ऐसा रहा सुषमा स्वराज का राजनितिक सफर
BY Jan Shakti Bureau7 Aug 2019 8:30 AM IST
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Jan Shakti Bureau7 Aug 2019 8:30 AM IST
एक महीने से भी कम समय में दिल्ली ने अपने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों और देश ने अपनी दो प्रखर महिला नेताओं को खो दिया को खो दिया . 20 जुलाई को दिल्ली की सबसे लंबे अंतराल तक मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित का निधन हुआ तो महज़ दो हफ़्ते बाद दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज भी चल बसीं. 14 फ़रवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी. उनके पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे. अम्बाला छावनी के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई करने के बाद सुषमा ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से क़ानून की डिग्री ली.कॉलेज के दिनों में सुषमा ने लगातार तीन वर्षों तक एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और हरियाणा सरकार के भाषा विभाग की आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में लगातार तीन बार सर्वक्षेष्ठ हिंदी वक्ता का पुरस्कार जीता.क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1973 में सुषमा ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू की. जुलाई 1975 में उनका विवाह सुप्रीम कोर्ट के ही सहकर्मी स्वराज कौशल से हुआ. उनके पति स्वराज कौशल भी सुप्रीम कोर्ट में वकील थे. स्वराज कौशल वो नाम है जो 34 वर्ष की आयु में ही देश के सबसे युवा महाधिवक्ता और 37 साल की उम्र में देश के सबसे युवा राज्यपाल बने. वह 1990-93 के बीच मिज़ोरम के राज्यपाल बनाए गये थे. आपातकाल के दौरान सुषमा ने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.
आपातकाल के बाद वह जनता पार्टी की सदस्य बन गयीं. इसके बाद 1977 में पहली बार सुषमा ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीता और महज़ 25 वर्ष की आयु में चौधरी देवी लाल सरकार में राज्य की श्रम मंत्री बन कर सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने की उपलब्धि हासिल की.दो साल बाद ही उन्हें राज्य जनता पार्टी का अध्यक्ष चुना गया. 80 के दशक में भारतीय जनता पार्टी के गठन पर सुषमा बीजेपी में शामिल हो गयीं. वह अंबाला से दोबारा विधायक चुनी गयीं और बीजेपी-लोकदल सरकार में शिक्षा मंत्री बनाई गयीं.1990 में सुषमा राज्य सभा की सदस्य बनीं. छह साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद 1996 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीतीं और अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गयीं.इसी दौरान उन्होंने लोकसभा में चल रही डिबेट के लाइव प्रसारण का फ़ैसला किया था. 1998 में सुषमा दोबारा दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं. इस बार उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय के साथ ही दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया.उनके इस कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि भारतीय फ़िल्म को एक उद्योग के रूप में घोषित करना रहा. इस फ़ैसले के बाद भारतीय फ़िल्म उद्योग को बैंकों से क़र्ज़ मिल सकता था.
इसी वर्ष अक्तूबर में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया और बतौर दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री कार्यभार संभाला.हालांकि दिसंबर 1998 में उन्होंने राज्य विधानसभा सीट से इस्तीफ़ा देते हुए राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की और 1999 में कर्नाटक के बेल्लारी से कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन वो हार गयीं. फिर साल 2000 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद के रूप में संसद में वापस लौट आयी. वाजपेयी की केंद्रीय मंत्रिमंडल में वो फिर से सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गयीं. बाद में उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों का मंत्री बनाया गया. 2009 में जब सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा पहुंची तो अपने राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी की जगह 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाई गयीं. 2014 तक वो इसी पद पर आसीन रहीं.2014 में वो दोबारा विदिशा से जीतीं और मोदी मंत्रिमंडल में भारती की पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री बनाई गयीं. प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी पार्लियामेंटेरियन और कुशल प्रशासक मानी जाने वाली सुषमा स्वराज एक वक़्त वाजपेयी के बाद सबसे लोकप्रिय वक्ता थीं. उनकी गिनती बीजेपी के डी (दिल्ली) फ़ोर में होती थी.सुषमा स्वराज बीजेपी की एकमात्र नेता हैं, जिन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत, दोनों क्षेत्र से चुनाव लड़ा है. वह भारतीय संसद की ऐसी अकेली महिला नेता हैं जिन्हें असाधारण सांसद चुना गया.
वह किसी भी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता भी थीं. सात बार सांसद और तीन बार विधायक रह चुकी सुषमा स्वराज दिल्ली की पांचवीं मुख्यमंत्री, 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, संसदीय कार्य मंत्री, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री और विदेश मंत्री रह चुकी हैं. बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ट्विटर पर भी काफ़ी सक्रिय रहती थीं. विदेश में फँसे लोग बतौर विदेश मंत्री उनसे मदद मांगते. चाहे पासपोर्ट बनवाने का काम ही क्यों न हो वो किसी को निराश नहीं करतीं.ट्विटर पर सक्रिय रहते हुए लोगों की मदद करना उन दिनों काफ़ी चर्चा में रहा. 29 सितंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र में दिया सुषमा का भाषण ख़ूब चर्चा में रहा. इसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को परिवार के सिद्धांत पर चलाने की वकालत की.इस भाषण में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ कई मौक़ों पर बातचीत शुरू हुई लेकिन ये रुक गयी तो उसकी वजह उनका (पाकिस्तान का) व्यवहार है. सुषमा ने 2015 में भी संयुक्त राष्ट्र की महासभा में भाषण दिया था और उस दौरान भी जम कर पाकिस्तान पर गरजीं थीं. तब उन्होंने पाकिस्तान को 'आतंकवादी की फैक्ट्री' कहकर संबोधित किया था.वह लगातार अपने बयानों में पाकिस्तान से चरमपंथ छोड़कर बातचीत की बात करती थीं.
विदेश मंत्री के कार्यकाल के दौरान लगातार यह भी ख़बर आती रही कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है.नवंबर 2016 में ट्वीट कर उन्होंने आम लोगों को अपने किडनी के ख़राब होने की जानकारी दी. उनका किडनी ट्रांसप्लांट किया गया.दो साल बाद नवंबर 2018 में सुषमा ने यह एलान कर दिया था कि वो 2019 का चुनाव नहीं लड़ेंगी. दो दिन पहले ख़ुद सुषमा ने अनुच्छेद 370 को ख़त्म किए जाने पर ट्वीट किया था.अपनी मौत से महज़ कुछ घंटे पहले ही सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देता हुआ ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, "मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी."
प्रधान मंत्री जी - आपका हार्दिक अभिनन्दन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी. @narendramodi ji - Thank you Prime Minister. Thank you very much. I was waiting to see this day in my lifetime.
— Sushma Swaraj (@SushmaSwaraj) August 6, 2019
यह कोई नहीं जानता था कि यह सुषमा स्वराज का आख़िरी ट्वीट होगा. 06 अगस्त 2019 को उनके देहांत के साथ ही भारतीय राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो गया.
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