Chittaranjan Das Biography In Hindi | चित्तरंजन दास का जीवन परिचय
Chittaranjan Das Biography In Hindi | चित्तरंजन दास एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, वकील तथा पत्रकार थे। वे जो देशबंधु के नाम से प्रसिद्ध है। एक भारतीय राजनेता और ब्रिटिश शासन में बंगाल में स्वराज्य पार्टी के संस्थापक नेता थे।
Chittaranjan Das Biography In Hindi | चित्तरंजन दास का जीवन परिचय
- पूरा नाम चित्तरंजन भुवनमोहन दास
- जन्म 5 नवंबर 1870
- जन्मस्थान कोलकता
- पिता भुवनमोहन
- माता निस्तारिणी देवी
- पत्नी बसंती देवी
- पुत्र चिरंजन दास
- पुत्री कल्याणी देबी, अपर्णा देबी
- शिक्षा बी.ए., बॅरिस्टर
- व्यवसाय भारतीय राजनेता, वकील
- नागरिकता भारत, ब्रिटिश राज
देशबंधु, राजनेता चित्तरंजन दास (Chittaranjan Das Biography in Hindi)
Chittaranjan Das Biography In Hindi | चित्तरंजन दास एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, वकील तथा पत्रकार थे। वे जो देशबंधु के नाम से प्रसिद्ध है। एक भारतीय राजनेता और ब्रिटिश शासन में बंगाल में स्वराज्य पार्टी के संस्थापक नेता थे। जिन्होंने देश की आजादी के लिये अपना सारा जीवन अर्पण कर दिया। और आखरी सास तक अंग्रजी हुकूमत से लढे।
प्रारंभिक जीवन (Chittaranjan Das Early Life)
चित्तरंजन दास का जन्म 5 नवंबर, 1870 को कोलकाता में हुआ था। उनका ताल्लुक ढाका (वर्तमान बांग्लादेश) के बिक्रमपुर के तेलिरबाग के प्रसिद्ध दास परिवार से था। उनके पिता भुबन मोहन दास कोलकाता उच्च न्यायालय में एक जाने माने वकील थे। उनके भाई-बहनों में सतीश रंजन दास, सुधि रंजन दास, सरला रॉय और लेडी अबला बोस शामिल है। उनका सबसे बड़ा पोता सिद्धार्थ शंकर राय और उनकी पोती का नाम मंजुला बोस है। उन्होंने बसंती देवी से विवाह किया था और उनकी तीन संताने भी हुई अपर्णा देवी, चिरंजन दास और कल्याणी देवी।
शिक्षा (Education)
1890 में बी.ए. पास करने के बाद आइ.सी.एस्. बनने के लिए इंग्लैंड गए और 1892 में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। अपने पिता की तरह मशहूर वकील बनने के लिए इन्होने कोलकाता में वकालत शुरू कर दी। कुछ समय बाद उनकी वकालत खूब चमकी और फिर इनकी दक्षता के चर्चे होने लगे।
राजनीतिक जीवन (Chittaranjan Das Political Life)
चित्तरंजन दास 1906 में कांग्रेस में शामिल हुए. 1909 में उन्होंने पिछले वर्ष के अलिपोरे बम काण्ड में फंसे अरविन्द घोष का मुकदमा लड़ा और इनके के शामिल होने का विरोध कर उनकी रक्षा की थी। 1917 में बंगाल की प्रांतीय राजकीय परिषद् के अध्यक्ष बन गए। इस समय तक वो राजनीति में पूरी तरह सक्रीय हो गए थे। 1917 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में एनी बेसेंट को अध्यक्ष बनाने में इनका भी योगदान था। कांग्रेस के अन्दर देशबंधु अपनी उग्र निति और विचारों के लिए जाने जाते थे और इसी कारण सुरेंद्रनाथ बनर्जी अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़कर चले गए।
