हैदराबाद नगर निगम चुनाव: ओवैसी के किले में भाजपा नहीं लगा पाई सेंध, नहीं चला योगी और अमित शाह जैसे स्ट्रार प्रचारकों का जादू
भले ही भाजापा ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया है। लेकिन नतीजों से एक बात और साफ हो गई है कि वह औवैसी के गढ़ को हिला नहीं पाई है। भले ही उसके लिए उसने अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ जैसे स्ट्रार प्रचारकों की पूरा फौज उतार दी थी।
नई दिल्ली। भले ही भाजापा ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया है। लेकिन नतीजों से एक बात और साफ हो गई है कि वह औवैसी के गढ़ को हिला नहीं पाई है। भले ही उसके लिए उसने अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ जैसे स्ट्रार प्रचारकों की पूरा फौज उतार दी थी। चुनाव में ओवैसी ने 51 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे थे, उसके बावजूद उनकी पार्टी एआईएमआईएम 44 सीटें जीतने में सफल रही। खास बात यह है कि अब मेयर चुनाव के लिए ओवैसी किंग मेकर की भूमिका भी निभा सकते हैं।
नतीजों के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ववह पार्टी के प्रदर्शन से खुश है। हमारा स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा है। इस दौरान उन्होंने कहा कि जहां-जहां अमित शाह और योगी आदित्यनाथ प्रचार करने गए, वहां-वहां भाजपा को हार मिली है।
यह रणनीति अपनाई
ओवैसी ने पूरे चुनाव के दौरान मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर पूरा ही फोकस किया। चुनावी रैलियों में, उन्होंने स्थानीय मुद्दें उठाएं और मोदी को घेरा। साथ ही टिकट वितरण मे मुस्लिम, दलितों पर ज्यादा फोकस किया । साथ ही भाजपा के हैदराबाद को भाग्यनगर बनाने के मुद्दे पर फोकस रखा ।इसी का परिणाम था कि उनके गढ़ में पार्टी का स्ट्राइक रेट शानदार रहा । इस वजह से न तो टीआरएस की तरह उनकी सीट घटी और न वोट प्रतिशत घटा। लेकिन भाजपा के आने से यह जरूर हुआ कि वह तीसरे नंबर पर सिमट गए और अपना विस्तार नहीं कर पाए।
फाइनल नतीजे
हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा ने ने 150 वार्ड सदस्यों वाले निगम में 48 सीटें जीती हैं। जबकि सत्तारूढ़ टीआरएस को 55 सीटों पर जीत हासिल हुई है। असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाले एआइएमआइएम ने 44 सीटें जीती हैं। चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है और उसे महज दो सीटें मिली हैं।
मेयर पर फंसेगा पेंच
भाजपा की बड़ी कामयाबी ने मेयर के चुनाव को फंसा दिया है। क्योंकि टीआरएस जो कि पिछले चुनाव में 99 सीटें जीती थी, उसे 150 सीटों वाले नगरनिगम में बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में उसे अब अपना मेयर चुनने के लिए एआईएमआईएम या फिर भाजपा का साथ लेना होगा। जहां तक ओवैसी का बात है तो उन्होंने अपने पत्ते अभी नहीं खोले हैं। और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के लिए भाजपा का दामन थामन आसान नहीं होगा, क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्हें अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा पर रोक लगानी होगी।