मोदी सरकार ने 1983 के बाद पहली बार नजरअंदाज की सीनियरिटी, बिपिन रावत को चुना आर्मी चीफ
BY Suryakant Pathak18 Dec 2016 9:59 AM IST
X
Suryakant Pathak18 Dec 2016 9:59 AM IST
लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को नया थलसेनाध्यक्ष चुना गया है। लेकिन इससे लिए सरकार ने अबतक चली आ रही सीनियर को चुनने की व्यवस्था का पालन नहीं किया है। लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत सितंबर 2016 में आर्मी के वाइस चीफ बने थे। उन्होंने चीफ चुने जाने के लिए कमांड चीफ लेफटिनेंट प्रवीण बक्शी और दक्षिणी कमान के आर्मी चीफ लेफटिनेंट पीएम हारिज को नजरअंदाज किया गया। सरकार का कहना है कि बिपिन को मेरिट के आधार पर चुना गया है। सरकार के पास किसी को भी आर्मी चीफ चुनने का हक है लेकिन अबतक ज्यादातर मामलों में बाकियों में सबसे सीनियर को ही इस पद पर लाया जाता है। अब सबकी निगाहें लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बक्शी और लेफ्टिनेंट पीएम हारिज पर होंगी। देखना होगा कि क्या वह सरकार के इस निर्णय का विरोध करेंगे। 1983 में जनरल ए एस विद्या को आर्मी चीफ चुना गया था। इसपर उनके सीनियर लेफ्टिनेंट एस के सिन्हा ने विरोध किया था।
एयरफोर्स के मामले में सीनियर बीएस धनोआ को ही चुना गया है। लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बक्शी का 1977 के दिसंबर में कमीशन हुआ था। वहीं लेफ्टिनेंट जनरल हारिफ का कमीशन 1978 हुआ था। लगभग हर बार सीनियर को ही पद पर लिया जाता है। हालांकि, इसमें कुछ अपवाद हैं।
1983 में इंदिरा गांधी के वक्त पर एस के सिन्हा की जगह पर ए एस विद्या को चुना गया था। वहीं 1988 में एयर मार्शल एम एम सिंह की जगह एस के मेहरा को IAF चीफ बना दिया गया था। सिन्हा ने विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, बाद में उन्हें असम और जम्मू कश्मीर का गवर्नर बनाया गया। वह नेपाल में भारत के राजदूत बनकर भी गए।
Next Story