EXCLUSIVE: विपक्ष का रोना रोने वाले भाजपाई भूल गए, मायावती-अखिलेश के सरकार में इन गैंगरेप पर विधवा विलाप कर हिला दी थी सरकार की नींव
2012 में सपा की सरकार बनी और सीबीआई जांच की सिफारिश की गई। सीबीआई ने बसपा के पूर्व विधायक व आरोपित पुरुषोत्तम नरेश दि़वेदी और उनके चार सहयोगियों के खिलाफ अलग – अलग मामले दर्ज किए। सीबीआई ने अपनी जांच में सीबीसीआईडी जांच को सही पाया और पुरुषोत्तम दिवेदी व उनके सहयोगियों में वीरेंद्र कुमार शुक्ल, रघुवंशमणि दिवेदी, रामनरेश दिवेदी और राजेंद्र शुक्ल के खिलाफ आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया। सीबीआई अदालत ने पांच जून 2015 को पूर्व विधायक पुरुषोत्तम दिवेदी को दोषी मानकर दस साल की सजा सुनाई है।
लखनऊ। महिलाओं के साथ दुष्कर्म पर उत्तर प्रदेश की जनता जितनी संवेदनशील है सरकारी मशीनरी उसी अनुपात में कई गुना ज्यादा निरंकुश, बेशर्म और महिला अस्मिता को आघात पहुंचाने वाली साबित हुई है। महिलाओं के साथ अपराध को हल्का साबित करने के लिए प्रेम -प्रसंग से लेकर नारी मर्यादा व संस्कार के बहाने तलाशे गए लेकिन प्रदेश के नागरिकों को जब इंसाफ का मौका मिला तो उन्होंने सरकारों के तख्त ही पलट डाले। बांदा का शीलू रेप कांड, बदायूं की दो बहनों का मामला और बुलंदशहर के हाइवे रेप कांड ने राजनीतिक दलों को अर्श से उतारकर फर्श पर पटक दिया।
बांदा का शीलू रेप कांड
उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी की सरकार में मायावती को कानून-व्यवस्था में सुधार का श्रेय मिलने लगा था उसी दौर में बांदा के नरेनी से बसपा विधायक पुरुषोत्तम दिवेदी पर नाबालिग शीलू के साथ सामूहिक दुराचार का आरोप लगा। बसपा विधायक को बचाने में पूरी सरकारी मशीनरी जुट गई। उल्टा पीडिता पर आरोप लगाया गया कि वह विधायक के घर से मोबाइल फोन चोरी कर ले गई है इसलिए ही विधायक पर आरोप लगा रही है।
पीड़िता को ही बनाया आरोपी
पुलिस ने इस मामले में शीलू को आरोपी बनाकर जेल भी भेज दिया। जब उसे जेल ले जाया गया तब भी उसकी हालत ठीक नहीं थी और रक्तस्राव हो रहा था। यही इतना नहीं पुलिस ने शीलू को बालिग करार देते हुए शारीरिक संबंधों का आदी भी बताया। मीडिया में मामला तूल पकडने लगा तो मायावती ने सीबीसीआईडी जांच के आदेश दिए।
पुरुषोत्तम नरेश बसपा से निलंबित
दो जनवरी 2012 को विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी को बसपा से निलंबित कर दिया गया। बाद में 13 जनवरी 2012 को विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी व दो अन्य आरोपितों को जेल भेजा गया। विधायक की पत्नी ने इस बीच कहा कि विधायक दुराचार करने में सक्षम नहीं लेकिन सीबीसीआईडी की जांच में दुराचार की पुष्टि हुई। मोबाइल फोन चोरी का आरोप प्रमाणित नहीं हुआ।
सीबीसीआईडी की यह जांच रिपोर्ट जब अदालत में पहुंची तो अदालत ने शीलू को जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि बांदा के तत्कालीन कप्तान अनिलदास ने जेल में जाकर शीलू को धमकाया था लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बाद में वह अपना स्थानांतरण सीबीसीआईडी में कराने में कामयाब रहे।
पूर्व विधायक पुरुषोत्तम दिवेदी को दोषी मानकर दस साल की सजा
2012 में सपा की सरकार बनी और सीबीआई जांच की सिफारिश की गई। सीबीआई ने बसपा के पूर्व विधायक व आरोपित पुरुषोत्तम नरेश दि़वेदी और उनके चार सहयोगियों के खिलाफ अलग – अलग मामले दर्ज किए। सीबीआई ने अपनी जांच में सीबीसीआईडी जांच को सही पाया और पुरुषोत्तम दिवेदी व उनके सहयोगियों में वीरेंद्र कुमार शुक्ल, रघुवंशमणि दिवेदी, रामनरेश दिवेदी और राजेंद्र शुक्ल के खिलाफ आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया। सीबीआई अदालत ने पांच जून 2015 को पूर्व विधायक पुरुषोत्तम दिवेदी को दोषी मानकर दस साल की सजा सुनाई है।
बदायूं की बहनों के दुष्कर्म का मामला
