Indira Gandhi Biography In Hindi | इन्दिरा गाँधी का जीवन परिचय

इंदिरा गांधी भारत की चौथी और प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं। वो एक ऐसी महिला थीं जिसने न केवल भारतीय राजनीति बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी विलक्षण प्रभाव छोड़ा। इसी कारण उन्हें लौह महिला के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

Update: 2020-10-30 20:01 GMT

इंदिरा गाँधी जन्म और परिवार (Indira Gandhi Birth and Family)

जन्मदिन (Birth date) 19 नवंबर 1917

जन्मस्थान (Birth place) इलाहबाद,उत्तर प्रदेश

पिता (Father) जवाहरलाल नेहरु

माता (Mother) कमला नेहरु

पति (Husband) फ़िरोज़ गांधी

पुत्र (Sons) राजीव गांधी और संजय गांधी

पुत्र वधुएँ (Son-in-law) सोनिया गांधी और मेनका गांधी

पौत्र (Grand sons) राहुल गांधी और वरुण गांधी

पौत्री (Grand daughter) प्रियंका गांधी

Indira Gandhi Biography In Hindi | इन्दिरा गाँधी की जीवनी का जीवन परिचय

इंदिरा गांधी भारत की चौथी और प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं। वो एक ऐसी महिला थीं जिसने न केवल भारतीय राजनीति बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी विलक्षण प्रभाव छोड़ा। इसी कारण उन्हें लौह महिला के नाम से भी संबोधित किया जाता है। वह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की इकलौती संतान थीं और नेहरु के प्रधानमंत्री रहते ही उन्होंने सरकार के अन्दर अच्छी पैठ बना ली थी। एक राजनैतिक नेता के रूप में इंदिरा गांधी को बहुत निष्ठुर माना जाता है। प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने प्रशासन का जरुरत से ज्यादा केन्द्रीयकरण किया। उनके शासनकाल में ही भारत में एकमात्र आपातकाल लागू किया गया और सारे राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को जेल में ठूस दिया गया। भारत के संविधान के मूल स्वरुप का संसोधन जितना उनके राज में हुआ, उतना और किसी ने कभी भी नहीं किया। उनके शासन के दौरान ही बांग्लादेश मुद्दे पर भारत-पाक युद्ध हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ। पंजाब से आतंकवाद का सफाया करने के लिए उन्होंने अमृतसर स्थित सिखों के पवित्र स्थल 'स्वर्ण मंदिर' में सेना और सुरक्षा बलों के द्वारा 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' को अंजाम दिया। इसके कुछ महीनों बाद ही उनके अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी। अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता के लिए इंदिरा गाँधी को भारतीय इतिहास में हमेशा जाना जायेगा।

इंदिरा गाँधी प्रारंभिक जीवन (Indira gandhi early life)

इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में प्रसिद्ध नेहरु परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम 'इंदिरा प्रियदर्शिनी' था। उनके पिता जवाहरलाल नेहरु और दादा मोतीलाल नेहरु थे। जवाहरलाल और मोतीलाल दोनों सफल वकील थे और दोनों ने ही स्वतंत्रता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इंदिरा की माता का नाम कमला नेहरु था। उनका परिवार आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से बहुत संपन्न था। उनके दादा मोतीलाल नेहरु ने उनका इंदिरा नाम रखा था।

इंदिरा दिखने में के अत्यंत प्रिय थीं इसलिए पंडित नेहरु उन्हें 'प्रियदर्शिनी' के नाम से पुकारते थे। माता-पिता का आकर्षक व्यक्तित्व इंदिरा को विरासत के रूप में मिला था। इंदिरा गांधी को बचपन में एक स्थिर पारिवारिक जीवन नहीं मिल पाया था क्योंकि पिता हमेशा स्वतंत्रता आंदोलन में व्यस्त रहे और जब वह 18 वर्ष की थीं तब उनकी मां कमला नेहरू भी तपेदिक के से चल बसीं।

पिताजी की राजनैतिक व्यस्तता और मां के ख़राब स्वास्थ्य के कारण इंदिरा को जन्म के कुछ वर्षों बाद भी शिक्षा का अनुकूल माहौल नहीं उपलब्ध हो पाया था। राजनैतिक कार्यकर्ताओं के रात-दिन आने-जाने के कारण घर का वातावरण भी पढ़ाई के अनुकूल नहीं था इसलिए पंडित नेहरु ने उनकी शिक्षा के लिए घर पर ही शिक्षकों का प्रबंध कर दिया था। अंग्रेज़ी विषय के अतिरिक्त किसी अन्य विषय में इंदिरा कोई विशेष दक्षता नहीं प्राप्त कर सकीं। इसके बाद उनको गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित 'शांति निकेतन' के 'विश्व-भारती' में पढ़ने के लिए भेजा गया। तत्पश्चात इंदिरा ने लन्दन के बैडमिंटन स्कूल और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया पर वह पढ़ाई में कोई विशेष दक्षता नहीं दिखा पायीं और औसत दर्जे की छात्रा ही रहीं।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन के दौरान इनकी मुलाकात फिरोज़ गाँधी से अक्सर होती थी, जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। फ़िरोज़ को इंदिरा इलाहाबाद से ही जानती थीं। भारत वापस लौटने पर दोनों का विवाह 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद, में हुआ।

