Gadge Maharaj Biography in Hindi | गाडगे महाराज का जीवन परिचय

Gadge Maharaj Biography in Hindi | गाडगे महाराज जिन्हें लोकप्रिय रूप से संत गाडगे महाराज या गाडगे बाबा कहा जाता था। व्यापक रूप से महाराष्ट्र के सबसे बड़े समाज सुधारकों में से एक के रूप में माना जाता है, उन्होंने कई सुधार किए हैं।

Update: 2020-11-28 05:37 GMT

Gadge Maharaj Biography in Hindi | गाडगे महाराज का जीवन परिचय

Gadge Maharaj Biography in Hindi | गाडगे महाराज का जीवन परिचय

  • पूरा नाम देवीदास डेबुजी झिंगराजि जानोरकर
  • जन्म 23 फरवरी, 1876
  • जन्मस्थान अँजनगाँव सुरजी, जिला. अमरावती
  • पिता झिंगराजि
  • माता सखुबाई
  • व्यवसाय संत
  • नागरिकता भारतीय

संत गाडगे महाराज की बायोग्राफी (Gadge Maharaj Biography in Hindi) 

Gadge Maharaj Biography in Hindi | गाडगे महाराज जिन्हें लोकप्रिय रूप से संत गाडगे महाराज या गाडगे बाबा कहा जाता था। व्यापक रूप से महाराष्ट्र के सबसे बड़े समाज सुधारकों में से एक के रूप में माना जाता है, उन्होंने कई सुधार किए हैं। गाँवों का विकास और उनकी दृष्टि अभी भी देश भर के कई दान संगठनों, शासकों और राजनेताओं को प्रेरित करती है। उनके नाम पर कॉलेज और स्कूल सहित कई संस्थान शुरू किए गए हैं। 20मी सदी के समाज-सुधार आन्दोलन में जिन महापुरूषों का योगदान रहा है, उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नाम बाबा गाडगे का है।

प्रारंभिक जीवन (Gadge Maharaj Early Life)

गाडगे महाराज का जन्म 23 फरवरी, 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले की तहसील अंजन गांव सुरजी के शेगाँव नामक गाँव में धोबी जाति के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम सखूबाई और पिता का नाम झिंगराजी था। बाबा गाडगे का पूरा नाम देवीदास डेबूजी झिंगराजी जाड़ोकर था। गाडगे बाबा का बचपन का नाम डेबूजी था।

सामाजिक सेवा का कार्य (Gadge Maharaj Social Work) 

गौतम बुद्व की भाति पीडि़त मानवता की सहायता तथा समाज सेवा के लिये उन्होनें 1905 को ग्रहत्याग किया एक लकडी तथा मिटटी का बर्तन जिसे महाराष्ट्र में गाडगा कहा जाता है लेकर आधी रात को घर से निकल गये।

दया, करूणा, भ्रातभाव, सममेत्री, मानव कल्याण, परोपकार, दीनहीनों के सहायतार्थ आदि गुणों के भण्डार बुद्व के आधुनिक अवतार डेबूजी 1905 मे ग्रहत्याग से लेकर 1917 तक साधक अवस्था में रहे।

गाडगे महाराज एक घूमते फिरते सामाजिक शिक्षक थे। वे पैरो में फटी हुई चप्पल और सिर पर मिट्टी का कटोरा ढककर पैदल ही यात्रा किया करते थे। जब वे किसी गाँव में प्रवेश करते थे तो गाडगे महाराज तुरंत ही गटर और रास्तो को साफ़ करने लगते।

काम खत्म होने के बाद वे खुद लोगो को गाँव के साफ़ होने की बधाई भी देते थे। गाँव के लोग उन्हें पैसे भी देते थे और बाबाजी उन पैसो का उपयोग सामाजिक विकास और समाज का शारीरिक विकास करने में लगाते।

लोगो से मिले हुए पैसो से महाराज गाँवो में स्कूल, धर्मशाला, अस्पताल और जानवरो के निवास स्थान बनवाते थे। लेकिन अपने लिए इस महापुरुष ने एक कुटिया तक नहीं बनाई। 

गाँवो की सफाई करने के बाद शाम में वे कीर्तन का आयोजन भी करते थे और अपने कीर्तनों के माध्यम से जन-जन तक लोकोपकार और समाज कल्याण का प्रसार करते थे। अपने कीर्तनों के समय वे लोगो को अन्धविश्वास की भावनाओ के विरुद्ध शिक्षित करते थे। अपने कीर्तनों में वे संत कबीर के दोहो का भी उपयोग करते थे।

