Janskati Samachar
देश

MDH ग्रुप के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का निधन, 98 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

धर्मपाल गुलाटी विज्ञापन की दुनिया के सबसे उम्रदराज स्टार और 'महाशियां दी हट्टी' (एमडीएच) के मालिक थे. कभी तांगा चलाकर पेट भरने को मजबूर ये शख्स आज के समय में 2000 करोड़ रुपयों के बिजनेस ग्रुप के मालिक थे.

MDH Group owner Dharampal Gulati passed away, breathed his last at the age of 98
X

नई दिल्ली: देश की नामी मसाला कंपनी महाशिया दी हट्टी (MDH) के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का 98 साल की उम्र में निधन हो गया है. आज सुबह 5.38 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. दोपहर दो बजे उनका उनका अंतिम संस्कार होगी. गुलाटी कोरोना से संक्रमित होने के बाद ठीक हो गए थे. उन्हें पद्मभूषण से नवाजा जा चुका है. धर्मपाल गुलाटी विज्ञापन की दुनिया के सबसे उम्रदराज स्टार और 'महाशियां दी हट्टी' (एमडीएच) के मालिक हैं. कभी तांगा चलाकर पेट भरने को मजबूर ये शख्स आज 2000 करोड़ रुपयों के बिजनेस ग्रुप का मालिक थे. धर्मपाल गुलाटी एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) सेक्टर में सबसे अधिक कमाई करने वाले सीईओ हैं. इतना ही नहीं, पिछले साल गणतंत्र दिवस के मौके पर उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित भी किया गया.


दिल्ली की सड़कों पर चलाया था तांगा

एमडीएच की वेबसाइट पर किये गए दावों के मुताबिक, धर्मपाल गुलाटी एक समय पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बारा हिंदू राव तक तांगा चलाते थे. प्रति सवारी दो आना मिलता था. धर्मपाल गुलाटी ने अपने संघर्ष भरे जीवन के बारे में एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए एक बार कहा था कि मेहनत, इमानदारी और लगन की वजह से आज लंदन-दुबई में कारोबार है. उन्होंने अपने शुरुआती जीवन के बारे में कहा था, ''पांचवी क्लास में मुझे टीचर ने डांटा तो मैंने स्कूल छोड़ दिया. फिर जब मैं बड़ा हुआ तो बढ़ई का काम किया. फिर मेरे पिताजी ने अपनी दुकान पर बैठा दिया. उसके बाद हार्डवेयर का काम किया. मुझे एक बार चोट लगी तो मैंने ये काम भी छोड़ दिया. फिर मैं घूम-घूम कर मेहंदी का काम करने लगा."

उन्होंने आगे कहा, ''मेहंदी के काम के बाद फिर पिताजी के साथ मसाले का काम शुरू किया. लेकिन बंटवारे में सबकुछ खत्म हो गया. भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत की तरफ लाशों भरी गाड़ियां आ जा रही थी. मैं भी पूरे परिवार के साथ दिल्ली आ गया. तब मेरे पास मात्र 1500 रुपये थे. जब मैं भारत आया तो मैं एक दिन चांदनी चौक गया. कुछ लोग तांगे बेच रहे थे. मैंने कहा मियां कितने का है तो उसने कहा आठ सौ का है. मैंने 650 रुपये का तांगा खरीद लिया. साल 1947 में मैंने दो महीने तक तांगा चलाया.''

Next Story
Share it