BREAKING: राफेल का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस ने कहा- हम सुनवाई को तैयार, मगर अगले हफ्ते
BY Jan Shakti Bureau5 Sept 2018 11:58 AM IST
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Jan Shakti Bureau5 Sept 2018 5:33 PM IST
नई दिल्ली: मोदी सरकार और विपक्ष के बीच में तकरार की वजह बनी राफेल (Rafale deal) का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. संसद की बहस से उठकर अब राफेल का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने को भी तैयार हो गया है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इस पर अगले हफ्ते सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई है, उसमें डील को रद्द करने और FIR दर्ज करने और कानूनी कार्रवाई की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि दो देशों के बीच हुई इस डील से भ्रष्टाचार हुआ है और ये रकम इन्हीं लोगों से वसूली जाए क्योंकि ये अनुच्छेद 253 के तहत संसद के माध्यम से नहीं की गई है. बता दें कि ग्वालियर में राफेल प्लेन आ भी चुके हैं. वकील एम एल शर्मा ने यह याचिका दाखिल की है.
गौरतलब है कि बीते काफी समय से मोदी सरकार और विपक्ष में इस मुद्दे को लेकर गहमागहमी है. कांग्रेस लगातार राफेल के मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश करती आ रही है. राहुल गांधी ने भी संसद में इस पर मोदी सरकार पर हमला बोला था. वहीं, कांग्रेस देश के कई हिस्सों में राफेल के मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए प्लान बनाया है. राफेल सौदे को लेकर विवाद बढ़ने के बीच फ्रांस से 58000 करोड़ रुपये की लागत से भारत के 36 लड़ाकू विमानों को खरीदने के समूचे मामले को समझते हैं: राफेल क्या है? राफेल अनेक भूमिकाएं निभाने वाला एवं दोहरे इंजन से लैस फ्रांसीसी लड़ाकू विमान है और इसका निर्माण डसॉल्ट एविएशन ने किया है. राफेल विमानों को वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक सक्षम लड़ाकू विमान माना जाता है.
यूपीए का क्या सौदा था ?
भारत ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी, जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी. इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंग का एफ/ए-18 एस और डसॉल्ट एविएशन का राफेल शामिल था. लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई. डसॉल्ट एविएशन सबसे कम बोली लगाने वाला निकला. मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे जबकि 108 विमान भारत में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे. रिपोर्ट्स की मानें तो 2012 से लेकर 2014 के बीच बातचीत किसी नतीजे पर न पहुंचने की सबसे बड़ी वजह थी विमानों की गुणवत्ता का मामला. कहा गया कि डसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी. साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भी एकमत वाली स्थिति नहीं थी.
यूपीए सरकार और डसॉल्ट के बीच कीमतों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर लंबी बातचीत हुई थी. अंतिम वार्ता 2014 की शुरुआत तक जारी रही लेकिन सौदा नहीं हो सका. प्रति राफेल विमान की कीमत का विवरण आधिकारिक तौर पर घोषित नहीं किया गया था, लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार ने संकेत दिया था कि सौदा 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा. कांग्रेस ने प्रत्येक विमान की दर एवियोनिक्स और हथियारों को शामिल करते हुए 526 करोड़ रुपये (यूरो विनिमय दर के मुकाबले) बताई थी.
मोदी सरकार द्वारा किया गया सौदा क्या है?
फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकारों के स्तर पर समझौते के तहत भारत सरकार 36 राफेल विमान खरीदेगी. घोषणा के बाद, विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी के बिना कैसे इस सौदे को अंतिम रूप दिया. मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलोंद के बीच वार्ता के बाद 10 अप्रैल, 2015 को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि वे 36 राफेल जेटों की आपूर्ति के लिए एक अंतर सरकारी समझौता करने पर सहमत हुए. पीएम मोदी के सामने हुए समझौते में यह बात भी थी कि भारतीय वायु सेना को उसकी जरूरतों के मुताबिक तय समय सीमा के भीतर विमान मिलेंगे. वहीं लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी. आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ.
भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 5 9,000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए. विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी. आरोप? कांग्रेस इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है. उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि संप्रग सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी. पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्यों सरकारी एयरोस्पेस कंपनी एचएएल को इस सौदे में शामिल नहीं किया गया.
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