Anandibai Joshi Wiki Biography in Hindi | आनंदीबाई जोशी का जीवन परिचय

Anandibai Joshi Wiki Biography in Hindi | आनंदीबाई जोशी जिन्हें कुछ लोग आनंदी गोपाल जोशी के नाम से भी जानतें है, भारत की प्रथम महिला डॉक्टर है. इनकी जन्म तारीख 31 मार्च 1865 है. उस समय जब महिलाओं का प्रारंभिक शिक्षा पाना ही मुश्किल था, ऐसे समय आनंदी बाई का डॉक्टर की पढाई करना एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी.

Update: 2021-01-06 07:39 GMT

Anandibai Joshi Wiki Biography in Hindi | आनंदीबाई जोशी का जीवन परिचय

Anandibai Joshi Wiki Biography in Hindi | आनंदीबाई जोशी जिन्हें कुछ लोग आनंदी गोपाल जोशी के नाम से भी जानतें है, भारत की प्रथम महिला डॉक्टर है. इनकी जन्म तारीख 31 मार्च 1865 है. उस समय जब महिलाओं का प्रारंभिक शिक्षा पाना ही मुश्किल था, ऐसे समय आनंदी बाई का डॉक्टर की पढाई करना एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी. ये प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने ग्रेजुएशन के बाद यूनाइटेड स्टेट से 2 साल की मेडिकल में डिग्री हासिल की थी. इसी के साथ आनंदीबाई अमेरिका की धरती पर जाने वाली प्रथम भारतीय महिला भी थी.

आनंदी बाई के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें Important Information About Anandibai's Life

  • नाम आनंदीबाई
  • पूरा नाम आनंदीबाई गोपालराव जोशी
  • बचपन का नाम यमुना
  • जन्म 31 मार्च 1865
  • मृत्यु 26 फरवरी 1887
  • पेशा डॉक्टर
  • पति का नाम गोपालराव जोशी
  • शिक्षा डॉक्टर्स इन मेडिसिन
  • उपलब्धि भारत की प्रथम महिला डॉक्टर
  • नागरिकता भारतीय
  • धर्म हिंदु

जन्म और प्रारंभिक जीवन Birth and Early Life :

भारत की इस प्रथम महिला डॉक्टर का जन्म साल 1865 में ब्रिटिश काल में ठाणे जिला के कल्याण में हुआ था जो वर्तमान में महाराष्ट्र का हिस्सा है. इनका जन्म एक हिंदु परिवार में हुआ था और इनका नाम यमुना रखा गया था. इनकी शादी मात्र 9 वर्ष की उम्र में अपने से 20 वर्ष बड़े व्यक्ति के साथ कर दी गई थी.

गोपालराव जोशी Gopalrav Joshi :

गोपालराव जोशी ही वे व्यक्ति थे जिससे यमुना की शादी हुई थी. शादी के बाद यमुना का नाम बदलकर आनंदी रखा गया था. इनके पति कल्याण में ही पोस्ट ऑफिस में क्लर्क का काम करते थे, परंतु कुछ समय बाद इनका तबादला अलीबाग और अंत में कलकत्ता में हो गया. गोपालराव जी उच्च विचारों वाले और नारी शिक्षा को बढ़ावा देने वाले व्यक्ति थे. उस समय के ब्राह्मण परिवार संस्कृत को अधिक बढ़ावा देते थे और उसी का अध्यन करते थे. परंतु गोपालराव जी ने अपने जीवन में संस्कृत की अपेक्षा हिंदी को अधिक महत्व दिया. उस समय गोपालराव जी ने आनंदीबाई का पढ़ाई की तरफ रुझान देखा तो उन्होंने इसे बढ़ावा दिया और उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और अंग्रेजी सिखने में मदत की.

आनंदीबाई की संतान Anandibai's Child :

अपनी शादी के 5 वर्ष बाद आनंदीबाई ने एक संतान को जन्म दिया जो की लड़का था. इस वक्त उनकी उम्र केवल चौदह वर्ष थी. परंतु यह बच्चा केवल 10 दिन का जीवन जी सका और जरुरी स्वास्थ सुविधाओं के आभाव के कारण उसकी मृत्यु हो गई. आनंदीबाई के जीवन में यह घटना परिवर्तन का विषय बनी और फिर उन्होंने शिक्षा प्राप्त कर डॉक्टर बनने की ठान ली.

