Sant Surdas Biography in Hindi | संत सूरदास का जीवन परिचय

Sant Surdas Biography in Hindi | संत सूरदास 15 वी शताब्दी के अंधे संत, कवी और संगीतकार थे। सूरदास का नाम भक्ति की धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है। सूरदास अपने भगवान कृष्ण पर लिखी भक्ति गीतों के लिये जाने जाते है।

Update: 2020-11-23 16:31 GMT

Sant Surdas Biography in Hindi | संत सूरदास का जीवन परिचय

Sant Surdas Biography in Hindi | संत सूरदास का जीवन परिचय

  • नाम संत सूरदास
  • जन्म विक्रम संवत 1535
  • जन्मस्थान रुनकता
  • पिता रामदास सारस्वत
  • पत्नी अविवाहित
  • व्यवसाय कवि
  • गुरु बल्लभाचार्य
  • रचनायें सूरसागर, सूरसारावली, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
  • नागरिकता भारतीय

कवि संत सूरदास (Sant Surdas Biography in Hindi)

संत सूरदास 15 वी शताब्दी के अंधे संत, कवी और संगीतकार थे। सूरदास का नाम भक्ति की धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है। सूरदास अपने भगवान कृष्ण पर लिखी भक्ति गीतों के लिये जाने जाते है। सूरदास जी की रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण के भाव स्पष्ट देखने को मिलते हैं। जो भी उनकी रचनाओं को पढ़ता है वो कृष्ण की भक्ति में डूब जाता है। उन्हें हिन्दी साहित्य का विद्धान माना जाता था।

प्रारंभिक जीवन (Sant Surdas Early Life)

ग्रंथों से के आधार पर माना जाता है कि सूरदास जी का जन्म 1535 में रुनकता नामक गांव में हुआ था। वहीं आज के समय में यह गांव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। सूरदास जी के पिता का नाम रामदास था, जो कि एक महान गीतकार थे।

सूरदास जी शुरु से ही भगवद भक्ति में लीन रहते थे। उन्होनें खुद को पूरी तरह से श्री कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया था। कृष्णभक्ति में पूरी तरह डूबने के लिए कवि ने महज 6 साल की उम्र में अपनी पिता की आज्ञा से घर छोड़ दिया था। इसके बाद वे युमना तट के गौउघाट पर रहने लगे थे।

शिक्षा (Sant Surdas Education)

गौऊघाट पर ही उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और बाद में वह इनके शिष्य बन गए। सूरदास ने बल्लभाचार्य से ही भक्ति की दीक्षा प्राप्त की। श्री वल्लभाचार्य ने सूरदास जी को सही मार्गदर्शन देकर श्री कृष्ण भक्ति के लिए प्रेरित किया। अपने गुरु बल्लभाचार्य से शिक्षा लेने के बाद सूरदास जी पूरी तरह से भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन हो गए।

कृष्ण भक्त सूरदास (Sant Surdas Krishna Devotee)

सूरदास जी की कृष्ण भक्ति के बारे में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के मुताबिक, एक बार सूरदास जी श्री कृष्ण की भक्ति नें इतने डूब गए थे कि वे कुंए में तक गिर गए थे, जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने खुद साक्षात दर्शन देकर उनकी जान बचाई थी।

जिसके बाद देवी रूकमणी ने श्री कृष्ण से पूछा था कि, हे भगवन तुमने सूरदास की जान क्यों बचाई। तब कृष्ण भगवान ने रुकमणी को कहा के सच्चे भक्तों की हमेशा मदद करनी चाहिए, और सूरदास जी उनके सच्चे उपासक थे जो निच्छल भाव से उनकी आराधना करते थे। उन्होंने इसे सूरदास जी की उपासना का फल बताया, वहीं यह भी कहा जाता है कि जब श्री कृष्ण ने सूरदास की जान बचाई थी तो उन्हें नेत्र ज्योति लौटा दी थी। जिसके बाद सूरदास ने अपने प्रिय कृष्ण को सबसे पहले देखा था।