1918 इन्होंने रौलट कानून का जमकर विरोध किया और महात्मा गांधी के सत्याग्रह का समर्थन किया। चित्तरंजन दास ने अपनी वकालत छोड़कर असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पूरी तरह से राजनीति में आ गए। विलासी जीवन छोड़कर उन्होंने सारे देश का भ्रमण किया और कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार किया। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी समस्त सम्पत्ति भी राष्ट्रीय हित में समर्पण कर दिया। इसके बाद वे कलकत्ता के नगर प्रमुख निर्वाचित हुए और इसी चुनाव में सुभाषचन्द्र बोस कलकत्ता निगम के मुख्य कार्याधिकारी नियुक्त हुए। इस प्रकार कलकत्ता निगम यूरोपीय नियंत्रण से मुक्त हो गया।
बंगाल में 1919-1922 के बीच हुए असहकार आन्दोलन के समय दास बंगाल के मुख्य नेताओ में से एक थे। उन्होंने ब्रिटिश कपड़ो का भी काफी विरोध किया। इसका विरोध करते हुए उन्हें खुद ही के यूरोपियन कपड़ो को जलाया और खादी कपडे पहनने लगे थे। 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन का अध्यक्ष इन्हें चुना गया पर देशबंधु जेल में थे इसलिए इनके प्रतिनिधि के रूप में हकीम अजमल खाँ ने अध्यक्ष का कार्यभार सँभाला। जेल से छूटने के बाद उन्होंने बाहर से आंदोलन करने के बजाए परिषदों में घुसकर भीतर से अड़ंगा लगाने की नीति की घोषणा की।
कांग्रेस ने इनका यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जिसके फलस्वरूप इन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया और मोतीलाल नेहरु और हुसैन शहीद सुहरावर्दी के साथ मिलकर 'स्वराज्य दल' की स्थापना की। उनका कांउसिल प्रवेश का प्रस्ताव सितंबर, 1923 में दिल्ली में कांग्रेस के अतिरिक्त अधिवेशन में स्वीकार कर लिया गया। 1924-25 में जब कलकत्ता म्युनिसिपल कारपोरेशन की स्थापना की गयी थी तब वो कलकत्ता के मेयर चुने गए और इसी चुनाव में सुभाषचन्द्र बोस को कलकत्ता निगम के मुख्य कार्याधिकारी बनाया गया। इसके बाद ही कलकत्ता निगम यूरोपीय नियंत्रण से आजाद हो सका। वे भारतीय समाज से पूरी तरह जुड़े हुए थे और कविताये भी लिखते थे और अपने असंख्य लेखो और निबंधो से उन्होंने लोगो को प्रेरित किया था।
ढाका में 'राष्ट्रीय विद्यालय' की स्थापना (Chittaranjan Das Foundation of National School)
असहयोग आंदोलन के दौरान हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेज छोड़ा था उनकी शिक्षा के लिए देशबंधु चितरंजन दास ने ढाका में 'राष्ट्रीय विद्यालय' की स्थापना की। असहयोग आन्दोलन के दौरान इन्होने कांग्रेस के लिए भारी संख्या में स्वयंसेवकों का प्रबंध किया।
विशेषता (Chittaranjan Das Specialty)
- खुद की सब संपत्ति उन्होंने मेडिकल कॉलेज और स्त्रियाओ के अस्पताल के लिये दी। इसलिये लोग उनको 'देशबंधू' इस नामसे पहचानने लगे।
- उनके विचारो और उनकी महानता को उनके शिष्य आगे ले गए और विशेषतः सुभासचन्द्र बोस उनके ही विचारो पर चलने लगे थे।
मृत्यु (Chittaranjan Das Death)
1925 में काम के बोझ के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और मई के महीने में वो स्वास्थ्य लाभ के लिए दार्जिलिंग चले गए। महात्मा गाँधी भी उनको देखने के लिए दार्जिलिंग गए पर उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही गया और 16 जून 1925 को तेज़ बुखार के कारण उनकी मृत्यु हो गयी।