थी.मतगणना से पहले तक बड़े राजनीतिक पंडित और विश्लेषक भी यह मानकर चल रहे थे कि आख़िरकार ये सीट भाजपा के खाते में ही जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब इसे साल 2018 का सबसे बड़ा उलटफेर कहा जा रहा है.पहले राउंड की मतगणना के बाद से ही नतीजे समाजवादी पार्टी के पक्ष में जाते दिख रहे थे.हालांकि काउंटिंग के आख़िरी चरण में एक बार को भाजपा और सपा के बीच वोटों का अंतर कम होता दिखा था.लेकिन समाजवादी पार्टी ने अंतत: इस सीट पर कब्ज़ा कर लिया.
पिता ने ज़मीन तैयार की
प्रवीण कुमार निषाद के लिए भले ही यह अपना पहला चुनाव था लेकिन राजनीति उनके लिए नई नहीं है.प्रवीण निषाद के पिता, डॉक्टर संजय कुमार निषाद राष्ट्रीय निषाद पार्टी के संस्थापक हैं. साल 2013 में उन्होंने इस पार्टी को खड़ा किया था. उस वक़्त प्रवीण कुमार निषाद उस पार्टी के प्रवक्ता बनाए गए थे.साल 2008 में बी.टेक करने के बाद 2009 से 2013 तक उन्होंने राजस्थान के भिवाड़ी में एक प्राइवेट कंपनी में बतौर प्रोडक्शन इंजीनियर नौकरी की थी.लेकिन 2013 में अपने पिता के राजनैतिक सपनों में रंग भरने के लिए वो वापस गोरखपुर लौट आए.उन्हीं की तरह उनके पिता डॉक्टर संजय कुमार निषाद भी राजनीति में आने से पहले कई अन्य कार्यों से जुड़े रहे हैं. साल 2002 और 2003 तक गोरखपुर के अख़बारों के दफ़्तरों में डॉक्टर संजय कुमार इलेक्ट्रो होम्योपैथी को मान्यता दिलाने के लिए बयान देते और विज्ञप्तियां बाँटते नज़र आते थे.साल 2002 में उन्होंने पूर्वांचल मेडिकल इलेक्ट्रो होम्योपैथी एसोसिएशन का गठन भी किया. डॉक्टर संजय इसके अध्यक्ष थे.उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की शुरुआत 2008 में हुई जब उन्होंने ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी वेलफ़ेयर एसोसिएशन का गठन किया.लेकिन सात जून 2015 को वो पहली बार सुर्ख़ियों में तब आये, जब गोरखपुर से सटे सहजनवा के कसरावल गांव के पास निषादों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की माँग को लेकर उनके नेतृत्व में ट्रेन रोकी गई.उस दिन हिंसक प्रदर्शन के बीच एक आंदोलनकारी की पुलिस फ़ायरिंग में मौत के बाद आंदोलनकारियों ने बड़ी तादाद में गाड़ियों को आग लगा दी थी.इसके बाद डॉक्टर संजय कुमार निषाद पर तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने कई मुक़दमें दायर कराए थे.
निषाद पार्टी का वजूद
साल 2016 में संजय कुमार निषाद ने निषाद पार्टी का गठन किया.यहां 'NISHAD' का विस्तार 'निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल' था.पिछले विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पिछड़े मुसलमानों पर अच्छी पकड़ रखने वाली पीस पार्टी के साथ मिलकर प्रदेश की 80 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था.ख़ुद संजय कुमार निषाद ने भी गोरखपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन वो हार गए थे.उनकी पार्टी को ज्ञानपुर सीट से जीत हासिल हुई थी जहां से विजय मिश्रा चुनाव जीते थे
सपा के साथ से गोरखपुर को जीता निषाद
बहरहाल इसके बाद संजय निषाद ने पीस पार्टी के साथ तालमेल बरक़रार रखते हुए अपना सफ़र जारी रखा.जब गोरखपुर उप-चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तो निषाद बहुल इस सीट पर उनकी सक्रियता को देखते हुए सपा ने निषाद पार्टी को विलय का प्रस्ताव दिया था, लेकिन संजय कुमार निषाद ने ऐसा करने से मना कर दिया.बाद में समाजवादी पार्टी ने उनको तवज्जो देते हुए उनके बेटे प्रवीण कुमार निषाद को अपने प्रत्याशी के तौर पर इस चुनाव में उतारा.अपनी उम्मीदवारी के समय दिए गए हलफ़नामे में प्रवीण कुमार ने अपने पास कुल 45,000 रुपये और सरकारी कर्मचारी पत्नी रितिका के पास कुल 32,000 रुपये नकदी होने का ब्यौरा दिया था.उनके पास नकदी भले ही कम हो लेकिन अब उन्होंने समर्थकों और वोटरों की बड़ी संपत्ति हासिल कर ली है.
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