Vinoba Bhave Biography in Hindi | विनोबा भावे का जीवन परिचय

Vinoba Bhave Biography in Hindi | विनोबा भावे का नाम भारत के महात्माओं के नामों के बीच अंकित है। विनोबा भावे एक अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी थे, इसके अलावा उनकी पहचान समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु के रूप में भी हैं। भारत की आज़ादी की लड़ाई में अहिंसात्मक रूप से इनका बहुत बड़ा योगदान रहा।

Update: 2020-11-26 15:10 GMT

Vinoba Bhave Biography in Hindi | विनोबा भावे का जीवन परिचय

  • पूरा नाम विनायक नरहरि भावे
  • दूसरा नाम आचार्य विनोबा भावे
  • जन्म 11 सिंतबर 1895
  • जन्मस्थान गागोदे, जि. रायगड, महाराष्ट्र
  • पिता नरहरि भावे
  • माता रुक्मिणी भावे
  • व्यवसाय समाज सुधारक, लेखक, स्वतंत्रता सेनानी
  • प्रसिद्धि भूदान आन्दोलन
  • पुरस्कार भारत रत्न
  • नागरिकता भारतीय

स्वतंत्रता सेनानी विनोबा भावे (Vinoba Bhave Biography in Hindi)

Vinoba Bhave Biography in Hindi | विनोबा भावे का नाम भारत के महात्माओं के नामों के बीच अंकित है। विनोबा भावे एक अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी थे, इसके अलावा उनकी पहचान समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु के रूप में भी हैं। भारत की आज़ादी की लड़ाई में अहिंसात्मक रूप से इनका बहुत बड़ा योगदान रहा। ये महात्मा गांधी के अग्रणी शिष्यों में एक थे, जो सदैव गांधी के मार्ग का अनुशरण करते हुए, अपना जीवन राष्ट्र निर्माण में लगाया। 

प्रारंभिक जीवन (Vinoba Bhave Early Life)

विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को महाराष्ट्र के गोगुंदा गांव में हुआ था। इनका जन्म एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुवा था। विनोबा भावे के पिता एक बहुत ही अच्छे बुनकर थे, और इनकी माता एक धार्मिक महिला थी। इनके लालन-पालन में इनके दादा जी का बहुत बड़ा योगदान रहा। विनोबा भावे अपनी माता से बहुत प्रभावित थे, और इसके फलस्वरूप बहुत कम उम्र में इन्होने भगवद्गीता जैसे ग्रन्ध को पढ़ डाला, और उसका सार भी समझ गये।

शिक्षा (Vinoba Bhave Education)

हाई स्‍कूल परीक्षा में गणित में सर्वोच्‍च अंक प्राप्‍त किए। इसी दौरान स्थापित बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में महात्मा गांधी ने एक बहुत प्रभावशाली भाषण दिया था। उसके कुछ अंश अखबारों में छपे, जिसे पढ़ कर विनोबा भावे बहुत प्रभावित हुए। इस वक़्त विनोबा अपने इंटरमीडिएट की परीक्षा देने के लिए मुंबई जा रहे थे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने आगे की पढाई से मुँह मोड़ लिया। इसके बाद वे 'गांधी आश्रम' में शामिल होने के लिए पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

महात्मा गांधी से प्रभावित (Vinoba Bhave Influenced by Mahatma Gandhi)

1916 में विनोवा भावे की महात्मा गांधी से पहली मुलाक़ात हुई। इस मुलाक़ात ने उन्हें और गहरा प्रभावित किया, और उनकी अकादमिक पढाई- लिखाई बंद हो गयी। उन्होंने अपना समस्त जीवन महात्मा गांधी की राह पर चलते हुए देश की सेवा में लगाना ही सही सामझा, वे महात्मा गांधी के आश्रम में होने वाले सभी कार्यक्रमों में बहुत अधिक रूचि रखने लगे, इन कार्यों में पठन पाठन, सामाजिक अवचेतना संबंधी कार्य आदि सदा होते रहते थे।

वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी से जुड़े थे। वह कुछ समय के लिए गांधी के साबरमती आश्रम में एक कुटीर बनाकर रहे, जिसका नाम उनके नाम पर रखा गया, 'विनोबा कुटीर'। 921 में विनोबा भावे, महात्मा गाँधी के कहने पर महाराष्ट्र के एक गाँव वर्धा के लिए रवाना हुए। वर्धा में महात्मा गाँधी का एक आश्रम चलता था, उसका कार्यभार उन्होंने विनोब भावे को सौंपा।

