शाहरुख खान के नाम खुला खत- आपने नफरत के आगे घुटने टेकेे, नफरत जीत गई, आप अच्छाई की आवाज बनने से चूक गए
प्रिय शाहरुख
मुझे उम्मीद है कि आप शाहरुख कहने का बुरा नहीं मानेंगे क्योंकि सारे भारतीय आपको इसी रूप में जानते हैं। लेकिन शायद अब नहीं। पहले करण जौहर भारतीय देशभक्ति के स्वयंभू गैर-संवैधानिक रक्षक एमएनएस, जो उन्माद और नफरत का दूसरा रूप है, के सामने घुटने टेक दिए। उसके बाद मुझे ऐसी उम्मीद नहीं है थी कि आप 'द किंग' किसी गुंडे की ऐसी ऐसी अयाचित और गैर-कानूनी मांग के आगे झुक झाएंगे।जब आपने भारत में बहुत से लोगों द्वारा महसूस की जाने वाली असुरक्षा की भावना को मुखरता से सामने रखा था तो मैंने आपकी अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा में लेख लिखा था। कल तक आप किंग खान थे, ज्यादातर भारतीयों के दिलों के बादशाह। लेकिन ये नहीं समझ आ रहा है कि अब आप क्या हैं।
आपको पता होगा कि "रईस" मतलब "प्रमुख" होता है। इससे ताकत और सत्ता का की एक खास ध्वनि निकलती है। आप किंग थे जो अनगिनत भारतीयों के दिलों पर राज करता था। राज ठाकरे और उसके नफरत उड़ेलने वाले समर्थकों के पास अपनी मर्जी थोपने की कोई कानूनी ताकत नहीं है। इसीलिए उन्होंने आपको धमकी दी कि अगर आपने "रईस" के रिलीज कार्यक्रम में माहिरा खान को न बुलाने की उनकी बात नहीं मानी तो वो "रईस" को रिलीज नहीं होने देंगे और शांति व्यवस्था भंग करेंगे।
वो लम्हा डर या कायरता का रहा होगा लेकिन आप कह सकते हैं कि आप अपने रईस को बर्बादी से बचाना चाहते थे। ऐसे में मैं बेमन से मानूंगा कि आपने रईस से भिखारी बनने का फैसला किया। आप भिखारी का कटोरा लेकर डरते हुए हाथ बांधकर एमएनएस की दया की भीख मांगने गए। आप ये भी कह सकते हैं कि करण जौहर आप से पहले ये कर चुके हैं और इससे एनएनएस को मुंबई और आसपास के इलाके की शांति और कानून-व्यवस्था का संरक्षक होने का अधिकार मिल जाता है। लेकिन जिस पल आप एमएनएस के पास गए उसी पल आपने अपनी स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी को हमेशा के लिए एनएनएस और ऐसे दी दूसरे गुंडों के गिरोहों के हाथों गिरवी रख दिया।
आप तर्क दे सकते हैं कि राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने आपकी मदद का साहस नहीं दिखाया और ठाकरे और उनके समर्थकों को अपनी जगह दे दी। आप जानते हैं कि वो एमएनएस की वेदी पर करण जौहर की बलि देकर राज ठाकरे के सामने मुख्यमंत्री की कानून व्यवस्था और शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी को एक बार पहले भी समर्पित कर चुके हैं।
आप दुनिया के सबसे अमीर अभिनेताओं में हैं। आपको पैसे के लिए और फिल्में बनाने की जरूरत नहीं है। मुझे पता है कि समय हमेशा बदलता रहता है और एनएनएस जैसे नफरत फैलाने वाले हमेशा नहीं रहेंगे। अगर अच्छी सोच वाले साथ मिल जाएं तो वो हमेशा अंधेरे और बुराई को हरा सकते हैं। महात्मा गांधी का "प्रेम ही सत्य है, सत्य ही प्रेम है" भी है, जो लाखों हिटलरों से ज्यादा ताकतवर है। पूरी दुनिया को बुराई के खिलाफ पुरजोर विरोध की जरूरत है। आप वो आवाज बन सकते थे। लेकिन दुर्भाग्यवश आप वो आवाज नहीं बन सके।
अगर आपने आपकी अभिव्यक्ति की आजादी को दबाए जाने का विरोध किया होता तो भारत की एक बड़ी आबादी आपके साथ खड़ी होती। अगर आपने इन छद्म देशभक्तों से कहा होता कि "तुम लोग अपने काम से काम रखो" तो बहुत से भारतीय आपके कंधे से कंधे मिलाकर इस लड़ाई में आपका साथ देते।
लेकिन दुर्भाग्यवश आपने बुराई के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, एसआरके। आप नफरत के आगे झुक गए। नफरत जीत गई। आप फिल्मों में जिस प्रेम के गीतों पर नाचते-गाते हैं उससे गहरे प्रेम- बुनियादी आजादी का प्रेम और अभिव्यक्ति की आजादी का प्रेम हार गए। "किंग" खान क्योंकि अब आप "किंग" कहने लायक नहीं रहे, प्लीज आप हमें बताएं कि नफरत के सौदागर के साथ आपकी अत्यंत निंदनीय सौदेबाजी के बाद हम आपको क्या कहें?
आपका दोस्त
उज्जल दोसांज