Shivaram Rajguru Biography in Hindi | शिवराम राजगुरु का जीवन परिचय

Shivaram Rajguru Biography in Hindi | शिवराम राजगुरु एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

Update: 2020-11-28 17:38 GMT

Shivaram Rajguru Biography in Hindi | शिवराम राजगुरु का जीवन परिचय

Shivaram Rajguru Biography in Hindi | शिवराम राजगुरु का जीवन परिचय

  • नाम शिवराम हरि राजगुरु
  • उपनाम रघुनाथ, एम महाराष्ट्र
  • जन्म 24 अगस्त 1908
  • जन्मस्थान राजगुरुनगर
  • पिता हरि नारायण
  • माता पार्वती बाई
  • व्यवसाय स्वतंत्रता सेनानी
  • नागरिकता भारतीय

भारतीय क्रांतिकारी शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru Biography in Hindi)

Shivaram Rajguru Biography in Hindi | शिवराम राजगुरु एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शिवराम राजगुरु ने अपने बचपन के दिनों से ही उन क्रूर अत्याचारों को देखा था, जो शाही ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारत और उसकी जनता को दण्डित किया जाता था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए बोली लगाने में क्रान्तिकारियों के साथ हाथ मिला कर अपने अन्दर तीव्र इच्छा और अधिक मजबूत किया। भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु तीन ऐसे नाम हैं, जिन्हें भारत का बच्चा-बच्चा जानता है। शहीद भगत सिंह का नाम के साथ राजगुरु और सुखदेव का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। इन तीनों की दोस्ती इतनी महान थी कि इन्होंने एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिये एक साथ वीरगति प्राप्त की।

प्रारंभिक जीवन (Rajguru Early Life)

राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के खेड ग्राम में ब्रिटिशकालीन भारत में हुआ। इनके पिता जी का नाम श्री हरि नारायण और माता जी नाम पार्वती बाई था। राजगुरु जी का ताल्लुक एक ब्राह्मण परिवार से था। इनके पिता श्री हरि नारायण का निधन उस समय हुआ जब इनकी उम्र 6 वर्ष की थी। तब से इनका पालन पोषण और शिक्षा की ज़िम्मेदारी इनकी माता जी और बड़े भैया ने निभाई।

शिक्षा (Rajguru Education)

अपने गांव के ही एक मराठी स्कूल में राजगुरु जी ने अपनी पढ़ाई की थी। कुछ सालों तक अपने गांव में रहने के बाद राजगुरू वाराणसी चले गए थे और वाराणसी में आकर इन्होंने विद्यानयन और संस्कृत विषय की पढ़ाई की थी। 15 वर्ष की आयु में राजगुरु जी को हिन्दू धर्म के ग्रंथो का अच्छी खासा ज्ञान भी हो गया था और ये एक एक ज्ञानी व्यक्ति थे। कहा जाता है कि इन्होंने सिद्धान्तकौमुदी (संस्कृत की शब्द शास्त्र) को बेहद ही कम समय में याद कर लिया था।

राजगुरु का क्रांतिकारी बनने का सफर (Freedom Fighter Rajguru)

वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे, जिनका मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाकर आज़ाद करवाना था। उनके अनुसार महात्मा गांधी द्वारा चलाये जा रहे अहिंसावादी आंदोलनों की तुलना में ब्रिटिश राज के खिलाफ चलाये जा रहे रहे उग्र आंदोलन ज्यादा प्रभावशाली साबित होते थे। इनकी भेंट अंग्रेजो से संघर्ष करने वाले और कई क्रान्तिकारियों से भी हुयी। और एक दिन इनकी मुलाकात भगत सिंह जी और सुखदेव जी से हुई। राजगुरु इन दोनों से मिलकर बड़े ही प्रभावित हुए. और परम मित्र बन गए।