कबीर कहे कमला को, दो बाता लिख लें।
कर साहेब की बंदगी और भूखे को कुछ दें।

महाराज कई बार आध्यात्मिक गुरु मैहर बाबा से भी मिल चुके थे। मैहर बाबा ने भी संत गाडगे महाराज को उनके पसंदीदा संतो में से एक बताया। महाराज ने भी मैहर बाबा को पंढरपुर में आमंत्रित किया और 6 नवंबर 1954 को हज़ारो लोगो ने एकसाथ मैहर बाबा और महाराज के दर्शन लिये।

बाबा ने अपने जीवन में किसी को शिष्य नहीं बनाया था। जिन्होंने बाबा के मार्ग पर चलने का प्रयास किया, वह पत्थर से देवता बन गए। बाबा स्वयं भी एक जगह पर नहीं रहे। अखंड भ्रमण ही करते थे। उनका कहना था कि साधु चलता भला, गंगा बहती भली।बाबा के सहयोगियों में सभी जातियों के लोग थे। बाबा के कीर्तन में गरीब-श्रीमत् सभी लोग आते थे।

अंधविश्वासों, आडंबरों, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों एवं दुर्व्यसनों से समाज को कितनी भयंकर हानि हो सकती है, इसका उन्हें भलीभाँति अनुभव हुआ। इसी कारण इनका उन्होंने घोर विरोध किया करते थे। संत-महात्माओं के चरण छूने की प्रथा आज भी समाज में प्रचलित है, परन्तु गाडगे बाबा इसके प्रबल विरोधी थे।

डॉ. आंबेडकर के करीब (Gadge Maharaj Closer to Dr. Ambedkar)

गाडगे बाबा डॉ. आंबेडकर के समकालीन थे तथा उनसे उम्र में 15 साल बड़े थे। वैसे तो गाडगे बाबा बहुत से राजनीतिज्ञों से मिलते-जुलते रहते थे। लेकिन वे डॉ. आंबेडकर के कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे। इसका कारण था जो समाज सुधार सम्बन्धी कार्य वे अपने कीर्तन के माध्यम से लोगों को उपदेश देकर कर रहे थे, वही कार्य डॉ. आंबेडकर राजनीति के माध्यम से कर रहे थे।

गाडगे बाबा के कार्यों की ही देन थी कि जहाँ डॉ. आंबेडकर साधु-संतों से दूर ही रहते थे, वहीं गाडगे बाबा का सम्मान करते थे। वे गाडगे बाबा से समय-समय पर मिलते रहते थे तथा समाज-सुधार सम्बन्धी मुद्दों पर उनसे सलाह-मशविरा भी करते थे।

संत गाडगे महाराज की उपलब्धियां (Gadge Maharaj Achievements)

उनकी समाजसेवा को देखते हुए भारत सरकार ने भी उनके सम्मान में कई पुरस्कार जारी किये। जैसे की महाराष्ट्र सरकार ने 2000 में "संत गाडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान" की शुरुवात की थी, और जो ग्रामवासी अपने गाँवो को स्वच्छ रखते है उन्हें यह पुरस्कार दिया जाता है।

अमरावती यूनिवर्सिटी का नाम "Sant Gadge Baba Amravati University" भी उन्ही के नाम पर रखा गया है।

संत गाडगे द्वारा स्थापित "गाडगे महाराज मिशन" आज भी 12 धर्मशालाओं, 31 कॉलेज व स्कूलों, छात्रावासों आदि संस्थाओं के संचालन तथा समाज सेवा में कार्यान्वित है।

मृत्यु (Gadge Maharaj Death)

बाबा गाडगे अपने अनुयायियों से कहा की जहां मेरी मृत्यु हो जाय, वहीं पर मेरा अंतिम संस्कार कर देना, मेरी मूर्ति, मेरी समाधि, मेरा स्मारक मन्दिर नहीं कुछ नही बनाना। मैने जो कार्य किया है, वही मेरा सच्चा स्मारक है। 20 दिसंबर, 1956 को अमरावती जाते समय महाराज की मृत्यु हो गई। जहां बाबा का अन्तिम संस्कार किया गया। आज वह स्थान गाडगे नगर के नाम से जाना जाता है।

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