आनंदीबाई की शिक्षा के लिए किये गये प्रयास (Anandibai Joshi education)

आनंदीबाई के पुत्र की मृत्यु के बाद उनके पति ने उन्हें शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया. अपनी पत्नी की रूचि मेडिकल में देखते हुए उन्होनें अमेरिका के रॉयल विल्डर कॉलेज को खत लिखकर अपनी पत्नी की पढ़ाई के लिए आवेदन किया. विल्डर कॉलेज ने उनके सामने इसाई धर्म अपनाने की पेशकश और उनकी मदत का आश्वासन दिया, परंतु उन्होने इसे अस्वीकार किया. इसके पश्चात् न्यू जर्सी के निवासी ठोडीसिया कारपेंटर नामक व्यक्ति को इनके बारे में पता चला, तो उन्होंने इन्हें पत्र लिखकर अमेरिका के आवास के लिए मदत का आश्वासन दिया.

इसके बाद कलकत्ता में ही आनंदीबाई का स्वास्थय खराब रहने लगा. उन्हें कमजोरी, बुखार, लगातार सिरदर्द और कभी-कभी साँस लेने में दिक्कत होने लगीं. इसी दौरान साल 1883 में गोपाल राव का तबादला श्रीरामपुर हो गया और उन्होंने इस समय आनंदीबाई को मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश भेजने का अपना फैसला पक्का कर लिया. और इस तरह यह लोगो के समक्ष नारी शिक्षा के प्रति एक मिसाल कायम हुई. एक डॉक्टर कपल ने आनंदीबाई को महिला मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया में पढ़ने का सुझाव दिया. परंतु आनंदीबाई के इस कदम के प्रति हिंदू समाज में बहुत विरोध की भावना थी वे नहीं चाहतें थे की उनके देश का कोई व्यक्ति विदेश जाकर पढ़े, कुछ इसाई समाज ने इसे सपोर्ट किया परंतु उनकी इच्छा इनका धर्म परिवर्तित करवाने की थी.

अपने फैसले को लेकर हिंदू समाज में विरोध को देखते हुए आनंदीबाई ने श्रीरामपुर कॉलेज में अपना पक्ष अन्य लोगों के समक्ष रखा. उन्होनें अपने अमेरिका जाने और मेडिकल की डिग्री प्राप्त करने के लक्ष को लोगो के मध्य खुलकर रखा और लोगो को महिला डॉक्टर की जरुरत के बारे में समझाया. अपने इस संबोधन में उन्होंने लोगों के सामने यह भी बताया की वे और उनका परिवार भविष्य में कभी भी इसाई धर्म स्वीकार नहीं करेगा और वापस आकर भारत में भी महिलाओं के लिए मेडिकल कॉलेज खोलने का प्रयास करेंगे. उनके इस प्रयास से लोग प्रभावित हुए और देश भर से लोग उन्हें सपोर्ट करने लगे, और उनके लिए पैसो का सहयोग भी आने लगा. इस प्रकार उनकी राह में लगा पैसो की समस्या का रोडा भी हट गया.

आनंदीबाई का अमेरिका का सफर Anandibai's American Journey :

भारत में सहयोग के बाद आनंदीबाई अमेरिका में अपना सफर शुरू कर पाई, और उन्होनें भारत से अमेरिका जाने के लिए जहाज से सफर किया. इस प्रकार जून साल 1883 में वे अमेरिका पहुची और उन्हें लेने के लिए उन्हें मदत का आश्वासन देने वालें व्यक्ति ठोडीसिया कारपेंटर खुद पहुचे. इसके बाद उन्होनें अपनी शिक्षा के लिए मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेनसिलवेनिया को आवेदन किया, और उनकी इस इच्छा को इस कॉलेज द्वारा स्वीकार कर लिया गया. उन्होनें मात्र 19 वर्ष की उम्र में मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और 11 मार्च 1886 में अपनी शिक्षा पूर्ण कर एम डी (डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन) की उपाधि हासिल की. उनकी इस सफलता पर क्वीन विक्टोरिया ने भी उन्हें बधाई दी.

परंतु अपनी इस शिक्षा के समय अमेरिका के ठंडे मौसम और वहाँ के खाने को स्वीकार ना कर पाने के कारण उनकी तबियत लगातार बिगडती चली गई, और वे ट्यूबरक्लोसिस की चपेट में आ गई. इस प्रकार अमेरिका उनकी शिक्षा के लिए तो उपयुक्त रहा परंतु उनकी सेहत ने वहाँ उनका साथ छोड़ दिया.

आनंदीबाई के साथ डॉक्टर की उपाधि लेने वाली अन्य महिलाएं Other women taking a doctorate with Anandibai :

साल 1886 में आनंदीबाई के साथ विमेंस मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेनसिलवेनिया से अन्य दो महिलाओं ने भी इस उपाधि को प्राप्त किया. उन महिलाओं के नाम कि ओकामी और ताबत इस्लाम्बूली थे. ये वे महिलाएं थी जिन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया था और अपने अपने देश की इस उपाधि को प्राप्त करने वाली पहली महिला होने का गौरव प्राप्त किया था.