1923 में उन्होंने 'महाराष्ट्र धर्म' नामक एक मासिक पत्रिका निकालनी शुरू की, इस पत्रिका में वे उपनिषद के महत्व और उपयोगिता के ऊपर निबंध लिखते रहे। कालांतर में लोगों द्वारा पसंद किये जाने पर ये मासिक पत्रिका सप्ताहिक पत्रिका के रूप में आने लगी। लोगों को जागरूक करने में ये पत्रिका एक अहम् भूमिका निभा रही थी। ये पत्रिका लगातार तीन साल तक निकलती रही।

इस दौरान 1920 से 1930 के बीच आचार्य को कई बार उनके द्वारा किये जा रहे जागरूकता के कामों को देख गिरफ्तार किया गया। वे इन गिरफ्तारियों और अंग्रेजी हुकमत से बिलकुल भी नहीं डरे और 1940 में इन्हें 5 साल की जेल हुई। इस जेल की वजह अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध अहिंसात्मक आन्दोलन था। जेल से छूटने के बाद उनका निश्चय और दृढ़ हो गया।

कालांतर में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' में उनकी मुख्य भूमिका रही। इतने कामों को अंजाम देने के बाद भी वे आम लोगों में बहुत मशहूर नहीं थे, लोगों के बीच उनकी पहचान 1940 से बननी शुरू हुई, जब महात्मा गांधी ने एक नए अहिंसात्मक आन्दोलन के लिए उन्हें प्रतिभागियों के रूप में चुना।

भूदान आंदोलन (Vinoba Bhave Bhoodan Movement)

भूदान आंदोलन के तहत उन्होंने गरीब परिवार जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं थी उनको अपनी भूमि दान दी फिर गाँव गाँव जाकर उन्होंने हर किसी से उनकी जमीन का छठवां हिस्सा ग़रीबों के लिये माँगा। इस तरह से वे विश्व विख्यात हो गये। इस तरह उन्होंने 6 आश्रमों की स्थापना कर ली। भूदान आन्दोलन की सफलता के बाद उनके द्वारा समाप्ति दान, श्रमदान, शांति सेना,सर्वोदय पत्र और जीवन दान जैसे कई अन्य अभियान भी चलाए गये।

सर्वोदय आंदोलन (Vinoba Bhave Sarvodaya Movement)

सर्वोदय आंदोलन का मुख्य काम था, कि समाज के पिछड़ेपन को दूर करना। गरीबों और अमीरी में भेदभाव को कम करना और सबको एकजुट करना। समाज के सबसे पिछले वर्ग में खड़े लोगों को आगे लाना, ग़रीबो और अमीरों के बीच कोई फ़र्क न रहे, और न ही समय में किसी तरह का जाति भेद रहे। इसके बाद एक और बहुत महत्वपूर्ण आन्दोलन की नींव इन्ही के द्वारा पड़ी, ये आन्दोलन ये दिखाता था, कि आचार्य विनोबा भावे का हृदय कितना कोमल और त्याग से भरा हुआ था।

विनोबा भावे के साहित्य (Vinoba Bhave Literature)

विनोवा भावे लेख लिखने के साथ-साथ संस्कृत भाषा को आमजन मानस के लिए सहज बनाने का भी सफल प्रयास किया। विनोबा भावे एक बहुभाषी व्यक्ति थे। उन्हें लगभग सभी भारतीय भाषाओं का ज्ञान था। विनोबा भावे के अनुसार कन्नड़ लिपि विश्व की सभी 'लिपियों की रानी' है। विनोबा भावे ने गीता, क़ुरआन, बाइबिल जैसे धर्म ग्रंथों के अनुवाद के साथ ही इनकी आलोचनाएं भी की। विनोबा भावे भागवत गीता से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वो कहते थे, कि गीता उनके जीवन की हर एक सांस में है। उन्होंने गीता को मराठी भाषा में अनुवादित भी किया था।

पुरस्कार और सम्मान (Vinoba Bhave The Honors)

  • 1958 में प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1983 में मरणोपरांत सम्मानित किया।

मृत्यु (Vinoba Bhave Death)

देश के अनेक बड़े बड़े नेता और प्रधानमंत्री समय समय पर आध्यात्मिक और सामाजिक तथा अनेक बार राजनितिक समस्याओं के परामर्श के लिए उनके पास जाते रहे। परन्तु विनोबा जी यह अनुभव करते रहे, कि अब उनका कोई विशेष उपयोग नही है इसलिए उन्होंने खान-पान त्यागकर ने के कारण उनकी हालत बहुत खराब हो गयी, 15 नवम्बर, 1985 को उनकी मृत्यु हुई।

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