Neelam Sanjiva Reddy Biography in Hindi | नीलम संजीव रेड्डी की जीवनी
Neelam Sanjiva Reddy Biography in Hindi | नीलम संजीव रेड्डी एक भारतीय राजनेता और देश के छठे राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने कई महत्वपूर्ण राजनैतिक पदों पर कार्य किया। इनमें प्रमुख हैं – आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, दो बार लोक सभा के अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री।
Neelam Sanjiva Reddy Biography in Hindi | नीलम संजीव रेड्डी की जीवनी
- .पूरा नाम नीलम संजीवा रेड्डी
- जन्म 19 मई 1913
- जन्म स्थान अनंतपुर, आंध्रप्रदेश
- पिता नीलम चिनप्पा रेड्डी
- पत्नी नीलम नागरत्नम्मा
- बच्चे 1 बेटा 3 बेटी
- राजनैतिक पार्टी जनता पार्टी
- मृत्यु 1 जून 1996 बैंगलोर
Neelam Sanjiva Reddy Biography in Hindi | नीलम संजीव रेड्डी एक भारतीय राजनेता और देश के छठे राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने कई महत्वपूर्ण राजनैतिक पदों पर कार्य किया। इनमें प्रमुख हैं – आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, दो बार लोक सभा के अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री। स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस से अपना कैरियर प्रारंभ करने वाले नीलम संजीव रेड्डी सबसे कम उम्र में भारत का राष्ट्रपति बनने वाले व्यक्ति बन गए। उन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पहली बार विफलता प्राप्त हुई जब वो वी. वी. गिरि से बहुत कम अंतर से हार गए पर दूसरी बार उम्मीदवार बनाए जाने पर निर्विरोध राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। पहली बार वो कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार थे और अप्रत्याशित रूप से हार गए पर दूसरी बार गैर-कांग्रेसी दलों ने इन्हें प्रत्याशी बनाया जिसके बाद ये राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
प्रारंभिक जीवन
नीलम संजीव रेड्डी का जन्म 19 मई 1913 को मद्रास प्रेसीडेंसी के इल्लुर नामक गाँव में एक तेलुगु भाषी परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अडयार (मद्रास) के थियोसोफिकल हाई स्कूल में हुई और बाद में उन्होंने स्नातक के लिए 'गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज अनंतपुर (मद्रास विश्वविद्यालय से सम्बद्ध) में दाखिला लिया। सन 1929 में उनके जीवन में एक नया मोड़ आया जब स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी ने अनंतपुर का दौरा किया।
स्वाधीनता आन्दोलन में भूमिका
महात्मा गाँधी की बातों से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी पढाई सन 1931 में छोड़ दिया और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। उसके बाद वो 'यूथ लीग' से जुड़े रहे और विद्यार्थी सत्याग्रह में भाग लिया। सन 1938 में उनको आंध्र प्रदेश प्रांतीय कांग्रेस समिति का सचिव चुना गया। इस पद पर नीलम संजीव रेड्डी दस साल तक बने रहे। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान भी ये जेल गए और सन 1940 से 1945 के बीच जेल में ही रहे। मार्च 1942 में सरकार ने उन्हें छोड़ दिया था पर अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में फिर गिरफ्तार हो गए। उन्हें गिरफ्तार कर अमरावती जेल भेज दिया गया जहाँ उन्हें टी. प्रकाशम्, एस. सत्यमूर्ति, के. कामराज और वी. वी. गिरी जैसे आन्दोलनकारियों के साथ रखा गया।
राजनैतिक जीवन
सन 1946 में वे मद्रास विधान सभा के लिए चुने गए और कांग्रेस विधायक दल के सचिव बनाये गए। बाद में उन्हें मद्रास से 'भारतीय संविधान सभा' का सदस्य बनाया गया। अप्रैल 1949 से अप्रैल 1951 तक वो मद्रास राज्य में आवास, वन और निषेध मंत्री रहे। सन 1951 में वो मद्रास विधान सभा का चुनाव हार गए।
