मुल्क़ की आज़ादी देश के किसानों के नाम है: चौधरी शम्स
BY Jan Shakti Bureau12 Jun 2017 1:55 PM IST
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Jan Shakti Bureau12 Jun 2017 2:32 PM IST
देश की आज़ादी अम्बानी, अडानी, पूंजीपतियों, उधोगपतियों के धन दौलत के बदौलत नहीं मिली है बल्कि देश की आज़ादी देश के किसान और उनके जवान खून के क़ुर्बानियों के बदौलत मिली है । आज़ादी की लड़ाई के दौरान जो खेत-खलिहान जलाये गये वह देश के किसानों के थे । जिन नंगी पीठों को जल्लाद अंग्रेजों ने अपने बूटों तले रौंदा और कुचला वह नंगी पीठें किसानों और उनके बेटों की थीं । जिन बहु, बेटियों, माँ, बहनों की इज़्ज़त से अंग्रेज दानवों ने खिलवाड़ किया और तार-तार किया वह अबलायें भी किसान परिवार की ही थीं । यही नहीं आज आज़ाद भारत की सीमाओं पर अपने पीठ पर 25 से 30 किलो का वजन लादकर हर तरह के तूफानी मौसम में अपने ज़ान को हथेली पर रखकर चौबीसों घण्टे खड़ा होकर भारतमाँ की रक्षा के साथ-साथ देश के समस्त जनता जनार्दन की रक्षा करने वाले जवान देश के किसानों के ही बेटे हैं न कि अम्बानी, अडानी, टाटा, बिड़ला, डालमिया या किसी उधोपतियों या पूंजीपतियो के घराने के बेटे हैं ।
देश का बजट बनाते समय अंतरिम बजट में उद्योग जगत के लिए लगभग 6 लाख करोड़ का छूट का प्राविधान बनाते हैं और बजट दस्तावेज में इसे "पूर्व निश्चित राजस्व" की श्रेणी में रखते हैं । वहीँ किसान और कृषि के लिए खजाना खाली होने का विधवा विलाप करते हैं । जबकि देश में कृषि सबसे बड़ा नियोक्ता है । कृषि देश की 70% आबादी को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है । देश की आर्थिक विकास की गति कृषि पर आधारित है । बावजूद इसके किसानों की अनदेखी जारी है । इस कारण कृषि घाटे का सौदा बन गया है
देश की आज़ादी से लेकर देश की हिफाज़त तक सब किसानों से है और किसानों के नाम है । देश का संविधान भी कृषि प्रधानता की बात करता है । भारतीय संविधान देश के किसानों व कृषि को मजबूती देने की परिकल्पना करता है । देश की लगभग 70% ( सत्तर प्रतिशत ) आबादी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुडी हुई है । देश के किसानों की मजबूती देश की सत्तर प्रतिशत आबादी की मजबूती है । किसान देश के लिए अन्नदाता है, भगवान हैं । देश के किसानों द्वारा चुने हुए सांसद, विधायक ही सत्ता पर क़ाबिज़ होते ही देश के किसानों को भूल जाते हैं, किसानों को अनदेखी शुरू कर देते हैं और अपने लिए ऐश व आराम की सुविधा के साथ-साथ आर्थिक मदद करने वाले एवं उनके पार्टी को मोटी रक़म का चन्दा देने वाले पूंजीपतियों, उधोगपतियों के पालतू कुत्ता बनकर उनकी सुरक्षा, सुविधा के लिए दौड़ लगाने लगते हैं, उनके लिए भोंकने लगते हैं ।
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