इंदिरा गाँधी की स्वतन्त्रता आन्दोलन में भागीदारी (Indira Gandhi's participation in the freedom movement)

इंदिरा ने बचपन से ही अपने घर पर राजनैतिक माहौल देखा था। उनके पिता और दादा भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। इस माहौल का प्रभाव इंदिरा पर भी पड़ा। उन्होंने युवा लड़के-लड़कियों के मदद से एक वानर सेना बनाई, जो विरोध प्रदर्शन और झंडा जुलूस के साथ-साथ संवेदनशील प्रकाशनों तथा प्रतिबंधित सामग्रीओं का परिसंचरण भी करती थी। लन्दन में अपनी पढाई के दौरान भी वो 'इंडियन लीग' की सदस्य बनीं। इंदिरा ऑक्सफोर्ड से सन 1941 में भारत वापस लौट आयीं। आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान उन्हें सितम्बर 1942 में गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद सरकार ने उन्हें मई 1943 में रिहा किया। विभाजन के बाद फैले दंगों और अराजकता के दौरान इंदिरा गाँधी ने शरणार्थी शिविरों को संगठित करने तथा पाकिस्तान से आये शरणार्थियों के देखभाल करने का महत्वपूर्ण कार्य किया।

इंदिरा गाँधी राजनैतिक जीवन (Indira Gandhi political life)

अंतरिम सरकार के गठन के साथ जवाहरलाल नेहरू कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिए थे। इसके बाद नेहरू की राजनैतिक सक्रियता और अधिक बढ़ गई। त्रिमूर्ति भवन स्थित नेहरूजी के निवास पर सभी आगंतुकों के स्वागत का इंतज़ाम इंदिरा द्वारा ही किया जाता था। इसके साथ-साथ, उम्रदराज़़ हो रहे पिता की आवश्यकताओं को देखने की जिम्मेदारी भी इंदिरा पर ही पड़ गयी। वह पंडित नेहरु की विश्वस्त, सचिव और नर्स बनीं।

इंदिरा को परिवार के माहौल में राजनीतिक विचारधारा विरासत में प्राप्त हुई थी और पिता की मदद करते-करते उन्हें राजनीति की भी अच्छी समझ हो गयी थी। कांग्रेस पार्टी की कार्यकारिणी में इन्हें सन 1955 में ही शामिल कर लिया गया था। पंडित नेहरू इनके साथ राजनैतिक परामर्श करते थे और उन पर अमल भी करते थे।

धीरे-धीरे पार्टी में इंदिरा का कद बढ़ता गया और मात्र 42 वर्ष की उम्र में सन 1959 में वह कांग्रेस की अध्यक्ष भी बन गईं। नेहरू के इस फैसले पर कई लोगों ने उनपर पार्टी में परिवारवाद फैलाने का आरोप भी लगाया पर पंडित नेहरु की शक्शियत इतनी बड़ी थी की इन बातों को ज्यादा तूल नहीं मिला। सन 1964 में नेहरू के निधन के बाद इंदिरा चुनाव जीतकर शाष्त्री सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बन गईं। अपने इस नए दायित्व का निर्वाहन इंदिरा ने कुशलता के साथ किया और सूचना और प्रसारण मंत्री के तौर पर आकाशवाणी के कार्यक्रमों को मनोरंजक बनाया तथा उसमें गुणात्मक वृद्धि भी की। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान आकाशवाणी ने राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत करने में अतुलनीय योगदान दिया। इंदिरा गाँधी ने युद्ध के दौरान सीमाओं पर जाकर जवानों का मनोबल ऊंचा किया और अपने नेतृत्व के गुण को दर्शाया।

इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री पद पर (Indira Gandhi as Prime Minister)

  1. इंदिरा गाँधी 4 बार भारत की प्रधानमंत्री रहीं – लगातार तीन बार (1966-1977) और फिर चौथी बार (1980-84)।
  2. सन 1966 में भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की अकस्मात् मृत्यु के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री चुनी गयीं।
  3. 1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत पायीं और प्रधानमंत्री बनीं।
  4. सन 1971 में एक बार फिर भारी बहुमत से वे प्रधामंत्री बनी और 1977 तक रहीं।
  5. 1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं और 1984 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहीं।

लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने इंदिरा का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सुझाया पर वरिष्ठ नेता मोरारजी देसाई ने भी प्रधानमंत्री पद के लिए स्वयं का नाम प्रस्तावित कर दिया। कांग्रेस संसदीय पार्टी द्वारा मतदान के माध्यम से इस गतिरोध को सुलझाया गया और इंदिरा गाँधी भारी मतों से विजयी हुई। 24 जनवरी, 1966 को इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री पद का शपथ ग्रहण किया। सन 1967 के चुनाव में कांग्रेस को बहुत नुक्सान हुआ पर पार्टी सरकार बनाने में सफल रही। उधर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में एक खेमा इंदिरा गाँधी का निरंतर विरोध करता रहा जिसके परिणाम स्वरुप सन 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया।

जुलाई 1969 में इंदिरा ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।

सन 1971 के मध्यावधि चुनाव

पार्टी और देश में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए इंदिरा गाँधी ने लोकसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दी जिससे विपक्ष भौचक्का रह गया। इंदिरा गाँधी ने 'ग़रीबी हटाओं' नारे के साथ चुनाव में उतरीं और धीरे-धीरे उनके पक्ष में चुनावी माहौल बनने लगा और कांग्रेस को बहुतमत प्राप्त हो गया। कुल 518 में से 352 सीटें कांग्रेस को मिलीं।

चुनाव के नतीजों ने ये साफ़ कर दिया था की जनता ने 'ग्रैंड अलायंस' (कांग्रेस (ओ), जनसंघ एवं स्वतंत्र पार्टी का गठबंधन) को नकार दिया था। अब केंद्र में इंदिरा गाँधी की स्थिति बेहद मज़बूत हो गई थी और वह स्वतंत्र फैसले करने के लिए आज़ाद थीं।

पाकिस्तान के साथ युद्ध (War with pakistan)

सन 1971 में बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत-पाकिस्तान में युद्ध छिड़ा और पहले के तरह एक बार फिर पाकिस्तान को मुह की खानी पड़ी। 13 दिसंबर को भारत की सेनाओं ने ढाका को सभी दिशाओं से घेर लिया। 16 दिसंबर को जनरल नियाजी ने 93 हज़ार पाक सैनिकों के साथ हथियार डाल दिए। युद्ध में हार के बाद ज़ुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बने और उन्होंने भारत के समक्ष शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा जिसे इंदिरा गाँधी ने स्वीकार कर लिया और फिर दोनों देशों के बीच शिमला समझौता हुआ। इंदिरा गाँधी अमेरिकी खेमे में नहीं शामिल हुईं और सोवियत संघ से मित्रता और आपसी सहयोग बढ़ाया , जिसके परिणामस्वरूप 1971 के युद्ध में भारत की जीत में राजनैतिक और सैन्य समर्थन का पर्याप्त योगदान रहा।

पाकिस्तान से युद्ध के बाद की स्थिति (Post-war situation with Pakistan)

पाकिस्तान युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी ने अपना ध्यान देश के विकास की ओर लगा दिया। संसद में उन्हें पूर्ण बहुमत प्राप्त था जिससे निर्णय लेने में स्वतंत्रता थी। उन्होंने सन 1972 में बीमा और कोयला उद्योग का राष्ट्रियकरण कर दिया। उनके इन दोनों फैसलों को अपार जनसमर्थन प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त उन्होंने भूमि सुधार, समाज कल्याण और अर्थ जगत में भी कई सुधार लागू किये।

भारत में आपातकाल (1975 – 1977) (Emergency in India (1975 - 1977)

सन 1971 के चुनाव में इंदिरा गाँधी को भारी सफलता मिली थी और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में विकास के नए कार्यक्रम भी लागू करने की कोशिश की थी पर देश के अन्दर समस्याएं बढती जा रही थीं। महँगाई के कारण लोग परेशान थे। युद्ध के आर्थिक बोझ के कारण भी आर्थिक समस्यांए बढ़ गयी थीं। इसी बीच सूखा और अकाल ने स्थिति और बिगाड़ दी। उधर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पेट्रोलियम बढती कीमतों से भारत में महँगाई बढ़ रही थी और देश का विदेशी मुद्रा भंडार पेट्रोलियम आयात करने के कारण तेजी से घटता जा रहा था। कुल मिलकर आर्थिक मंदी का दौर चल रहा था जिसमें उद्योग धंधे भी चौपट हो रहे थे। बेरोज़गारी भी काफ़ी बढ़ चुकी थी और सरकारी कर्मचारी महँगाई से त्रस्त होने के कारण वेतन-वृद्धि की माँग कर रहे थे। इन सब समस्याओं के बीच सरकार पर भ्रस्टाचार के आरोप भी लगने लगे।

