मुल्क़ की आज़ादी देश के किसानों के नाम है: चौधरी शम्स
BY Jan Shakti Bureau12 Jun 2017 1:55 PM IST
Jan Shakti Bureau12 Jun 2017 2:32 PM IST
देश का बजट बनाते समय अंतरिम बजट में उद्योग जगत के लिए लगभग 6 लाख करोड़ का छूट का प्राविधान बनाते हैं और बजट दस्तावेज में इसे "पूर्व निश्चित राजस्व" की श्रेणी में रखते हैं। वहीँ किसान और कृषि के लिए खजाना खाली होने का विधवा विलाप करते हैं। जबकि देश में कृषि सबसे बड़ा नियोक्ता है। कृषि देश की 70% आबादी को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है। देश की आर्थिक विकास की गति कृषि पर आधारित है। बावजूद इसके किसानों की अनदेखी जारी है । इस कारण कृषि घाटे का सौदा बन गया है।
यही कारण है कि देश के नौजवानों का कृषि से मोहभंग हो गया है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। देश में पूंजीपतियों, उधोगपतियों, कट्टरसाम्प्रदायिकता व दक्षिणपन्थियों की गठजोड़ की केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार लगातार किसानों की उपेक्षा करने में लगी है। क्यों कि किसान शब्द से ही भाजपा को चिढ़ है। वह इंसान या किसान शब्द सुनने को तैयार नहीं है। क्यों कि भाजपा को इन्हीं दो समूहों से अपने अंत की आशंका है। वह देश में हिन्दू बनाम मुसलमान का माहौल हमेशा बनाये रखना चाहती है और इसी में उसकी सफलता निहित है।
किसान की जागरूकता, एकता और संगठित होना भाजपा को कत्तई गंवारा नहीं है और ऐसे माहौल को वह कत्तई बनने नही देना चाहती, चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना क्यों न पड़ जाय। यहां तक कि गोली चलवाने से भी उसे परहेज़ नहीं है। इसका ज्वलन्त उदाहरण मध्यप्रदेश में भाजपा की शिवराज की सरकार ने मंदसौर में किसानों पर गोली चलवा कर अपना नज़रिया पेश कर दिया है। इसके निज़ात का सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है "किसान क्रांति" और देश से साम्प्रदायिकता का अंत। वर्चस्ववाद का सफाया। देश में समाजवाद की स्थापना। यह सत्य है, अकाट्य सत्य है और देश के किसानों व नौजवानों को इस सत्य को स्वीकार करना होगा कि " बगैर समाजवाद देश कभी खुशहाल हो न पायेगा बस्तियाँ दर बस्तियाँ जलेंगी पर किसी किसान, मजदूर के घर का दीया (चिराग) जल न पायेगा।
लेखक, यूनिवर्सल टुडे के संपादक हैं
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