भारत की आज़ादी को लेकर देश में अंग्रेजो के खिलाफ़ विद्रोह करने वाले उन तमाम क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आये। और उसी दौरान उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आज़ाद जी से हुयी। तब चन्द्रशेखर आजाद जी से वे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये।

लाला लाजपत राय की हत्या का बदला (Revenge for Killing Lala Lajpat Rai)

अपने हिंसात्मक विचारो के चलते राजगुरु जल्द ही भगत सिंह और सुखदेव के सहयोगी बन गये थे और 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जे.पी. सौन्ड़ेर्स की हत्या में राजगुरु भी शामिल थे। उनकी इस क्रिया का मुख्य कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेना था, जिनकी मृत्यु साइमन कमीशन आंदोलन के समय में ब्रिटिश पुलिस द्वारा की गयी लाठी चार्ज की वजह से हुई थी। ब्रिटिश पुलिस ने जानबूझ कर लाला लाजपत राय पर जबरन लाठी चार्ज करवाई थी, जिस वजह से उनकी मृत्यु हो गयी थी।

राजगुरु की गिरफ्तारी (Rajguru Arrest)

अंग्रेजों से बचने के लिए भगत सिंह जी और राजगुरु जी ने लाहौर को छोड़ने का फैसला किया और इस शहर से निकलने के लिए एक रणनीति तैयार की। अपनी रणनीति को सफल बनाने के लिए इन दोनों ने दुर्गा देवी वोहरा की मदद ली थी। दुर्गा जी क्रांतिकारी भगवती चरन की पत्नी थी। इनकी रणनीति के अनुसार इन्हें लाहौर से हावड़ा तक जानेवाली ट्रेन को पकड़ना था।

अंग्रेजों द्वारा भगत सिंह को पहचाना ना जाए इसलिए इन्होंने अपना वेश पूरी तरह से बदला लिया था। अपने वेश को बदलने के बाद सिंह वोहरा और उनके बच्चे के साथ ट्रेन में सवार हो गए थे। भगत जी के अलावा इस ट्रेन में राजगुरु जी भी अपना वेश बदल कर सवार हुए थे। जब ये ट्रेन लखनऊ पहुंची तो राजगुरु जी यहां पर उतर गए और बनारस के लिए रवाना हो गए। वहीं भगत सिंह ने वोहरा और उनके बच्चे के साथ हावड़ा की ओर रूख किया था।

कुछ समय तक उत्तर प्रदेश में रहने के बाद राजगुरु जी नागपुर चले गए थे। यहां पर इन्होंने आरएसएस के एक कार्यकर्ता के घर में आश्रय लिया था। 30 सितम्बर, 1929 में जब ये नागपुर से पुणे जा रहे थे, तब इन्हें अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया था। इसके अलावा अंग्रेजों ने भगत सिंह और सुखदेव को भी गिरफ्तार कर लिया था।

सम्मान (Rajguru The Honor)

मृत्यु के बाद उनके जन्मगाव का नाम बदलकर राजगुरुनगर रखा गया था। इसके बाद 1953 में उन्हें सम्मान देते हुए हरियाणा के हिसार में एक शॉपिंग काम्प्लेक्स का नाम भी बदलकर राजगुरु मार्केट रखा गया था।

मृत्यु (Rajguru Death)

सॉन्डर्स की हत्या में दोषी पाते हुए राजगुरु जी को साल 1931 में फांसी दी गई थी। इनके साथ सुखदेव जी और भगत सिंह को भी ये सजा दी गई थी। इस तरह से हमारे देश ने 23 मार्च के दिन अपने देश के तीन क्रांतिकारियों को खो दिया था। जिस समय राजगुरु जी को अंग्रेजों द्वारा सूली पर चढ़ाया गया था उस समय इनकी आयु केवल 22 वर्ष की थी। पंजाब के फिरोजपुर जिले की सतलज नदी के किनारे पर ही उनके शवो का दाह-संस्कार किया गया था।

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