सरकार इन सब परेशानियों से जूझ ही रही थी की इसी बीच इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी के चुनाव से सम्बंधित एक मुक़दमे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया और उन्हें छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित कर दिया। इंदिरा ने इस फैसले के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और न्यायालय ने 14 जुलाई का दिन तय किया पर विपक्ष को 14 जुलाई तक का भी इंतज़ार गवारा नहीं था। जय प्रकाश नारायण और समर्थित विपक्ष ने आंदोलन को उग्र रूप दे दिया। इन परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए 26 जून, 1975 को प्रातः देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई और जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अन्य हजारों छोटे-बड़े नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया।

सरकार ने अखबार, रेडियो और टी.वी. पर सेंसर लगा दिया। मौलिक अधिकार भी लगभग समाप्त हो गए थे।

इंदिरा ने जनवरी, 1977 में लोकसभा चुनाव कराए जाने की घोषणा की और इसके साथ ही राजनैतिक क़ैदियों की रिहाई हो गई। मीडिया की स्वतंत्रता फिर से बहाल हो गई और राजनीतिक सभाओं और चुनाव प्रचार की आज़ादी दे दी गई।

शायद इंदिरा गाँधी स्थिति का सही मूल्याकंन नहीं कर पायी थीं। अब जनता का समर्थन विपक्ष को मिलने लगा जिससे विपक्ष अधिक सशक्त होकर सामने आ गया। 'जनता पार्टी' के रूप में एकजुट विपक्ष और उसके सहयोगी दलों को 542 में से 330 सीटें प्राप्त हुईं जबकि इंदिरा गाँधी की कांग्रेस पार्टी मात्र 154 सीटें ही हासिल कर सकी।

इंदिरा गाँधी की सत्ता में वापसी (Indira Gandhi's return to power)

81 वर्षीय मोरारजी देसी के नेतृत्व में जनता पार्टी ने 23 मार्च 1977 को सरकार बनायी पर यह सरकार शुरुआत से ही आतंरिक कलह से जूझती रही और अंततः अंतर्कलह के कारण अगस्त 1979 में यह सरकार गिर गई। जनता पार्टी के शासनकाल में इंदिरा गाँधी पर अनेक आरोप लगाए गए और कई कमीशन जाँच के लिए नियुक्त किए गए। उन पर देश की कई अदालतों में मुक़दमे भी दायर किए गए और सरकारी भ्रष्टाचार के आरोप में श्रीमती गाँधी कुछ समय तक जेल में भी रहीं। एक तरफ जनता पार्टी के अंतर्कलह के कारण उनकी सरकार सभी मोर्चों पर विफल हो रही थी और दूसरी ओर इंदिरा गाँधी के साथ हो रहे व्यवहार के कारण जनता को इंदिरा गाँधी के साथ सहानुभूति बढ़ रही थी।

जनता पार्टी सरकार चलाने में असफल रही और देश को मध्यावधि चुनाव का भार झेलना पड़ा। इंदिरा गाँधी ने आपातकाल के लिए जनता से माफ़ी मांगी जिसके परिणामस्वरूप उनकी पार्टी को 592 में से 353 सीटें प्राप्त हुईं और इंदिरा गाँधी पुनः प्रधानमंत्री बन गईं।

ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार और हत्या, 1984 (Operation Blue Star and Murder, 1984)

भिंडरावाले के नेतृत्व में पंजाब में अलगाववादी ताकतें सिर उठाने लगीं और भिंडरावाले को ऐसा लगने लगा था कि अपने नेतृत्व में वो पंजाब का अलग अस्तित्व बना लेगा। स्थिति बहुत बिगड़ गयी थी और ऐसा लगने लगा था की नियंत्रण अब केंद्र सरकार के हाथ से भी निकलता जा रहा था। दूसरी ओर भिंडरावाले को ऐसा लगने लगा था की वह हथियारों के बल पर अलग अस्तित्व बना सकता था।

सितम्बर 1981 में भिंडरावाले का आतंकवादी समूह हरिमन्दिर साहिब परिसर के भीतर तैनात हो गया। आतंकवादियों का सफाया करने के प्रयास में इंदिरा गाँधी ने सेना को धर्मस्थल में प्रवेश करने का आदेश दिया। इस कार्यवाई के दौरान हजारों जाने गयीं और सिख समुदाय में इंदिरा गाँधी के विरुद्ध घोर आक्रोश पैदा हुआ। ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के पाँच महीने के बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गाँधी के दो सिक्ख अंगरक्षकों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

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