बदायूं के थाना उसहैत के गांव कटरा साहदतगंज में मई 2014 में दो नाबालिग बहनों की लाश पेड से लटकती पाई गई। दोनों बहनें एक दिन पहले शाम को घर से गायब हुईं। परिवार के लोग रात में ही थाने पहुंचे लेकिन उन्हें भगा दिया गया। लाश मिलने पर दुष्कर्म की आशंका जताते हुए परिवारजनों ने पुलिस पर आरोपितों को बचाने का आरोप भी लगा दिया। आरोपित और पुलिसकर्मियों में यादव जाति के लोगों के शामिल होने से मामला तूल पकडता गया।
लडकियों की लाश को महिलाओं ने लाठी लेकर घेर लिया
सरकार पर भी आरोप लगे कि वह मामले में लीपापोती कर रही है। पुलिसकर्मियों को बर्खास्त करने की भी मांग उठी। पीडित परिजनों की बात नहीं सुनने और धमका कर भगाने वाले सिपाही सर्वेश यादव और छत्रपाल की हरकत से उपजे अविश्वास का आलम यह था कि दोनों लडकियों की लाश को महिलाओं ने लाठी लेकर घेर लिया और पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हुए बगैर लाश भी पोस्टमार्टम के लिए देने को तैयार नहीं हो रहे थे।
सपा नेताओं ने दिए विवादित बयान
आरोपितों को पकडकर पुलिस ने जेल भेज दिया। इसी दौरान समाजवादी पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं के ऐसे बयान सामने आए जिन्होंने आग में घी डालने का काम किया और सरकार पर आरोप चस्पा हो गया कि वह बलात्कार पीडित दलित वर्ग की बच्चियों को इंसाफ दिलाने के मूड में नहीं है।
बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती समेत सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने इसे मुद़दा बनाया। आखिरकार सीबीआई जांच के आदेश हुए। किशोरियों के साथ दुराचार की पुष्टि के लिए हैदराबाद की फोरेंसिक लैब को नमूने भेजे गए। बाद में फोरेंसिक रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि दोनों लडकियों के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था। इसके बाद आरोपित बरी हुए लेकिन यह मामला समाजवादी पार्टी सरकार के लिए बदनुमा दाग बनकर लगा रहा।
बुलंदशहर हाइवे रेपकांड
चार साल पहले नोएडा में रहने वाला एक परिवार रात में अपने बुलंदशहर स्थित गांव जा रहा था रास्ते में हथियारबंद बदमाशों ने पूरे परिवार को काबू कर लिया। इस परिवार में दो महिलाएं और एक नाबालिग बच्ची भी थी। बदमाशों ने लूटपाट के बाद महिलाओं और मासूम बच्ची के साथ दुराचार किया। विरोध करने पर परिवार के एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या भी कर दी।
बलात्कारियों को संरक्षण देने का भी आरोप
यह मामला जब मीडिया में उछला तो सपा सरकार जो एक साल पहले बदायूं रेपकांड को लेकर कटघरे में खडी थी उस पर प्रदेश में बलात्कारियों को संरक्षण देने का भी आरोप लगा। पुलिस ने पहले रेप की घटना को छुपाने की कोशिश की और लूटपाट का मामला बताया लेकिन जब पीडित परिवार सामने आया और लोगों को पता चला कि परिवार की महिलाओं के साथ ही मासूम बच्ची भी बलात्कारियों का शिकार बनी है तो पूरे देश का आक्रोश सपा सरकार पर फूट पडा। पीडित परिवार के पुनर्वास और सुरक्षा को लेकर सवाल खडे हुए।
नोएडा के मॉब लिंचिंग के शिकार अखलाख को मिले मुआवजा और पुलिस कार्रवाई की तुलना इस कांड से की गई और लोगों ने अखिलेश यादव सरकार को धिक्कारना शुरू कर दिया। इस कांड के बाद सरकार का ग्राफ नीचे गिरता चला गया।
महिलाओं से सामूहिक दुराचार के इन मामलों में तत्कालीन सरकारों और पुलिस का रवैया अपराध पर परदा डालने का रहा। इससे लोगों का आक्रोश बढता गया। लोग इंसाफ होते हुए देखना चाहते थे। जाति-धर्म और राजनीतिक लाभ-हानि को ध्यान में रखकर काम करने की सोच ने सरकारों के नीचे की जमीन खिसका दी। चुनावों में बसपा और सपा दोनों को ही करारी शिकस्त का सामना करना पडा।
प्रदेश की सरकार बदल देने वाले गुस्से से साफ है कि प्रदेश की जनता महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों को लेकर बेहद संवेदनशील है। जाति, धर्म और वर्ग का भेदभाव किए बगैर इंसाफ होते हुए देखना चाहती है ऐसे में सरकार और उसके अधिकारी अगर असंवेदनशीलता दिखाएंगे तो इसकी बडी कीमत राजनीतिक दलों को ही चुकानी पडेगी।