इसके बाद श्री कृष्ण ने सूरदास की भक्ति से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। जिसके बाद सूरदास ने कहा कि – मुझे सब कुछ मिल चुका हैं और सूरदास जी फिर से अपने प्रभु को देखने के बाद अंधा होना चाहते थे। क्योंकि वे अपने प्रभु के अलावा अन्य किसी को देखना नहीं चाहते थे। फिर क्या था भगवान श्री कृष्ण ने अपने प्रिय भक्त की मुराद पूरी कर दी और उन्हें फिर से उनकी नेत्र ज्योति छीन ली। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने सूरदास जी को आशीर्वाद दिया कि उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैले और उन्हें हमेशा याद किया जाए।

सम्राट अकबर और सूरदास की मुलाकात (Sant Surdas meets Akbar)

महाकवि सूरदास जी के भक्तिमय गीत हर किसी को भगवान की तरफ मोहित करते हैं। वहीं सूरदास जी की पद-रचना और गान-विद्या की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। वहीं इसको सुनकर सम्राट अकबर भी कवि सूरदास से मिलने से लिए खुद को नहीं रोक सके।

साहित्य में इस बात का जिक्र किया गया है कि अकबर के नौ रत्नों में से एक संगीतकार तानसेन ने सम्राट अकबर और महाकवि सूरदास जी की मथुरा में मुलाकात करवाई थी। सूरदास जी की पदों में भगवान श्री कृष्ण के सुंदर रूप और उनकी लीलाओं का वर्णन होता था। जो भी उनके पद सुनता था, वो ही श्री कृष्ण की भक्ति रस में डूब जाता था। इस तरह अकबर भी सूरदास जी का भक्तिपूर्ण पद-गान सुनकर अत्याधिक खुश हुए।

रचनाएं (Sant Surdas Composition)

हिंदी साहित्य में सूरदास द्वारा रचित मुख्य रूप से 5 ग्रंथों का प्रमाण मिलता हैं।

सूरसागर (Sant Surdas Sursagar)

यह सूरदास द्वारा रचित सबसे प्रसिद्द रचना हैं। जिसमे सूरदास के कृष्ण भक्ति से युक्त सवा लाख पदों का संग्रहण होने की बात कही जाती हैं। लेकिन वर्तमान समय में केवल सात से आठ हजार पद का अस्तित्व बचा हैं। विभिन्न-विभिन्न स्थानों पर इसकी कुल 100 से भी ज्यादा प्रतिलिपियाँ प्राप्त हुयी हैं। सूरदास के इस ग्रन्थ में कुल 12 अध्यायों में से 11 संक्षिप्त रूप में और बहुत विस्तार से मिलता हैं।

सूरसारावली (Sant Surdas Sursaravali)

सूरदास के सूरसारावली में कुल 1107 छंद हैं। इस ग्रन्थ की रचना सूरदास ने 67 वर्ष की उम्र में की थी। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ एक "वृहद् होली" गीत के रूप में रचित हैं।

साहित्य-लहरी (Sant Surdas Sahitya-Lahri)

साहित्यलहरी सूरदास की 118 पदों की एक लघुरचना हैं। इस ग्रन्थ की सबसे खास बात यह हैं इसके अंतिम पद में सूरदास ने अपने वंशवृक्ष के बारे में बताया हैं। जिसके अनुसार सूरदास का नाम "सूरजदास" हैं और वह चंदबरदाई के वंशज हैं। चंदबरदाई वहीँ हैं जिन्होंने "पृथ्वीराज रासो" की रचना की थी।

नल-दमयन्ती (Sant Surdas Nal-Damyanti)

नल-दमयन्ती सूरदास की कृष्ण भक्ति से अलग एक महाभारतकालीन नल और दमयन्ती की कहानी हैं। जिसमे युधिष्ठिर जब सब कुछ जुएँ में गंवाकर वनवास करते हैं, तब नल और दमयन्ती की यह कहानी ऋषि द्वारा युधिष्ठिर को सुनाई जाती हैं।

ब्याहलो (Sant Surdas Byahlo)

ब्याहलो सूरदास का नल-दमयन्ती की तरह अप्राप्य ग्रन्थ हैं। जो कि उनके भक्ति रस से अलग हैं।

मृत्यु (Sant Surdas Death)

सूरदास जी ने अपने जीवन के आखिरी पल ब्रज में गुजारे। कई विद्धानों के मुताबिक सूर का निधन 1642 में हुआ था। 

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