सन 1951 में एन. जी. रंगा को हराकर वो आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बन गए। जब 1953 में आंध्र प्रदेश की स्थापना हुई तब टी. प्रकाशम् मुख्यमंत्री और नीलम संजीव रेड्डी उप-मुख्यमंत्री बने। बाद में जब तेलेंगाना को आंध्र प्रदेश में शामिल किया गया तब रेड्डी मुख्यमंत्री बनाये गए और 1 नवम्बर 1956 से 11 जनवरी 1960 तक इस पद पर बने रहे। मार्च 1962 से फरवरी 1964 तक रेड्डी एक बार फिर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। नागार्जुन सागर और श्रीसैलम बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं उनके कार्यकाल में ही प्रारंभ हुईं। रेड्डी की कार्यकाल में आंध्र प्रदेश सरकार ने कृषि और संबद्धित क्षेत्रों के विकाश पर ध्यान दिया।
सन 1960 और 1962 के मध्य नीलम संजीव रेड्डी तीन बार भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। वो तीन बार राज्य सभा के सदस्य भी रहे। 1966 में लाल बहादुर शाष्त्री मंत्रिमंडल में वह इस्पात और खनन मंत्री रहे और जनवरी 1966 से मार्च 1967 के मध्य उन्होंने इंदिरा गाँधी सरकार में परिवहन, नागरिक उड्डयन, जहाजरानी और पर्यटन मंत्रालय संभाला।
सन 1967 के लोक सभा चुनाव में रेड्डी आंध्र प्रदेश के हिन्दुपुर से जीतकर सांसद बन गए और 17 मार्च को उन्हें लोक सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया। लोक सभा अध्यक्ष पद को निष्पक्ष और स्वतंत्र रखने के लिए उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अध्यक्ष को संसद का प्रहरी कहा और कई मौकों पर इंदिरा गाँधी से भी मोर्चा ले लिया जिसका खामियाजा उन्हें दो साल बाद राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भुगतना पड़ा।
1969 का राष्ट्रपति चुनाव
सन 1969 में राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी ने रेड्डी को राष्ट्रपति का उम्मीद्वार चुना पर प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनकी उम्मीदवारी का विरोध किया क्योंकि वो इंदिरा गाँधी के विरोधी गुट में शामिल थे और इंदिरा को ऐसा लगा कि अगर रेड्डी चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें प्रधान मंत्री पद से हटाया जा सकता है। इंदिरा ने अपने सांसदों और विधायकों से कहा कि वो अपनी 'अंतरात्मा की आवाज़' पर वोट दें। इसका नतीज़ा यह हुआ कि रेड्डी स्वतंत्र उम्मीद्वार वी. वी. गिरी से चुनाव हार गए।
इसके पश्चात रेड्डी, जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए लोक सभा अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था, ने सक्रीय राजनीति से संन्यास ले लिया और अनंतपुर जाकर कृषि कार्य में लग गए।
सक्रीय राजनीति में वापसी और राष्ट्रपति पद
जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण करांति के नारे के बाद रेड्डी राजनैतिक निर्वासन से बहार निकले और सन 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर नन्द्याल लोक सभा सीट से जीत गए। 26 मार्च 1977 को उन्हें छठी लोक सभा का अध्यक्ष चुना गया पर कुछ महीनों बाद ही उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
सन 1977 के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के मृत्यु के बाद राष्ट्रपति चुनाव कराए गए जिसमें नीलम संजीव रेड्डी को बिना चुनाव के निर्विरोध राष्ट्रपति चुन लिया गया। इसके साथ वो सबसे कम उम्र में राष्ट्रपति बनने वाले व्यक्ति हो गए। उस समय उनकी उम्र 65 साल थी।
नीलम संजीव रेड्डी ने 25 जुलाई 1977 को राष्ट्रपति पद का शपथ लिया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने तीन अलग-अलग सरकारों के साथ कार्य किया – मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और इंदिरा गाँधी।
सेवानिवृत्ति और निधन
25 जुलाई, 1982 को अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद नीलम संजीव रेड्डी अनंतापुर चले गए और अपने आप को कृषि कार्यों में व्यस्त कर दिया। कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े ने उन्हें बैंगलोर में बसने का न्योता दिया था पर उन्होंने अपने जीवन का बाकी समय बिताने के लिए अपने प्रिय नगर अनंतपुर को ही चुना। नीलम संजीव रेड्डी का निधन निमोनिया के कारण 1 जून 1996 को बैंगलोर नगर में हो गया।