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गोरखपुर बच्चों की हत्या: गनीमत है कि प्रेतात्मा का साया नहीं बताया सरकार ने!
BY Jan Shakti Bureau13 Aug 2017 11:56 AM IST
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Jan Shakti Bureau13 Aug 2017 12:31 PM IST
हैरोल्ड लास्की ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'राजनीति का व्याकरण' में लिखा था कि जनतंत्र में राज्य का संचालन विशेषज्ञों का काम है क्योंकि उसे उस जनता के हितों के लिये काम करना होता है जो अपने हितों के प्रति ही ज़्यादातर बेख़बर रहती है। ऐसे में सिर्फ वोट में जीतने से वास्तव में कोई प्रशासक नहीं हो जाता। ख़ास तौर पर जो लोग जनता के पिछड़ेपन का लाभ उठाने की राजनीति करते हैं, सत्ता पर आने के बाद वे जनता के जीवन में सुधार के नहीं, और ज्यादा तबाही के कारक बन जाते हैं। हैरोल्ड लास्की के इस कथन के क्लासिक उदाहरण हैं हमारे देश की मोदी सरकार और यूपी की योगी सरकार। मोदी जी को जब और कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने नोटबंदी की तरह का तुगलकी कदम उठा कर पूरी अर्थ-व्यवस्था को ही पटरी से उतार दिया।
मोदी और जेटली।
जनता के हितों के लिये काम करने के लिये बनी सरकार ने एक झटके में लाखों लोगों के रोजगार छीन लिये; किसानों के उत्पादों के दाम गिरा कर पूरी कृषि अर्थ-व्यवस्था को चौपट कर दिया। जीडीपी का आँकड़ा 2016-17 की चौथी तिमाह में गिरते हुए सिर्फ 6.1 प्रतिशत रह गया है ; औद्योगिक उत्पादन में पिछले महीने -0.01 प्रतिशत की गिरावट हुई है । यहाँ तक कि बैंकों की भी, ख़ुद रिजर्व बैंक की हालत ख़राब कर दी। नोटबंदी के धक्के के कारण इस बार आरबीआई ने केंद्र सरकार को मात्र 30659 करोड़ रुपये का लाभ दिया है जो पिछले पाँच सालों में सबसे कम और पिछले साल की तुलना में आधा है। जाहिर है इससे अपने वित्तीय घाटे से निपटने में केंद्र सरकार की समस्या और बढ़ जायेगी जिसकी गाज जनहित के ही किसी न किसी प्रकल्प पर गिरेगी । पूरी अर्थ-व्यवस्था अभी इस क़दर बैठती जा रही है कि अब अर्थशास्त्री मुद्रास्फीति की नहीं, मुद्रा-संकुचन को आज की मुख्य समस्या बताने लगे हैं। मुद्रा संकुचन का अर्थ होता है कंपनियों के मुनाफ़े में तेज़ी से गिरावट और उनके ऋणों के वास्तविक मूल्य में वृद्धि। इसकी वजह से बैंकों का एनपीए पहले के किसी भी समय की तुलना में और तेजी से बढ़ेगा ।
यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ।
इसी प्रकार, गोरखपुर अस्पताल में आक्सीजन की आपूर्ति की समस्या को जानने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी बच्चों की मृत्यु का कारण उनकी बीमारियों को बता रहे हैं जबकि इन बीमारियों से जूझने के लिये ही उन्हें आक्सीजन दी जा रही थी। उन्होंने ख़ुद माना कि आक्सीजन के सप्लायर को उसका बक़ाया नहीं चुकाया गया था, फिर भी बच्चे और कुछ वयस्क भी, जो आक्सीजन पर थे, उनके अनुसार अपनी बीमारियों की वजह से मरे! योगी की इन बेवक़ूफ़ी की बातों को क्या कहा जाए? गनीमत है कि अभी तक उन्होंने अस्पताल पर किसी प्रेतात्मा को ज़िम्मेदार नहीं बताया और यज्ञ-हवन के जरिये अस्पताल को उससे मुक्त करने का उपाय नहीं सुझाया है। लेकिन वे कल यदि ऐसे ही किसी भारी-भरकम आयोजन में बैठ जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार से लेकर भाजपा की तमाम सरकारें पर्यावरण से लेकर दूसरी कई समस्याओं के समाधान के लिये आज किसी न किसी 'नमामि' कार्यक्रम में लगी हुई है। मोदी जी के पास देश की हर समस्या का समाधान प्रचार के शोर में होता है। वह भले स्वच्छ भारत का विषय हो या कोई और।
एक बच्चे का परिजन।
केंद्र और राज्य सरकारों के इन कार्यक्रमों में लाखों लोग शामिल होते हैं, अर्थात जनता ख़ुश होती है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सारे प्रचारमूलक कामों से जनता का ही सबसे अधिक नुक़सान होता है। जन हितकारी विकल्पों के लिये धन में कमी करनी पड़ती है। मोदी सरकार पहली सरकार है जिसने उच्च शिक्षा और शोध में खर्च को पहले से आधा कर दिया है। मनरेगा का भट्टा पहले से ही बैठा दिया गया है। किसानों के कर्ज-माफी के सवाल पर भी बहुत आगे बढ़ कर कुछ करने की इनकी हिम्मत जवाब देने लगी है। ऊपर से कूटनीतिक विफलताओं के चलते सीमाओं पर युद्ध की परिस्थति पूरे परिदृष्य को चिंताजनक बना दे रही है। इसीलिये आज हैराल्ड लास्की बहुत याद आते हैं- जनतंत्र में प्रशासन खुद में एक विशेषज्ञता का काम है। यह कोरे लफ्फाजों के बस का नहीं होता है। मोदी और योगी के तमाम कदमों के पीछे की विवेकहीनता को देख कर इस बात को और भी निश्चय के साथ कहा जा सकता है।
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