'लोकसभा चुनाव में नफरत की राजनीति के खिलाफ वोट करे देश' 200 से ज्यादा लेखकों ने की अपील,
BY Jan Shakti Bureau2 April 2019 10:11 PM IST
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Jan Shakti Bureau2 April 2019 10:11 PM IST
भारतीय लेखकों के एक संगठन इंडियन राइटर्स फोरम के तहत देश के 200 से ज्यादा लेखकों ने लोगों से आगामी लोकसभा चुनाव में नफरत की राजनीति के खिलाफ मतदान करने की अपील की है। सोमवार को जारी इस अपील में लोगों से भारत की विविधता और समानता के लिए मतदान करने को कहा गया है। लेखकों ने कहा है कि इससे भारतीय संविधान के मूलभूत मूल्यों को बचाने में मदद मिलेगी। हिन्दी के अलावा अंग्रेजी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, बांग्ला, मलयालम, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, उर्दू, कश्मीरी और कोंकणी भाषा के 200 से अधिक लेखकों ने इस अपील में कहा है कि "आगामी चुनाव में हमारा देश दोराहे पर खड़ा है। हमारा संविधान अपने सभी नागरिकों को खाने-पीने, प्रार्थना करने और जीने की आजादी के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के समान अधिकारों की गारंटी देता है।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा कि धर्म, जाति, लिंग या क्षेत्र के आधार पर देश के कुछ नागरिकों को मारा गया, उन पर हमला किया गया और उनके साथ भेदभाव किया गया। नफरत की राजनीति का इस्तेमाल देश को बांटने और भय पैदा कर अधिक से अधिक लोगों को पूर्ण नागरिकों के अधिकार से वंचित करने के लिए किया गया। देश की विभिन्न भाषाओं के 200 से ज्यादा लेखकों ने लोगों से लोकसभा चुनाव में नफरत की राजनीति के खिलाफ मतदान करने की अपील की है। इंडियन राइटर्स फोरम की ओर से जारी इस अपील में लेखकों ने कहा कि यह मतदान भारत की विविधता और समानता के अधिकारों के लिए होगा" अपील में आगे कहा गया है कि इन वर्षों में लेखकों, कलाकारों, फिल्म निर्माताओं, संगीतकारों और अन्य संस्कृति कर्मियों को डराया-धमकाया और सेंसर रोका गया। जो भी सत्ता पर सवाल उठाता है, उसके झूठे और हास्यास्पद आरोपों में परेशान या गिरफ्तार होने का खतरा रहता है। दो सौ से अधिक लेखकों के संगठन इंडियन राइटर्स फोरम ने अपील में आगे कहा, "हम सभी देश के हालात में बदलाव चाहते हैं।
हम नहीं चाहते हैं कि तर्कवादियों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को डराया जाए या उनकी हत्या हो। हम महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहते हैं। हम रोजगार, शिक्षा, अनुसंधान, स्वास्थ्य सेवा के लिए संसाधन और उपाय और सभी के लिए समान अवसर चाहते हैं। सबसे बढ़कर, हम अपनी विविधता को बचाना चाहते हैं और लोकतंत्र को फलने-फूलने देना चाहते हैं।" लेकिन ये हम कैसे करेंगे? हम इस तत्काल आवश्यक बदलाव को कैसे लाएंगे? इस सवाल का जवाब देते हुए लेखकों ने कहा, "पहला कदम जो हम उठा सकते हैं वे ये कि नफरत की राजनीति के खिलाफ मतदान करें। लोगों के बीच विभाजन के खिलाफ वोट दें, असमानता के खिलाफ वोट करें, हिंसा, धमकी और सेंसरशिप के खिलाफ वोट करें। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम उस भारत के लिए मतदान कर सकते हैं जो हमारे संविधान द्वारा किए गए वादों की पूनर्बहाली करता है। यही कारण है कि हम सभी नागरिकों से एक विविध और समान भारत के लिए मतदान करने की अपील करते हैं।" लेखकों ने यह अपील हिन्दी के अलावा अंग्रेजी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, बांग्ला,मलयालम, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, उर्दू, कश्मीरी और कोंकणी भाषा में भी जारी की है।
इस अपील पर गिरीश कर्नाड, अरुंधति राय, अमिताव राय, बामा, नयनतारा सहगल, टी एम कृष्णा, विवेक शानबाग, रोमिला थापर, प्रदन्या दया पवार, शशि देशपांडे, दामोदर मौजो, विवान सुंदरम, अनवर अली, असद जैदी, रहमान अब्बास और शरणकुमार लिम्बाले सहित कई लेखकों के हस्ताक्षर हैं। गौरतलब है कि इससे पहले कई फिल्मकारों ने भी बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए लोगों से अपील की थी कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट न दें। हाल ही में कई फिल्मकारों ने 'लोकतंत्र बचाओ मंच' के तहत एकजुट होकर लोगों से बीजेपी को वोट न देने की अपील की थी। इन फिल्मकारों में आनंद पटवर्धन, दीपा धनराज, देवाशीष मखीजा, एसएस शशिधरन, सुदेवन, गुरविंदर सिंह, पुष्पेंद्र सिंह, कबीर सिंह चौधरी, अंजलि मोंटेइरो, प्रवीण मोरछले और उत्सव के निर्देशक और संपादक बीना पॉप जैसे बड़े स्वतंत्र फिल्मकारों के नाम शामिल हैं। मोदी सरकार पर धुव्रीकरण और घृणा की राजनीति का आरोप लगाते हुए इन फिल्मकारों ने कहा था कि 2014 में आई इस सरकार ने दलितों, मुसलमान और किसानों को हाशिए पर धकेल दिया है। सरकार देश के न्याय तंत्र को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संस्थानों को लगातार कमजोर करने वाली इस सरकार में सेंसरशिप में बढ़ोत्तरी हुई है।
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