आनंदीबाई कि शिक्षा के बाद भारत वापसी Anandibai returning to India after education

अपनी डिग्री हासिल करने के बाद आनंदीबाई अपने लक्ष के अनुसार भारत वापिस आई. उन्होनें वहाँ से वापस आने के बाद सर्वप्रथम कोलाहपूर में अपनीं सेवाएँ दी. यहाँ उन्होनें अल्बर्ट एडवर्ड हॉस्पिटल में महिला विभाग का काम संभाला. यह भारत में महिलाओं के लिए प्रथम अवसर था जब उनकें इलाज़ के लिए कोई महिला चिकित्सक उपलब्ध थी. और आज से एक शताब्दी पूर्व यह बहुत ही बड़ी बात थी जो की आनंदीबाई ने कठिन परिस्थियों में कर दिखाई थी.

आनंदी बाई का अंतिम समय Last Days (Anandibai Joshi death reason)

अपनी डॉक्टर की उपाधि हासिल करने के मात्र एक वर्ष बाद 26 फरवरी 1887 को आनंदीबाई का निधन हो गया. इनकी मृत्यु का कारण टीबी की बीमारी थी, जिससे इनकी सेहत दिन प्रतिदिन गिरती चली गई, और अंत में एक डॉक्टर एक बीमारी के आगे हार गई. मात्र 22 वर्ष की उम्र में उनका निधन देश के लिए बहुत बड़ी क्षति थी, जिसकी भरपाई कर पाना मुश्किल था. परंतु अपनी इस छोटी सी जिन्दगी में उन्होनें वो कर दिखाया था जो हम अपने पुरे जीवन काल में नहीँ कर पाते. उस वक्त जहाँ पुरा देश उनकी मृत्यु के शोक में था, और उनकी राख को न्यू जर्सी ठोडीसिया कारपेंटर को भेजा गया, जिसे वहाँ के कब्रिस्तान में जगह मिली.

आनंदीबाई को दिये गयें सम्मान (Anandibai Joshi Achievements)

इतनी कम उम्र में इतना सबकुछ कर दिखाना बहुत ही बड़ी बात है, परंतु ऐसे व्यक्तियों की जानकारी अगली पीढ़ी को तब ही मिल पाती है जब उन्हें कुछ विषेश सम्मान दिये जाये. आनंदीबाई को दिये गये सम्मान कुछ इस प्रकार है .

  1. इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च एंड डॉक्यूमेंटेशन इन सोशल साइंस और लखनऊ के एक गैर सरकारी संस्थान ने मेडिसिन के क्षेत्र में आनंदीबाई जोशी सम्मान देने की शुरुआत की यह उनके प्रति एक बहुत बड़ा सम्मान है.
  2. इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने इनके नाम पर युवा महिलाओं के लिए एक फेलोशिप प्रोग्राम की भी शुरुआत की है.

आनंदीबाई के जीवन पर आधारित किताबे Books Related to Anandibai's life :

  • इनकी मृत्यु के तुरंत बाद अमेरिका के राइटर कैरलाइन वेल्स हेअले डाल ने इनके जीवन पर एक किताब लिखी और इनके जीवन और उपलब्धियों से अन्य लोगो को परिचित करवाया.
  • इसके बाद मराठी लेखक डॉ अंजली कीर्तने ने डॉ आनंदिबाई जोशी के जीवन पर रिसर्च की और डॉ आनंदीबाई जोशी काल अणि कर्तुत्व (डॉ आनंदीबाई जोशी, उनके समय और उपलब्धियां) नामक एक मराठी पुस्तक लिखी. इस किताब का प्रकाशन,मैजेस्टिक प्रकाशन मुंबई द्वारा किया गया. इस पुस्तक में डॉ आनंदिबाई जोशी की दुर्लभ तस्वीरों को शामिल किया गया.

आनंदीबाई वह भारतीय महिलाएं है जिन्होंने हर मुश्किलों का सामना किया और अपना भविष्य रोशन किया. इन्होने ना केवल अपना भविष्य बनाया, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी कई रास्तें खोले और आसान बनाये. ये इनके और इन जैसी अन्य महिलाओं के परिश्रमो का ही नतीजा है जिससे आज हम और भारत की अन्य महिलाएं आजादी से अपना जीवन जी पाने में सक्षम है. आज भी कई ऐसी महिलाएं है जो कई क्षेत्रों में लगातार अपने प्रयासों से भारत का नाम रोशन कर रहीं है. उन सभी महिलाओं के सुनहरे भविष्य की हम कामना करते है, और उनके आने वालें भविष्य के लिए शुभकामनायें देते है.

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